अमेरिका में पिछले दिनों हुए राष्ट्रपति के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप ने अपनी प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक पार्टी की मज़बूत उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को पराजित कर राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत लिया। हालांकि अमेरिका में रिपब्लिकन अथवा डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार पहले भी एक-दूसरी पार्टी के उम्मीदवारों को पराजित कर राष्ट्रपति पद पर आसीन होते रहे हैं परंतु इस बार चूंकि रिप्बल्किन नेता डोनल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम समुदाय के बारे में कुछ ऐसी टिप्पणी की थी जिसकी वजह से पूरे विश्व की निगाहें उनके चुनाव अभियान पर जा टिकीं। हालांकि 2009 में जब बराक ओबामा ने डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपने पहले कार्यकाल के लिए अमेरिका के 44वें राष्ट्रपति चुनाव जीता था उस समय भी भारत में आम लोगों में खुशी शी का माहौल देखा गया था। परंतु उस समय ओबामा के प्रति भारतीय जनता के लगाव के मुख्य कारण यह थे कि एक तो वे पहले अमेरिकी अ$फ्रीक़ी व्यक्ति थे जिन्हें अमेरिकी जनता ने पहली बार राष्ट्रपति निर्वाचित कर पूरी दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि अमेरिकी नागरिक रंग-भेद जैसी नकारात्मक सोच से ऊपर उठ चुके हैं। दूसरा कारण यह था कि बराक ओबामा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भक्त व प्रशंसक थे। यहां तक कि उनके कार्यालय में महात्मा गांधी के चित्र भी लगे हुए थे। ओबामा के प्रति भारतीय जनता के आत्मीय लगाव का एक कारण यह भी था कि वे स्वयं को हनुमान जी का भक्त बताते थे और सूत्रों के अनुसार वे अपने साथ हनुमान जी की मूर्ति भी रखते थे।
परंतु डोनल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जब अपने मुस्लिम विरोधी रुझान का संकेत दिया उस समय भारत में चंद हिंदूवादी तथा दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाले लोगों ने स्वयं को ट्रंप के पक्ष में खड़े होते प्रदर्शित किया। गोया ट्रंप का मुस्लिम विरोध यहां के कुछ हिंदुवादी लोगों को इतना भाया कि उन्हें डोनल्ड ट्रंप में न जाने कौन सी संभावनाएं नज़र आने लगीं? ट्रंप का मुस्लिम विरोधी बयान देना ज़ाहिर है विश्व में बढ़ते आतंकवाद के संदर्भ में दिया गया एक ऐसा बयान था जिससे वे अमेरिकी जनता के मन में यह भरोसा पैदा करना चाह रहे थे कि वे पूरी सख्ती तथा निष्पक्षता के साथ चरमपंथियों तथा कट्टरपंथी विचारधारा का विरोध करेंगे। परंतु चुनाव जीतने के समाचार के साथ ही जब डोनल्ड ट्रंप ने अपने पहले संबोधन में ही यह कहा कि वे सभी नागरिकों के साथ अच्छे विश्वास की भावना से आगे बढ़ेंगे तो निश्चित रूप से उन ताकतों को ज़रूर झटका लगा होगा जो यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि ट्रंप सत्ता में आने के बाद संभवत: कोई बड़ा मुस्लिम विरोधी अभियान अमेरिका में चलाएंगे। वैसे भी अमेरिका में चाहे डेमोक्रेटिक पार्टी का उम्मीदवार राष्ट्रपति पद पर विराजमान हो या रिपब्लिकन नेता राष्ट्रपति बने। दुनिया के लिए अमेरिकी नीति विशेषकर विदेश नीति कमोबेश एक जैसी ही रहती है। अमेरिका अपने समग्र हितों को देखते हुए ही किसी भी देश को अपना दोस्त या दुश्मन बनाता है। अमेरिकी नीति में ऐसा कुछ भी नहीं है कि दुनिया के कुछ देश वहां के डेमोक्रेटिक नेताओं के करीबी हों तो कुछ देश रिपबलिकन नेताओं के हितैषी हों।
