कभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के ख़ास क्षत्रप वाईएस राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगनमोहन रेड्डी से कांग्रेस की बीते २ वर्षों से चली आ रही अदावत ने अब गंभीर रूप ले लिया है जहां से दोनों के राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करना कठिन हो गया है। जगन मोहन की गिरफ्तारी के बाद आँध्रप्रदेश की राजनीति में आने वाले दिनों में ज़बर्दस्त उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे। देखा जाए तो अधिक नुकसान कांग्रेस को होना तय है।
जगन तो वैसे भी एकला चलो रे की तर्ज़ पर अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं। आंध्र कांग्रेस के लिए कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके ३३ सांसद इसी प्रदेश से हैं जो संख्याबल में किसी भी राज्य के कांग्रेस सांसदों से सर्वाधिक हैं। फिर आंध्र में जगन ने ही कांग्रेस की पेशानी पर बल डाला हो ऐसा नहीं है। तेलंगाना मामला भी कांग्रेस के लिए गलफांस बन गया है। कुछ दिनों पूर्व ही तेलंगाना की दुविधा से परेशान कांग्रेस ने तेलंगाना क्षेत्र के ८ सांसदों को लोकसभा से बाहर करवाया था। वह मामला अभी पूरी तरह सुलझा भी नहीं था कि सीबीआई द्वारा जगन की गिरफ्तारी और उससे उपजे विवाद की वजह से कांग्रेस नेता राज्य में खलनायक के रूप में जनता की आँखों में चुभने लगेंगे। जगन की गिरफ्तारी से संशय की स्थिति में आई राज्य सरकार ने पूरे आंध्रप्रदेश में १४४ का सा माहौल बना दिया है। १०० से अधिक जगन समर्थन गिरफ्तार हो चुके हैं तथा कई समर्थकों को उनके घरों में नज़रबंद कर दिया गया है। पूरे राज्य में अराजकता का माहौल है और किसी भी अप्रिय स्थिति की जिम्मेदार यक़ीनन राज्य सरकार होगी। आंध्र में कांग्रेस-रेड्डी परिवार के बीच अदावत के यह बीज कब, कहाँ, कैसे और क्यूँ पड़े यह बताने की ज़रूरत शायद नहीं है।
वाई.एस.आर रेड्डी जब तक जीवित थे; आंध्र में कांग्रेस के लिए भगवान् थे जिन्होंने अपनी लोकप्रिय छवि और जनसमर्थन से कांग्रेस को आंध्र में जन-जन की पसंद बना दिया था। मगर उनके असमय अवसान और उसके बाद सत्ता के हस्तानांतरण के मुद्दे पर उपजे विवाद ने पार्टी सहित शीर्ष नेतृत्व की सोच को ही बदल डाला। वाई.एस.आर रेड्डी के पुत्र जगन ने कांग्रेस से नित बिगड़ते रिश्तों की वजह से वाई.एस.आर “कांग्रेस” नामक अलग पार्टी बनाई तो आंध्र की राजनीति में भूचाल आ गया। वाई.एस.आर के प्रति समर्पित अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भी जगन का साथ देना शुरू किया तो जाहिर है शीर्ष नेतृत्व की त्योरियां चढ़ना स्वाभाविक था। और हुआ भी वही; जगन को आंध्र में अभूतपूर्व सियासी एवं जनसमर्थन मिला। जगन ने भी इसी उत्साह में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को खुली चुनौती दे डाली। अब जगन मुश्किल में हैं। जो नेता वाई.एस.आर रेड्डी को आंध्र में कांग्रेस का खेवनहार मानते थे; आज उन्हें भ्रष्ट साबित करने पर तुले हुए हैं। कडप्पा से सांसद उनके पुत्र जगन के खिलाफ कांग्रेस ने सियासी दांव-पेंच के तहत आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की जांच शुरू करवा दी।
