पश्चिम बंगाल में आसन्न चुनाव के मद्देनजर वोट कबाड़ने के लालच में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुसलमानों पर भरपूर ममता बरसा रही हैं। ममता भी कानून व्यवस्था को चैपट करने की हद तक बरसाई जा रही है। पहले मालदा जिले के कालियाचक कस्बे में ढाई लाख मुसलमानों की भीड़ ने थाना फूंका, हिन्दू दुकानदारों को मारा-पीटा और उनकी दुकानें लूटीं। हिन्दुओं के घरों में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई। पुलिस के वाहन फूंके गए। सवारियों से भरी बस को आग में झौंक दिया गया। इस भयावह दंगे की जांच पूरी हो पाती उसके पहले ही बीरभूम जिले में सड़क हादसे में एक युवक की मौत से गुस्साई भीड़ ने थाने में आग लगा दी। भीड़ के अंतकवादी तेवरों से डरे मयूरेश्वर थाने के ओसी समेत तमाम पुलिसकर्मियों ने थाने से भागकर अपनी जान बचाई।
पश्चिम बंगाल में शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेता या कार्यकर्ता विरोधी दलों पर हमला नहीं करते हों। रोजाना ख़बरें आती रहती हैं कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमला बोल दिया है। विरोधी दलों के कार्यालयों पर बम फोड़े जा रहे हैं। ममता बनर्जी कार्यकर्ताओं को चेताने का ढोंग करती हैं तो उनके राजनीतिक हमले और तेज हो जाते हैं। सत्ता के नशे में चूर तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के बेटे ने गणतंत्र दिवस परेड की तैयारी कर रहे वायुसेना के एक अफसर को कार से कुचल कर मार डाला। इस ऑडी कार के मालिक स्थानीय तृणमूल नेता पूर्व विधायक मोहम्मद सोहराब के दो बेटे अम्बिया और सम्बिया हैं। पुलिस ने शुरुआत में तो कोई कार्रवाई ही नहीं की। भारतीय जनता पार्टी की तरफ से किए गए विरोध प्रदर्शन के बाद आरोपी को गिरफ्तार तो किया गया मगर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
ममता बनर्जी यह सब मुसलमानों को खुष करने के लिए और आगामी चुनाव में उनके वोट एकतरफा हथियाने के लिए कर रही हैं। पष्चिम बंगाल पुलिस को सरकार के अलिखित निर्देष हैं कि मुस्लिम आरोपियों के खि़लाफ़ कार्रवाई करने से बचा जाए। गौरतलब है कि पष्चिम बंगाल में लगभग तीन दर्जन विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम आबादी निर्णायक स्थिति में है और ममता बनर्जी का तुष्टिकरण भी इन्हीं सीटों को अपने कब्जे में करने के लिए है।
तुष्टिकरण नीति का ख़तरनाक पहलू ये है कि ममता बनर्जी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को ही ताक पर रख दिया है। आतंकवादी संगठनों के तार राज्य के कई शहरों से जुड़ चुके हैं। बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बांग्लादेशी घुसपैठियों को एक साजिश के तहत पश्चिम बंगाल में लाया जा रहा है और उन्हें अवैध तरीके से राज्य का मतदाता बनाया जा रहा है। घुसपैठियों को तमाम नागरिक सुविधाएं दी जा रही हैं। ये सब धत्करम ममता बनर्जी अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए कर रही हैं। बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा को पहले से ही खतरा था जो रोज दर रोज बढ़ता ही जा रहा है।
