आज ज्ञानी जैलसिंह का 100 वां जन्मदिन है। यह जन्मदिन राष्ट्रपति भवन में मनाया गया। ज्ञानीजी की बेटियों ने मुझसे भी आग्रह किया। मैं भी गया। कुल डेढ़-दो सौ लोग थे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहनसिंह बोले। श्रोताओं के बीच कांग्रेस के वर्तमान नेताओं में से वहां एक भी नहीं था। सिर्फ शिवराज पाटील, शीला दीक्षित और पवन बंसल थे। न सोनिया, न राहुल, न अहमद पटेल, न चिदंबरम, न एंटनी और न ही सलमान खुर्शीद। कोई नहीं। भाजपा के डाॅ. मुरली मनोहर जोशी जरुर आए थे। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी क्या बोले, कुछ समय में नहीं आया। उनका उच्चारण अजीब-सा हो गया है। उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने रस्म अदाई कर दी। सिर्फ मनमोहनजी का भाषण ठीक-ठाक रहा। ऐसा लगा कि ये लोग ज्ञानीजी से परिचित भर थे। उन्हें जानते नहीं थे।
मैं सोचता रहा कि ऐसा क्यों हुआ? हो सकता है कि सोनिया और राहुल को अंदरुनी बात पता हो। वह अंदरुनी बात यह थी कि राष्ट्रपति के तौर पर ज्ञानी जैलसिंह राजीव गांधी से बहुत खफा हो गए थे। ज्ञानीजी का एक इतवार को मुझे फोन आया कि क्या आप अभी राष्ट्रपति भवन आ सकते हैं? मैं पहुंचा तो उन्होंने मुझे अपने फेमिली क्वार्टर में बिठाया। औपचारिक हाल में नहीं। उन्होंने कहा कि कई लोग मुझे सलाह दे रहे हैं कि मैं राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दूं। मैंने संविधान के कई जानकारों से बात भी की है। आपका क्या विचार है?’ मैंने कहा कि ‘ज्ञानीजी, क्या आप भारत को पाकिस्तान बनाना चाहते हैं? आप रात को 12 बजे राजीव को बर्खास्त करेंगे और एक बजे तक आप तिहाड़ जेल में होंगे। आपसे मिलने कोई नहीं आएगा, सिवाय मेरे।’ ज्ञानीजी हतप्रभ रह गए। मैंने उनसे कहा कि राजीव तो आपके हाथ का लगाया हुआ पौधा है। क्या आप ही उसको उखाड़ेंगे? इसके अलावा क्या इंदिराजी ने ही आपको राष्ट्रपति नहीं बनाया? क्या वह कर्ज इसी तरह चुकाया जाएगा? इसके अलावा क्या राजीव सज्जन आदमी नहीं है? उससे राजनीतिक भूलें हो सकती है लेकिन उसकी सज्जनता में जरा भी संदेह नहीं है। इस पर ज्ञानीजी ने राजीव की विनम्रता का एक निजी अनुभव सुनाया और उनकी आंखों से आंसू झरने लगे। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहब की एक बानी भी मुझे सुनाई और मुझे कहने लगे कि सारा बोझ उतर गया।
यह घटना मैं आज पहली बार सार्वजनिक कर रहा हूं। इसके अलावा भी उनके व्यक्तिगत जीवन की कुछ अत्यंत निजी बातें भी वे मुझे बताते रहे हैं लेकिन उन्होंने वे बातें अपनी आत्मकथा में नहीं कही हैं। उनकी आत्मकथा को लिखित रुप देनेवाले उनके सचिव एमएस बत्रा आज मेरे पास ही बैठे थे। बत्राजी ने आज मुझे कहा कि ज्ञानीजी ने उन्हें यह कहा था कि जो बातें आत्मकथा में नहीं हैं, वे भी उन्होंने आपको (याने मुझे) बताई हैं। ज्ञानीजी ने मुझे कहा था कि उनके निधन के 10-20 साल बाद मैं उन्हें लिखना चाहूं तो लिख दूं। ज्ञानीजी से मेरा परिचय अब से 35-36 साल पहले तब हुआ था, जब वे गृहमंत्री थे। वह घनिष्टता में बदल गया, जो उनके अंतिम समय तक बनी रही। उनका पहला स्मारक भाषण देने का आग्रह भी उनके परिवार ने मुझसे ही किया था। ज्ञानीजी का दूसरा स्मारक भाषण भारत के गृहमंत्री लालकृष्णजी आडवाणी ने दिया था। ज्ञानीजी के कुछ और संस्मरण कभी बाद में।