अनेक विचारकों ने गहन शोध के उपरान्त इस स्थापत्य को बारहवी शताब्दी के पूर्वार्ध में निर्मित भगवान शंकर का मंदिर मानते है । जिसे बुंदेलखंड के महाराजा पर्माद्रि देव ने बनवाया था । पंद्रहवी शताब्दी में जयपुर के राजा ने राजा पर्माद्रि देव के वंशजो को पराजित कर आगरा को अधिन कर लिया । और यह विश्वविख्यात “तेजो महालय मन्दिर ‘’ के साथ साथ जयपुर के राजा का अस्थायी आवास भी हो गया ।
जिसे शाहजहा ने नाम मात्र का मुआवजा देकर कब्जा कर लिया और थोड़ी बहुत तरमीन के साथ उसे मजार बनवा दिया । आज भी मूलरूप से वह स्थापत्य अपनी हिन्दू गरिमा को गा रहा है । विश्व के किसी भी मुस्लिम ढ़ाचे मे मीनार भूमि पर नहीं बनायी जाती है। वह दीवारों के ऊपर ही बनायी जाती है जबकि ताजमहल के चारों कोनों पर बने मीनार मन्दिर के दीप स्तम्भ है । इस्लामी रचनावों मे किसी भी प्रकार की प्रकृतिक वस्तुवों का चित्रण वर्जित है वे वेल –बूटे तथा अल्पना मानते है । जबकि ताजमहल कमाल पुष्पों ,कलश, नारियल आदि शुभ प्रतीकों से अलंकृत है । ताजमहल की अष्ठफलकीय संरचना उसके हिन्दू स्थापत्य को सिद्ध कर रही है । दुनिया भर के मजारों मे मुर्दे का सिर पश्चिम और पैर पूर्व मे होता है जबकि ताजमहल मे स्थित मुमताज़ और शाहजहा की मजार का सिर उत्तर और पैर दक्षिण मे है। इसमे मजार की लंबाई नौ फुट से अधिक है जो समग्र विश्व के मानवीय लंबाइयो से भी ज्यादे है आखिर ऐसा क्यो ? पाठकगण स्वयं ही कल्पना कर सकते है कि जिस मुमताज़ कि मजार के रूप मे ताजमहल का निर्माण बताया जाता है वह आगरा से लगभग 1500 किलोमीटर दूर “बूरानपुर”(मध्य प्रदेश मे है ) मे अपने चौदहवे प्रसव के दौरान चिकित्सकीय अभाव मे मरी थी और वही पर उसे दफनाया गया था । आज भी बूरानपुर मे मुमताज़ कि मजार दर्शनीय है जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देख रेख मे है । इस्लाम मे एक बार शव को दफनाने के बाद उखारना वर्जित है ।
इतिहासकारो के अनुसार मुमताज़ के मरने के एक साल बाद उसके मजार को उखार कर आगरा लाया गया और ताजमहल के पास स्थित रामबाग (जिसे अब आरामबाग कहा जाता है ) मे इग्यारह महीने रखा गया फिर उसे पुनः ताजमहल मे दफनाया गया । अब विचारणीय यह है मुमताज़ की दोनों कब्रों का अस्तित्व क्यों है ? रामबाग मे रखने के स्थान को मजार क्यों नहीं माना गया ? ताजमहल मे जो द्रष्टव्य मजार है उसके नीचे भी दो मजार है जिसपर बूंद –बूंद जल टपकता रहता है जिसे अब “वक्फ बोर्ड ” ने बंद करवा दिया । इस प्रकार 6 माजरो का अस्तित्व को क्या माना जाए ?यह सभी प्रश्न गंभीरता पूर्ण विचारणीय है । पराधीन भारत के सारे मापदंडो को विदेशी बताया गया और हमारी गुलाम मनसिक्ता के इतिहासकर भी चाटुकारिता मे गुलामी के गीत गाते रहे । श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक नामक प्रज्ञवान इतिहासकार और विचारक है जो अपने 500 पृष्ट से भी ज्यादा वाले शोध मे इन बातों को सप्रमाण प्रस्तुत किया है । अब यह भारत के वौद्धिकक्ता को चुनौति है कि वह गुलाम मनसिक्ता से बाहर निकले और देश के 30 हजार से भी अधिक हिन्दू श्रद्धा के केन्द्रो को पुनः जागृत कर के हिन्दुत्व से जोड़ कर पुनः भारत कि गरिमा बढ़ाए । ये श्रद्धा के केंद्र मध्यकाल मे इस्लामिक वर्वर्ता के शिकार हो कर आज भी अपने उद्धारकर्ता कि खोज मे आंशू बहा रहे है ।