भारत विरोधी भावनाओं को भड़का रहे हैं माओवादी
हमारे पड़ोसी देश नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद जश्न का माहौल है। जश्न के दौरान मधेसी और जनजाति आदिवासी अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। मधेसियों के आंदोलन के कारण सड़कों पर जाम लगे हुए हैं। नेपाल की दो तिहाई आबादी मधेसियों और जनजाति आदिवासियों की है। मधेसी नेपाल के नये संविधान के प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं। पांच साल पहले तक नेपाल हिंदू राष्ट्र था। 28 मई, 2008 को नेपाल में राजशाही व्यवस्था खत्म कर संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र घोषित किया गया। अब नेपाल धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बन गया है। भारत और नेपाल के पुराने और गहरे संबंध हैं। संबंध भी केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी हैं। दोनों देशों के बीच माओवादी सरकार के गठन से पहले मधुर संबंध थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले साल नेपाल यात्रा के दौरान भारत के प्रति नेपाली जनता ने खुलेआम प्यार का इजहार भी किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने खुले दिल से बड़े भाई के तौर पर नेपाल को सहायता का वचन भी दिया था। भारत की चिंता पड़ोसी देश में रहने वाले मधेसियों के भविष्य को लेकर भी है।
नेपाल ने अपना नया संविधान लागू किया है, इसे लेकर किसी को एतराज भी नहीं होना चाहिए। नेपाल में जनता सड़कों पर है तो यह उसका अंदरूनी मसला हो सकता है पर वहां नए हालातों का असर भारत पर पड़ेगा, यह भी तय है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल नवंबर में नेपाली नेताओं को सलाह दी थी कि संविधान एक गुलदस्ते की तरह होना चाहिए। संविधान में हर क्षेत्र और समुदाय के लोगों को जगह मिले। मधेसियों की मांगों को देखकर लगता है कि संविधान में उनकी उपेक्षा की गई है। नए संविधान के बाद नेपाल हिन्दू राष्ट्र नहीं रहा, इसके बावजूद नेपाली संविधान में कई ऐसी व्यवस्थाएं की गई है, जिससे यह जाहिर होता है पुरानी मान्यताओं को बरकरार रखा गया है। नए संविधान में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। गाय के वध पर कानूनी रोक लगाई गई है। इससे यह तो साफ है कि वहां के 81 फीसदी हिन्दुओं की भावनाओं का ध्यान रखा गया है। यह सब भारत के प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा का असर है। नेपाल के प्रति भारत सरकार के उदार रवैये के कारण ही नए संविधान में पुरानी व्यवस्थाओं को जगह दी गई है।
भारत की ताजा चिंता नेपाल में जारी हिंसा को लेकर है। पिछले दो सप्ताह से तराई के मधेसी बहुल हिस्सों में लोग सड़कों पर हैं। इस हिंसा में 40 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। मधेसियों की चिंता यह है कि नए संविधान में कई प्रावधान ऐसे हैं, जो उन्हें नागरिक के तौर पर पूरे अधिकार नहीं देंगे। एक तरह मधेसी अब दोयम दर्ज के नागरिक बन कर रह जाएंगे। हिंसा को लेकर भारत सरकार चिंतित है। पड़ोसी देश में हिंसा को लेकर कोई चिंता जताता है तो यह आंतरिक मामलों में दखल नहीं होता। भारत की चिंता कूटनीतिक तौर पर भी है। मधेसियों को लेकर जताई गई भारत की चिंता को लेकर जिस तरह चीन समर्थक माओवादी नेता आंतरिक दखल बता रहे, उससे भी हालत खराब हो रहे हैं। नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काया जा रहा है। भारत विरोधी भावनाओं को नेपाल में आए भूकंप के दौरान भी भड़काया गया था। भारत की दिल खोलकर की गई सहायता के बावजूद माओवादियों ने चीन का गुणगान किया। इससे पहले पशुपतिनाथ मंदिर के भारतीय पुजारियों को लेकर भी माओवादी सरकार का भारत विरोधी रवैया उजागर हुआ था। भारतीय पुजारियों की माओवादी सरकार के इशारे पर पिटाई भी की गई है। प्रचंड की अगुवाई वाली सरकार ने पशुपतिनाथ मंदिर के दक्षिण भारतीय पुजारियों