नोटबंदी इसीलिए हुई ताकि कालाधन और भ्रष्टाचार समाप्त हो। इसके उद्देश्यों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है लेकिन पिछले एक माह का अनुभव हमें क्या बता रहा है? इस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के कारण कालाधन और भ्रष्टाचार, दुगुनी रफ्तार से बढ़ते जा रहे हैं। अब नए नोटों में धन को छिपाकर रखना ज्यादा आसान हो गया है। एक तो दो हजार का नोट काले धनवालों के लिए वरदान साबित हुआ है और दूसरा, अब नए नोटों से रिश्वतें ली और दी जाएंगी। लोग बैंकों को धता बताएंगे। वे बैंकों में अपना पैसा क्यों जमा करवाएंगे? ज्यों ही बैंकों में नए नोट आते जाएंगे, उन्हें धड़ल्ले से लोग निकलवाते जाएंगे। ये नए नोट काले धन के रुप में चलेंगे ही नहीं, दौड़ेंगे।
सरकार ‘केशलेस’ अर्थ-व्यवस्था क्या चलाएगी, देश के 90 प्रतिशत लोग सरकार को ही गंजा (केश लेस) कर देंगे। शेष 10 प्रतिशत धनी और नेता लोग अब रिश्वत कागज के टुकड़ों में नहीं, हीरे-सोने के गहनों, बेशकीमती साजो-सामान, विदेशों में जमीन-जायदाद तथा अन्य कई स्थूल और सूक्ष्म रुपों में लेंगे और देंगे। अभी नए नोट चालू हुए महिना भर भी नहीं हुआ कि नकली नोट भी बाजार में आ गए हैं। आतंकवादियों के पास भी नए नोट पकड़े गए हैं।
सरकार का इरादा यह था कि लोग अपने पुराने नोट गंगा में बहा देंगे या जला देंगे। इन नष्ट हुए नोटों की जगह छपे हुए नए नोट सरकार के खजाने में जमा हो जाएंगे। इसके अलावा टैक्स के तौर पर आधा काला धन भी सरकार के हाथ लग जाएगा। यह अरबों-खरबों रुपया देश की गरीबी दूर करने में काम आएगा लेकिन अब सरकार के पसीने छूट रहे हैं। वह बदहवास हो गई है। क्योंकि सारा का सारा काला धन सफेद होने जा रहा है और पुराने नकली नोट भी लोगों ने बैंकों में जमा करके सफेद कर लिए हैं। सरकार ठन-ठन गोपाल हो गई है। नए नोट छापने में जो करोड़ों रु. बर्बाद हुए, सो अलग! काला धन मूछें ताने खड़ा है और नोटबंदी उसके सामने शीर्षासन कर रही है।
जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है, नोटबंदी ने देश के 25-26 करोड़ जनधन खातेधारी लोगों याने लगभग हर परिवार को भ्रष्टाचार की कला सिखा दी है। अब उनसे कहा जा रहा है कि दूसरों द्वारा दिया गया वह पैसा भी खाते से मत निकालो। वचनभंग करो। याने दुगुना भ्रष्टाचार करो! इसके अलावा बैंकों के बड़े-बड़े अधिकारी नए नोटों का काला धंधा करते पकड़ा गए हैं। कई नेताओं और सेठों के पास नए नोट बेहिसाबी पकड़ाए हैं। छोटे-मोटे धंधे नोटों के अभाव में चौपट हो गए हैं। लाखों लोग बेरोजगार होकर गांवों की तरफ लौट रहे हैं। बड़े-बड़े कारखानों का दम फूलने लगा है। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल में भी कोई ऊर्जा दिखाई नहीं पड़ रही है। वे भी धक्का महसूस कर रहे हैं। विदेशी अर्थशास्त्री भी नोटबंदी का भविष्य अंधकारमय देख रहे हैं। इसके बावजूद जो लोग नोटबंदी का डंका पीट रहे हैं, वे मोदी और भाजपा का कबाड़ करने पर उतारु हैं, जाने-अनजाने ही ! देश की बात तो अभी कौन करे?