ममता सरकार के इस राष्ट्रविरोधी रवैये के कारण राज्य में आपराधिक वारदातों में वृद्धि हुई है और कानून व्यवस्था रसातल में चली गई है। बांग्लादेशी घुसपैठियों का आतंक केवल पश्चिम बंगाल में ही नहीं है। कई सीमावर्ती राज्यों में जाकर ये घुसपैठिये आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ उच्चस्तरीय बैठक में भी यह बात सामने आई है कि घुसपैठियों के कारण राष्ट्र की सुरक्षा को ख़तरा बढ़ गया है। असहिष्णुता को लेकर हो-हल्ला मचाने वाले इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं? मालदा जिले के कालियाचक कस्बे में हुई घटना ममता सरकार की तुष्टिकरण नीति का सबसे काला उदाहरण है। कलियाचक ने यह भी उजागर कर दिया है कि किस तरह से हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को ममता बनर्जी की सरकार दबा रही है।
ममता सरकार ने मालदाकांड को सीमा सुरक्षा बल और स्थानीय नागरिकों का आपसी झगड़ा करार दिया है। सीमा सुरक्षा बल का किसी भी इलाके के नागरिकों से क्या और क्यों झगड़ा हो सकता है? ऐसे बयानों से सुरक्षा बलों का मनोबल ही गिरता है। पश्चिम बंगाल सरकार ये साफ नहीं कर रही है कि कालियाचक में एक इस्लामी संस्था इदारा-ए-शरिया को रैली की इजाजत दी गई थी। इस संस्था ने सुनियोजित तरीके से ढाई लाख मुस्लिमों की भीड़ जुटाई। रैली में भड़काऊ भाषण दिए गए। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए। भड़काऊ भाषणों के बाद मुस्लिमों की भीड़ ने स्थानीय पुलिस एवं प्रशासनिक भवनों पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य ये है कि ममता बनर्जी इसे साम्प्रदायिक घटना नहीं मान रही हैं। अगर ये साम्प्रदायिक घटना नहीं है तो केवल हिन्दुओं के घरों और दुकानों को क्यों निशाना बनाया गया? हिन्दुओं की करोड़ो रुपये की संपत्ति को आग के हवाले क्यों किया गया? अगर यह साम्प्रदायिक दंगा नहीं तो कलियाचक में हिन्दुओं की अभी तक अपनी दुकान खोलने की हिम्मत क्यों नहीं हो रही है? यदि ये साम्प्रदायिक दंगा नहीं है तो हिन्दुओं को ही पलायन क्यों करना पड़ा? मुस्लिमों के डर के कारण हिन्दू परिवार वापस घर लौटने की हिम्मत क्यों नहीं कर पा रहे हैं?
ममता सरकार अपने बचाव में जिस तरह से तर्क दे रही, उससे तो यही साबित हो रहा है कि यह सब हीनकर्म तुष्टिकरण की नीति के तहत किये जा रहे हैं। आजादी के इतिहास में पहली बार ये देखने को मिल रहा है कि राज्य की सरकार अपना राजधर्म छोड़कर मालदा दंगे के आरोपियों को बचाने की कोषिष कर रही है। सरकार हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को मामूली घटना निरूपित कर एक तरह से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रही है। राज्य सरकार ने कहा है कि प्रस्तावित रैली की योजना की पहले से तैयारी थी लेकिन इसके दौरान हुई हिंसा पहले से बनाई गई किसी साजिश का हिस्सा नहीं है। दरअसल इस दंगे की निष्पक्ष जांच हो तो तृणमूल कांग्रेस, बांग्लादेशी घुसपैठियों और अपराधियों के बीच सांठ-गांठ उजागर होगी।
सत्तारूढ़ दल के नेताओं की छत्रछाया में सीमा पार से तस्करी हो रही है। तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता बांग्लादेष से आने वाले नकली नोटों के कारोबार में लिप्त हैं। राज्य में नशे का कारोबार पनप रहा है। गौवंश की तस्करी हो रही है। मिनी बंग्लादेश बनने की तरफ बढ़ रहे पश्चिम बंगाल में नकली नोट और अफीम खुले आम लाया जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि मालदा के कालियाचक कस्बे के दंगे में तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की भूमिका क्या थी? ममता बनर्जी वोट बैंक के लिए एक बड़ा झूठ बोल रही हैं कि कलियाचक की हिंसा में टीएमसी कार्यकर्ताओं का कोई हाथ नहीं है।