को हटाने का फैसला किया था। नेपाल की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर रोक भी लगाई थी। प्रचंड सरकार के हटने के बाद फिर से भारतीय पुजारियों को पूजा का अधिकार दिया गया। इस समय भी भारत के खिलाफ तमाम अफवाहें फैलाईं जा रही हैं। भारत सरकार की तरफ से लगातार पूरी स्थिति पर निगरानी रख रही है। बिगड़े हालातों के कारण ही नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला संयुक्त राष्ट्र के 70वें महासभा में भाग लेने न्यूयार्क नहीं गए। नेपाली मीडिया में कहा जा रहा है कि नेपाल के राष्ट्रपति रामवरण यादव ने भी ताजा हालातों पर चिंता जताई है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार नेपाल के राषट्रपति ने कहा है कि प्रधानमंत्री कम से कम हमें जनकपुर जाने लायक रहने दे। यादव का संबंध जनकपुर इलाके से है। नेपाली राष्ट्रपति का यह कहना बताता है कि वहां हालत किस कदर बिगड़े हुए हैं। भारत विरोधी भावनाओं के पीछे कौन है, यह पूरी दुनिया जान रही है। नेपाल में माओवादियों को बढ़ाने के लिए चीन पहले से मदद कर रहा है। भारत सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल नेपाल की हालत पर नजर रख रहे हैं। मीडिया में इस तरह की खबरें आ रही हैं कि 2005 में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने वाली ताकतें एक बार फिर से बड़े पैमाने पर सक्रिय हो गई हैं। यह अफवाह भी फैलाई जा रही है कि भारत नेपाल के नए संविधान से खुश नहीं है। नेपाल में सोशल मीडिया पर लगातार यह अफवाह फैलाई जा रही है कि नेपाल के धर्मनिरपेक्ष देश घोषित होने पर भारत सरकार चिंतित है। नेपाल के कई नेताओं ने भी ऐसी बातों को बढ़ावा दिया है। भारत द्वारा नेपाल के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाने की अफवाह को भी फैलाया जा रहा है। पहली बात तो यह है कि नेपाल के बिगड़ते हालत के बीच भारत के विदेश सचिव वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि नेपाल के नये संविधान से तराई में और हिंसा न भड़के। भारतीय विदेश सचिव के सीधे बयान पर भी माओवादी नेताओं ने राजनीतिक बयानबाजी की। एनेकपा (माओवादी) नेता प्रचंड ने कहा कि हम भारत का ‘यस मैन’ नहीं बनना चाहते। भारत की जनता को पहचानना चाहिए कि नेपाल ने संविधान लिखकर अपनी अंतरात्मा को सुना है। एक तरफ भारत नेपाल में शांति चाहता है तो दूसरी तरफ माओवादी नेता हालत बिगाड़ने के लिए बयानबाजी करते हैं। प्रचंड यह भी कहा कि कहा कि मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि भारत हम पर आर्थिक नाकेबंदी लगा रहा है और अगर यह सच है तो हम मोटर वाहनों पर चलने के बजाय साइकिल पर चलने को तैयार हैं। मीडिया में भी भारत विरोधी ताकतें प्रचार कर रही हैं। हैरानी की बात यह है कि नेपाल के तराई इलाके में हड़ताल और लोगों के सड़कों पर आंदोलन के कारण जाम चल रहा है। पेट्रोलियम और आवश्यक वस्तुएं दूरदराज के इलाकों में जाम के कारण पहुंचाने में देरी हो रही है। पेट्रोल की किल्लत भी बढ़ गई है। पेट्रोल पंपों पर वाहनों की लंबी कतारें लग रही हैं। इस स्थिति को भी भारत के खिलाफ माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
नेकपा-माओवादी नेता मोहन वैद्य किरण ने इसे नेपाल के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप बताया। यह बात भी गौर करने वाली है कि नेपाल में भारत विरोधी भावनाएं देश में यूपीए एक की सरकार के दौरान तेजी से बढ़ीं। तब मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार ने भारत विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए कोई पुख्ता कदम नहीं उठाए। माओवादियों की गतिविधियों को वामदलों के कारण भी बढ़ावा मिला। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने नये संविधान लागू करने के लिए नेपाल को बधाई दी। उन्होंने कहा कि नेपाल में स्थिरता और एकता का माहौल बनेगा। भारत पर नए संविधान के लागू होने पर बधाई न देने का आरोप भी मीडिया में लगाया जा रहा है। नेपाल की ताजा हालत समझने के लिए भारत सरकार ने भारतीय राजदूत रणजीत राय को नई दिल्ली बुलाने पर भी नेपाली मीडिया ने खबरे दी गईं कि भारत ने राजदूत को वापस बुला लिया है।
