आजकल के नेताओं ने अभिनेताओं और सुंदरियों को भी मात कर दिया है। वे खूब बन-ठनकर अपने फोटो खिंचवाते हैं। फिर उन्हें अखबारों के मुखपृष्ठों और टीवी के पर्दों पर सजवा देते हैं। यह ‘छपास’ और ‘दिखास’ की बीमारी अब महामारी बन गई है। एक-एक नेता अपने फोटो छपवानें के लिए करोड़-दो करोड़ नहीं, करोडो रु. भी खर्च कर देता है। केरल के मार्क्सवादी मुख्यमंत्री ने शपथ लेने के पहले ही दिल्ली के बड़े अखबारों में पूरे पृष्ठ के विज्ञापन छपवाए।
विज्ञापन की इबारत तो विचित्र थी ही, उनका अपना फोटो इतना बड़ा था कि अखबारों का पृष्ठ भी छोटा पड़ता-सा लग रहा था। ये तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी है, जिसका अंतकरण अभी थोड़ा-बहुत सांस ले रहा है। सो, उसने सवाल उठा दिया है। उसने पूछा है कि इस सर्वहारा की पार्टी में यह व्यक्ति-पूजा कैसी? यह हिटलरी अदा क्यों?
लेकिन देश की अन्य पार्टियों का अंतःकरण तो पूरी तरह सोया हुआ है। हर नेता को अपना फोटो छपाना है। फोटो बड़ा, बात छोटी! या बात कुछ भी नहीं। तो भी फोटो तो होना ही है। पैसे दो और विज्ञापन छपाओ! ये पैसे किसके हैं? जनता के! खून-पसीने की कमाई के! सरकारी खजाने से नोटों की नदियां बह रही हैं। ऊपर नेताजी के फोटो और अंदर उनके चमचों के लेख! याने पहले पेड न्यूज और फिर पेड व्यूज़।
सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2015 में फैसला दिया कि सरकारी विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के ही चित्र जाएंगे लेकिन इस पर कई याचिकाएं लग गईं तो मार्च 2016 में ढील मिल गई। अब राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और उनके मंत्रियों के फोटो भी जा सकेंगे। अब हमारे नेतागण को अपनी चारित्रिक श्रेष्ठता और कर्मण्य पर इतना विश्वास नहीं रहा कि लोग खुद उनका प्रचार करें। अब उन्हें पाउडर-क्रीम बेचने वाली सुंदरियों और चड्डी-बनियान बेचने वाले पहलवानों की तरह अपने आप को बाजारु बनाने में ज़रा भी संकोच नहीं होता। देश में अब क्या कोई नेता आपको ऐसा दिखता है, जिसका फोटो लोग अपने घर में लगाते हों? सरकारें जो कुछ अच्छा करती हैं, उसकी जानकारी जनता को देना जरुरी है लेकिन करोड़ों-अरबों के विज्ञापन देना और उनमें अपना फोटो चिपकवा देना क्यों जरुरी है? वे भूल जाते हैं कि लोग इस फोटोबाजी से ऊबने लगे हैं। यों भी अखबारों और चैनलों के सतर्क पत्रकार अपने आप भी नेताओं के फोटो छापते ही हैं लेकिन वे गुणवत्ता के आधार पर छापते हैं। इसके लिए जरुरी यह है कि या तो फोटो खबर के लायक हो या खबर फोटो के लायक हो।