ममता बनर्जी सरकार का मुस्लिम तुष्टिकरण का जो रवैये वह हिन्दुओं में चिंता का कारण बन गया है। पष्चिम बंगाल में हिन्दुओं की दयनीय दषा के बावजूद उनके हित में कोई आवाज नहीं उठा रहा है। दादरीकांड पर छाती पीठकर स्यापा करने वाले बुद्धिजीवी भांड और हिन्दुस्तान की रूदाली मीडिया आज पष्चिम बंगाल में हिन्दुओं की दुदर्षा पर खामोष क्यों है? क्या सेक्युलरिज्म के नाम पर हिन्दुओं पर अत्याचार किए जाएंगे? क्या देष में बहुसंख्यक होना गुनाह है? एक ओर तो तृणमूल पर ममता सरकार पूरी तरह से मुस्लिमों की गोद में जाकर बैठ गई है। वहीं वांमपंथी दल भी मुस्लिम नाराज न हो जाएं इस डर से हिन्दुओं के पक्ष में एक बयान तक जारी करने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में भाजपा जब हिन्दुओं की जान-माल की सुरक्षा का सवाल उठाती है तो उसे साम्प्रदायिक करार दे दिया जाता है। भाजपा ने अगर राष्ट्रपति और केंद्रीय गृह मंत्री से मालदा दंगे की जांच की मांग की है तो केवल इसमें क्या गलत है? आज पष्चिम बंगाल में हिन्दुओं की जान-माल को खतरा है। घुसपैठियों के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व न्यायाधीष के नेतृत्व में मालदाकांड की निष्पक्ष जांच हो। दादरी की घटना को मुद्दा बनाकर असहिष्णुता का आरोप लगाने वाले विरोधी दलों के नेता और तथाकथित बुद्धिजीवियों की मालदा पर चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। सरकारी सम्मान वापसी का नाटक करने वाली गैंग अब कहां मुंह छिपाकर सोयी हुई है?
मालदा की घटना तो बहुत बड़ी है। हालत यह है कि पश्चिम बंगाल की पुलिस एक वर्ग के खिलाफ कोई कार्रवाई ही नहीं करती है। बीरभूम में थाना जलाने वालों के खि़लाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हुई। कोलकाता में वायुसेना के अफसर को कुचलने वाले तृणमूल कांग्रेस के नेता सोहराब के बेटे को पकड़ने के बाद कार्रवाई करने में पुलिस ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। तुष्टीकरण का सबसे बड़ा नमूना है यह है कि अगर दोपहिया वाहन चलाने वालों को पुलिस बिना हेलमेट पहनने पर चालान काटती है मगर जालीदार टोपी पहनने वालों को जाने दिया जाता है और दूसरों का हेलमेट नहीं पहनने पर चालान काटा जाता है। इसे तुष्टिकरण का सबसे बड़ा उदाहरण ही माना जाएगा।
पश्चिम बंगाल सरकार ने कालियाचक कस्बे के पीडि़त हिन्दुओं की आर्थिक सहायता क्यों नहीं की? कारण साफ है कि यदि ममता सरकार पीडि़त हिन्दुओं को आर्थिक सहायता देती तो पूरे राज्य के मुसलमान नाराज हो सकते थे, इसलिए ममता सरकार ने हिन्दुओं को अपने हाल और रहमो करम पर छोड़ दिया है। जाहिर है ये सब हो रहा है मुस्लिम वोट बैंक के लिए। आखिरकार राज्य के कुल मतदाताओं में 25 से 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और बंगाल के कुल 341 विकासखंडों में से 140 में औसत 42 फीसदी मतदाता मुस्लिम हैं। भाजपा मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है। लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा में मुस्लिम कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ी है। भाजपा ने मालदा मामले में सच्चाई लाने के लिए ही राष्ट्रपति से गुहार लगाई है। कालियाचक दंगे की सच्चाई राज्यपाल के जरिये जनता के सामने लाई जाए। मालदा दंगे के सच के साथ ही ममता सरकार की तुष्टीकरण की नीति भी जनता के सामने उजागर हो, तब जाकर राजधर्म का पालन हो सकेगा।