व्यक्तित्व मन, वचन कर्म का प्रतिफल होता है, इसका विकास एक लम्बे समय के पश्चात् होता है। कठोर परिश्रम एवं तप से ही विकसित हो इसमें निखार भी आता है। यही व्यक्तित्व की छाप मानव को अच्छे-बुरे के संदर्भ में यादगार बनाते है। यही सूत्र समाज के प्रत्येक वर्ग में समान रूप से लागू होता है। राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। यूं तो प्रत्येक राजनीति पार्टी के अपने सिद्धान्त होते है इस तरह पार्टी सर्वोपरि होती है। लेकिन, कई बार आदमी का व्यक्तित्व का प्रभाव इतना बढ जाता है कि पार्टी इससे आच्छादित हो जाती है।
स्वतंत्र भारत के पश्चात् ऐसे दो चमत्कारी व्यक्तित्व हुए जिनसे पार्टी को याद किया जाता है इसमें पहला व्यक्तित्व इंदिरा गांधी का था। कांग्रेस की पहचान ही इंदिरा गांधी थी। दूसरा व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी का है जिसमें पार्टी ने नारा दिया अबकी बार मोदी सरकार।
इंदिरा गांधी के वक्त एक जुमला चला करता था। इंदिरा इज इण्डिया, इण्डिया इज इंदिरा।
विश्वपटल पर भी इंदिरा ने अपनी इच्छा शक्ति का लोहा मनवाया फिर बात चाहे चर्चित भारत-पाक युद्ध से जन्में बंग्लादेश की हो या राजनीति में भारत के अंदर एक क्षत्र राज करने की हो। ऐसा भी नहीं कि इंदिरा ने हार का मजा नहीं चखा, उन पर विशेष समुदाय के मंदिर में सेना को घुसा मोस्र वान्टेड दुर्दान्त आतंकवादी को मार गिराने के अभियान में समुदाय विशेष की नाराजगी का न केवल कोप भाजन बनना पड़ा बल्कि अंत में अपने प्राण भी गंवाना पडे।
इंदिरा का आपातकाल आज भी अविस्मरणीय है इसे तानाशाही कहंे या राजनीत में दुश्मनों को मजा चखाना कहे की शुरूआत भी हुई। वर्तमान राजनीति में इसका परिष्कृत रूप चलन में है। गरीबी हटाओं का नारा भी उन्हीं की देन है आज भी राजनीति उसी के इर्द-गिर्द नए रूप में गरीबी को घुरी पर ही घूम रही हैं। निःसंदेह विज्ञान एक तकनालाजी में भी उनकी विशेष रूचि भी उन्हीं के समय अंतरिक्ष में पहला भारतीय मानव राकेश शर्मा गया। आज भी दोनों का संवाद ‘‘इंदिरा ने पूछा अंतरिक्ष से भारत कैसा लगता है जवाब में राकेश शर्मा ने कहा ‘‘सारे जहां से अच्छा’’ यह आज भी भारतीयों को न केवल गर्भित करता है बल्कि रोमांचित भी करता है।
दूसरा चमत्कारिक व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी जिसे राजनीति विरासत में नहीं मिली। विपरीत परिस्थितियों में समस्याओं से जूझते हुए लगन कड़ी मेहनत, पक्का इरादा के बलबूते पर राजनति के इतिहास में पुरानी सारी मान्यताओं को ध्वस्त करते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बने गुजरात प्रदेश में लगातार चैथे कार्यकाल के रूप में शपथ लेने वाले सबसे लम्बे कार्यकाल वाले अर्थात् 2001 से 2014 साढ़े बारह साल तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड भी अपने ही नाम किया। इसी दौरान् गोदरा काण्ड का भी आरोप लगा।
16 लोकसभा के चुनावों में नरेन्द्र मोदी का चमत्कारिक व्यक्तित्व का उदय हुआ। देश में यह चुनाव पहली बार भाजपा के नाम पर न होकर ‘‘अबकी बार नरेन्द्र मोदी की सरकार’’ के नाम पर लडा गया, यही से उनका व्यक्तित्व इतना विशाल हो गया कि वह पार्टी को भी आच्छादित कर लिया और 26 मई 2014 को अंततः देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी अर्थात् नमो बने एवं इसे नई दिशा और राजनीति की दशा को सुधारने में अपनी प्रकृति के अनुरूप लगे हुए है। ढाई साल के अल्पकाल में ही नमो ने विश्वपटल पर अपनी सरलता एवं अनुशासन प्रिय छवि बनाने में न केवल कामयाब रहे बल्कि भारतीय राजनीति को भी लीक से हट नई राजनीति की परिभाषा बदल मालिक से सेवक के रूप में स्थापित करने मंें संलग्न हेै।
नमो द्वारा लिये गये फैसलों ने भी विश्व एवं भारतीय राजनीति में नए आयाम स्थापित किये है फिर बात चाहे बहुचर्चित 500-1000 के नोटबंदी 8 नवंबर 2016 रात की 12ः00 बजे से बंद करने का साहसिक फैसला भारत द्वारा पाक के विरूद्ध सर्जिकल स्ट्राइक की हो। गरीब महिलाओं के लिए रसोई के लिए उज्जवला योजना की हो, जिसमें गरीब परिवारों की महिला सदस्यों के नाम मुफ्त एल.पी.जी. कनेक्शन की हो, निवेश के क्षेत्र में 100 फीसदी एफ.डी.आई. की मंजूरी की हो, पूरे देश में उत्पादों पर एक समान कर की हो, ईरान के साथ चाबदार पोर्ट समझौता हो जिसके तहत् ईरान् के चाबदार बंदरगाह को विकसित करने के लिए अफगानिस्तान और ईरान के बीच त्रिपक्षीय समझौते की हो, 92 साल से चली आ रही रेल बजट की परंपरा को खत्म करने की हो अर्थात् एक ही बजट आयेगा की हो, चाहे स्टेैण्ड अप इंडिया अभियान की बात हो या बलूचिस्तान एवं पाक अधिकृत कश्मीर में हो रहे अत्याचारों के मुद्दे उठाने की हो, मोदी के इस कदम का स्वागत बलूचिस्तान एवं पी.ओ.के. के लोगों ने भरपूर स्वागत किया एवं इस मुद्दे को अन्तर्राष्ट्रीय मोर्चे पर भी उठाने की बात कही।
भष्टचार की लडाई की शुरूआत नोटबंदी, गोल्ड की बंदी, बेनामी सम्पत्ति और अन्य पर होने वाली मुहिम पर आने वाले परिणाम अभी भविष्य के गर्त में है। हालांकि इस तरह राजनीति में लीक से हटकर मुहिम चलाने से मोदी से विपक्ष के साथ कुछ अपनों का भी दबा सुर उठा रहा है। ये अलग बात है कि ऐसे लोग कितने सफल यह कहना अभी जल्दबाजी ही होगी लेकिन एक बात तो निर्विवाद रूप से सत्य है सभी नमो गगन तले हैं।