हां डोनल्ड ट्रंप का जीतना इस मायने में ज़रूर खास माना जा सकता है कि अमेरिकी जनता ने 8 वर्षों तक बराक ओबामा के रूप में जिस अफ्रीक़ी मूल के अमेरिकी नागरिक को राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की सेवा करने का अवसर दिया उसी की डेमोक्रेटिक पार्टी की एक महिला उम्मीदवार हिलैरी क्लिंटन को पराजित कर एक बार फिर देश को श्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति दिए जाने का संदेश दिया है। माना जा रहा है कि डोनल्ड ट्रंप की जीत में उन श्वेत अमेरिकी नागरिकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है जो बराक ओबामा जैसे अश्वते नेता को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा हुआ पचा नहीं पा रहे थे। ट्रंप की जीत अमेरिकी लोगों की पुरुष प्रधान मानसिकता का भी परिचय देती है। बावजूद इसके कि अमेरिका दुनिया में मानवाधिकार तथा खासतौर पर महिलाओं के अधिकारों व स्वतंत्रता की ज़बरदस्त पैरवी करता नज़र आता है। हिलेरी क्लिंटन ने भी स्वयं को पहली महिला राष्ट्रपति बनने के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया तथा अमेरिकी महिलाओं से महिला के नाते उन्हें समर्थन देने की अपील भी की। परंतु उनकी सारी लोकप्रियता तथा राजनीति व अमेरिकी शासन में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम करने का उनका अनुभव धरा का धरा रह गया। और अमेरिका को राष्ट्रपति के रूप में पहली महिला नेता नहीं हासिल हो सकी।
बहरहाल, ‘अमेरिका फस्ट’ के जिस नारे ने डोलन्ड ट्रंप को चुनाव प्रचार में लोकप्रियता दिलवाई और अमेरिका ने पहली बार न्यूयार्क के किसी होटल व्यवसायी को देश का राष्ट्रपति निर्वाचित किया वे अपनी पहली प्राथमिकताओं के रूप में जिन संभावित योजनाओं पर अमल करने वाले हैं उनमें लगभग बीस लाख प्रवासियों को अमेरिका से बाहर निकालने की प्रक्रिया को शुरु करना है,जो देश अपने नागरिकों को वापस लेने से इंकार करे उनकी वीज़ा मुक्त यात्रा की छूट समाप्त करना,निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के अनेक सरकारी आदेशों को निरस्त करना, चीन को मुद्रा के मामले में हेराफेरी करने वाला देश करार देना,संयुक्त राष्ट्रसंघ के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम को अमेरिका की ओर से दी जाने वाली सहायता पर रोक लगाना व इन पैसों का प्रयोग अमेरिका के बुनियादी ढांचों में किया जाना व अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के कार्यकाल की सीमा तय किया जाना जैसी योजनाएं शामिल हैं जो संभवत: वे अपने कार्यकाल के प्रथम सौ दिनों में देश के सामने प्रस्तुत करेंगे।
डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने पर दुनिया के अनेक देशों के प्रमुखों की ओर से उन्हें बधाई के संदेश भेजे गए हैं तथा उनके साथ बेहतर संबंध बनाने का इरादा भी अधिकांश देशों के राष्ट्र प्रमुखों ने जताया है। परंतु कुछ देश ऐसे भी हैं जिन्होंने ट्रंप के जीतने को न तो उत्साह के रूप में लिया है न ही इसमें उन्हें कुछ निराशा नज़र आ रही है। ऐसा ही एक देश ईरान भी है। ईरानी राष्ट्रपति हसन रुहानी ने ट्रंप की जीत के समाचार के बाद कहा कि अमेरिका के चुनावी नतीजों का ईरान की नीति पर कोई असर नहीं पडऩे वाला। अमेरिका के चुनावी परिणाम उनके आंतरिक असंतोष और अस्थिरता को दर्शाते हैं। वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक ट्वीट के माध्यम से ट्रंप को बधाई दी और कहा कि वे उनके साथ मिलकर दोनों देशों के रिश्तों को नई ऊंचाई पर ले जाएंगे। अब यह नई ऊंचाई कैसी होगी और क्या होगी यह आने वाले समय में भारत व अमेरिका के मध्य के रिश्तों से ही पता चल सकेगा? अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गऩी ने भी डोनल्ड ट्रंप को उनकी जीत पर बधाई देते हुए कहा है कि अमेरिका व अफगानिस्तान चरमपंथ के विरुद्ध तथा विकास के एजेंडे पर एक-दूसरे के सांझीदार हैं। अफगानिस्तान स्थित आतंकी संगठन तालिबान के प्रवक्ता ने भी ट्रंप को इन शब्दों में अपना संदेश भेजा है कि-‘अमेरिका को विकसित करने की नीति दूसरे देशों की आज़ादी छीनने वाली न हो. इसमें दूसरे देशों की बर्बादी व अपने राष्ट्रीय हित न देखे जाएं ताकि दुनिया अमन के साथ रहे और मौजूदा संकट समाप्त हो सकें।