दरअसल भारत विरोधी अफवाहों को इसलिए भी ज्यादा फैलाया जा रहा है कि ताकि भारत मधेसियों की नाराजगी से दूर रहे। नेपाल में चीनी समर्थक ताकतें भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए ही मीडिया में भारत विरोधी भावनाओं को भड़का रहे हैं। नेपाल के पांच जिलों कांचीपुर, कैइलाली, सुनसरी, झापा और मोरांगपहाड़ी लोगों की संख्या ज्यादा है। इन जिलों को मधेसियों की ज्यादा आबादी वाले जिलों में मिलाया जाएगा। ऐसा होने से मधेसियों की आबादी पहाडि़यों के मुकाबले कम हो जाएगी। मधेसियों के लिए की गईं सिफारिशों को भी नहीं माना गया है। संविधान में यह प्रावधान भी किया गया है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, संसद के अध्यक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री, राज्य विधानसभा के अध्यक्ष आदि के पद पर केवल नेपालवंशी ही चुने जा सकते हैं। यानी कि जन्म से नेपाल की नागरिकता लेने वाला या प्राकृतिक तौर पर नागरिक बनने वाले मधेसी ये पद नहीं पा सकते हैं। विदेशी महिलाओं से शादी के बाद उन्हें नागरिकता देने के मामले पर किए गए प्रावधान भी मधेसियों के हितों के खिलाफ हैं। बड़ी संख्या में मधेसियों की शादी भारत में होती है। संविधान में नागरिकता के लिए अलग से आवेदन करने का प्रावधान किया गया है। मधेसियों की मांग है कि शादी होने पर प्राकृतिक तौर पर नेपाल की नागरिकता देने का प्रावधान होना चाहिए। मधेसियों की मांग किसी लिहाज से गलत नहीं हैं।
गौरतलब है कि चीन नेपाल को भारत में घुसपैठ करने के नजरिये से जंपिंग पेड की तरह इस्तेमाल करना चाहता है। चीन के सामरिक और कूटनीतिक नज़रिये में भारत के प्रति बेइमानी की बू आती है। हिमालय और लद्दाख की तुलना में नेपाल के जरिये भारत में आना चीन को ज्यादा सरल लगता है, इसलिए चीन कभी ये नहीं चाहेगा कि भारत और नेपाल के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक गठजोड़ बने। ये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जबर्दस्त कूटनीति थी कि कई सालों बाद भारत के एक प्रधानमंत्री ने नेपाल की यात्रा कर ठंडे पड़ चुके रिश्तों में गरमाहट भर दी। बस यही बात चीन को खल रही है, इसलिए वह नए संविधान के बहाने भारत के प्रति कुप्रचार के अभियान में प्राण-प्रण से जुटा है।
चीन को ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत नेपाल का स्वभाविक मित्र है। हमारी सांस्कृतिक परंपराएं एक हैं। आज भी दोनों देशों के बीच में वीजा पासपोर्ट का कोई चक्कर नहीं हैं। नेपाली गोरखे भारत के हर कोने में पाये जाते हैं और हम उन्हें विदेशी न मानकर अपना वाला ही मानते हैं। सदियों पुराने इस सांस्कृतिक संबंध को चीन आर्थिक ताकत के दम पर हाईजैक करना चाहता है। यह सही है कि चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यह भी उतना ही सही है कि नेपाल की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है। ऐसे में नेपाल को सशक्त, आर्थिक मित्र की ज़रूरत है। भूकंप के दौरान भारत ने आर्थिक सहायता प्रदान कर अपनी सदाशयता और कूटनीतिक चतुराई दिखाई थी। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हाल ही में चीन ने हमारे पड़ोसी राष्ट्र पाकिस्तान को अरबों डाॅलर की आर्थिक सहायता देकर एक तरीके से खरीद ही लिया है। चीन यही टोटका नेपाल में भी अजमा सकता है। चीन के इरादे कभी भी नेक नहीं थे और ना हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने तो साफ तौर पर कहा था कि भारत का दुश्मन नंबर एक चीन है, पाकिस्तान नहीं। नेपाल के जरिये चीन जार्ज साहब के वक्तव्य को सही साबित करने में लगा हुआ है।