गौरतलब है कि पिछले पांच वर्षों में जगनमोहन रेड्डी की दौलत २४ करोड़ रुपये से ४७० करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। यही नहीं, उनके ऊपर कई कंपनियों में पूंजी लगाने का भी आरोप है। आँध्रप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर केंद्रीय जांच ब्यूरो और एन्फोर्समेंट निदेशालय इस बात की छानबीन कर रहा है कि आखिर जगन ने यह संपत्ति कहा से जुटाई है? साल २००८ में जगनमोहन रेड्डी ने एक तेलुगु दैनिक समाचार पत्र साक्षी शुरू किया। २३ संस्करण वाले इस अखबार को शुरू करने में कई सौ करोड़ रुपये की पूंजी लगी। बाद में विपक्ष ने आरोप लगाया कि आँध्रप्रदेश की कई ऐसी कंपनियों ने इसमें पैसा लगाया था जिन्हें वाईएसआर सरकार के कई फैसलों से लाभ मिला था। आरोप यह भी लगे कि राजशेखर की सरकार ने इस अखबार को एक वर्ष में ही करीब ८० करोड़ रुपये के विज्ञापन दिए गए। वर्ष २००९ में जगन ने साक्षी नाम से एक टीवी चैनल शुरू किया जिसका सीधा लाभ जगन को प्रदेश में अपने समर्थकों की फौज खड़ी करने में मिला| मीडिया की वजह से जगन को राजनीतिक फायदा मिलता देख कांग्रेस के ही एक मंत्री शकर राव और तेलुगू देसम के दो नेताओं की एक याचिका पर आँध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने सीबीआई को जगनमोहन रेड्डी की संपत्ति की जांच करने का आदेश दिया जिसका नतीजा जगन की गिरफ्तारी के रूप में सामने आया मगर इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ये सारी कार्रवाई बिना कांग्रेसी शीर्ष नेतृत्व की इच्छा के अनुरूप हो।
बदले परिवेश में जगन कांग्रेस को भ्रष्टतम नेताओं की पंक्ति में शीर्ष पर खड़े नज़र आते हैं। यहाँ तक तो ठीक है, मगर “भगवान्” नज़र आने वाला उनका अपना लोकप्रिय नेता भी आज कांग्रेस को बुरा नज़र आ रहा है| जगन पर आरोप तक तो ठीक था पर वाई.एस.आर रेड्डी पर भी आरोप लगाना कांग्रेस पार्टी के दोहरे चरित्र को दर्शाता है। जगन दूध के धुले हों यह भी संभव नहीं, जगन की संपत्ति की जांच होना ही चाहिए मगर किसी की इज्ज़त पर कीचड़ उछालकर नहीं। वैसे जगन की बगावत ने कांग्रेस के सुरक्षित किले में सेंधमारी कर उसकी दीवारों को कमजोर कर दिया है। आंध्र में कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खोती जा रही है। अब कांग्रेस के लिए १२ जून को होने वाले विधानसभा उपचुनाव सरदर्दी का सबब बन गए हैं। कांग्रेस को तो इन उपचुनाव में करार झटका लगना तय है। हाँ, यदि इन चुनावों का परिणाम जगन के पक्ष में जाता है तो यह साबित हो जाएगा कि जगन का कद कांग्रेस पार्टी से बड़ा हो गया है और कांग्रेस के पास जगन के समक्ष नतमस्तक होने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। अभिनेता से नेता बने चिरंजीवी को भी यदि कांग्रेस जगन के मुकाबले खड़ा करती है तो वर्तमान परिस्थितियों में जगन का पलड़ा भारी लगता है। जगन के प्रति राज्य की जनता में सहानुभूति की जो लहर चल चुकी है उसको भांपने में कांग्रेस नेतृत्व विफल रहा है जिसका उसे दूरगामी नुकसान होना तय है। सीबीआई को अपनी सुविधानुसार हांकती आई कांग्रेस शायद मायावती और जगन में फर्क करना भूल गई?