उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा, मणिपुर के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर मतदाता को अपने भाग्य का फैसला करने का अधिकार मिला है। यदि मतदाता सशक्त और स्वस्थ लोकतंत्र चाहता है तो उसे कम-से-कम मतदान में उत्साह का प्रदर्शन करना होगा और अधिकतम मतदान को संभव बनाना होगा। मतदान के प्रति मतदाता की उदासीनता ने ही लोकतंत्र को कमजोर बनाया है। अनेक मोर्चाें पर अधिकतम मतदान के लिये प्रयास किये जा रहे हैं, विशेषतः युवापीढ़ी इसके लिये जागरूक हुई है यह एक शुभ संकेत है। यही कारण है कि विधानसभा चुनावों के पहले चरण में पंजाब और गोवा में क्रमशः 78.6 और 83 प्रतिशत मतदान हुआ। इसके लिए चुनाव आयोग और ‘आओ मतदान करे’-अभियान से जुडे़ विभिन्न पक्ष बधाई के पात्र है। चुनाव आयोग को तो इसके लिये व्यापक प्रयत्न करने ही होंगे, जैसाकि इस बार उसने गोवा में पहली बार मतदान करने वाली लड़कियों को टैडी बियर और लड़कों को पेन बांटी है। चुनाव आयोग की यह प्रभावी भूमिका प्रशंसनीय है। वैसे, पंजाब और गोवा दोनों पहले भी अधिकतम मतदान वाले राज्य रहे हैं। इन दोनों राज्यों में जो पिछला विधानसभा चुनाव हुआ था, उसमें भी दोनों जगह मतदान का प्रतिशत 75 से ज्यादा था। अन्य राज्यों और वहां के मतदाताओं को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए।
चुनाव आयोग के निर्देश, आदेश, प्रोत्साहन योजनाएं एवं व्यवस्थाएं स्वागतयोग्य है, पर पर्याप्त नहीं है। इसमें मतदाता की जागरूकता, संकल्प और विवके ही प्रभावी भूमिका अदा करेंगे। क्योंकि जागरूक मतदाता ही लोकतंत्र का रक्षक होता है। वह यदि जागरूक हो जाए तो अनेक राजनीतिक विसंगतियों एवं विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है। इससे राजनीति को भ्रष्टाचार और अपराधीकरण से मुक्ति मिलेगी और लोकतंत्र मजबूत होगा। क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के नजरिए से पार्टियों ने बाहुबलियों को भी अपना उम्मीदवार बनाने में संकोच नहीं किया है, लेकिन ऐसे उम्मीदवारों को वोट न देकर मतदाता नकार सकता है। इसी तरह सजा पाए लोगों या जिनकी छवि आपराधिक है, मुकदमे भी चल रहे हैं, ऐसे उम्मीदवारों को रोकने का काम तो प्रभावी ढंग से मतदाता ही कर सकते हैं। राजनीति में भ्रष्ट लोगों के बढ़ते वर्चस्व के कारण नौकरशाही भी बेलगाम और भ्रष्ट हो गई है। इन सब का खमियाजा अंततः जनता को ही भुगतना पड़ता है। किसी भी लोकतांत्रिक अनुष्ठान या यज्ञ में संकल्प के बिना विजय नहीं मिल सकती है। इसलिए जनता यदि यह ठान ले कि वह पढ़े-लिखे और ईमानदार लोगों को ही वोट देगी तो कोई माफिया, बाहुबली और भ्रष्टाचारी चुनाव नहीं जीत सकता है और इसके लिये मतदान में अधिकतम हिस्सेदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है।
देखने में आ रहा है कि पिछले एक दशक में भारतीय जनता में अपने इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने की चेतना जागी है। पहले केवल गांवों में ही मतदान के प्रति उत्साह देखने को मिलता था, अब शहरों में भी उल्लेखनीय मतदान होने लगा है। शहरों में वे लोग भी वोट देने के लिए घर से निकलने लगे, जो पहले मतदान के दिन आसपास कहीं छुट्टी मनाने चले जाते थे। देश की राजनीति की दिशा एवं दशा तय करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मतदाता की उदासीनता को भंग करना जरूरी है। यहां का मतदाता चुनाव को लेकर बाकी राज्यों जितना उत्साहित नहीं रहता। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि इस प्रदेश में सामाजिक ध्रुवीकरण जरूरत से ज्यादा है। इस बार भी डर यही है कि मत प्रतिशत कहीं पिछली बार से कम न हो जाए।
यदि आप अपने मताधिकार का उपयोग नहीं करेंगे और मतदान के समय सही फैसला नहीं करेंगे तो आप अपना और अपनी आने वाली पीढ़ियों का भला नहीं कर सकते। ऐसी हालत में चर्चिल की वह भविष्यवाणी सही सिद्ध हो जाएगी कि ‘भारतीय शासन करना नहीं जानते और इनकी आजादी का मतलब इनकी बर्बादी होगा।’ इसलिए यह आप के विवेक की परीक्षा का समय है। आप अपने मत का अवश्य उपयोग करें और सही फैसला लेकर उन्हें चुनिए जो ईमानदारी के साथ सरकार चला सकें, नैतिक-स्वस्थ शासन दे सकें और जनता को भी न्याय दे सकें।
भारत में चुनाव सुधार एवं अनिवार्य मतदान के माध्यम से लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास संभव है। इसी ध्येय से मतदाता संगठन ने ‘चलो वोट देने’ अभियान का शुभारंभ किया गया है ताकि मतदान का औसत प्रतिशत 55 से 90-95 प्रतिशत तक ले जाया जा सके। मतदान करना मौलिक नागरिक अधिकार है और कर्तव्य भी है, इसके सही प्रयोग को बढ़ाकर ही लोकतांत्रिक प्रणाली में अपने निजी स्वार्थ साधने वाले स्वयंसेवी, अपराधी तथा भ्रष्ट लोगों की घुसपैठ को रोका जा सकता है। मतदाता की उदासीनता के कारण ही अपराधी और माफिया विधायक, सांसद और मंत्री तक बन जाते हैं। अब समय आ गया है कि मतदाता राज-काज को ऐसे लोगों से छुटकारा दिलाने के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करें। मतदाता अपनी पसंद जाहिर करके राजनीतिक दलों में घुसे अपराधियों और भ्रष्टाचारियों को राजनीति से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। चुनाव आयोग ने भी राजनीतिक दलों को जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगने का निर्देश दिया है। ऐसा करना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगने को भ्रष्ट आचरण बताया है। लोकतांत्रिक मूल्यों की प्रतिष्ठा एवं स्वस्थ शासन प्रणाली के लक्ष्य को हासिल करने के लिये मताधिकार के उपयोग को अनिवार्य बनाया जाना जरूरी है। अपने मताधिकार का सही प्रयोग कीजिए और दूसरे लोगों को भी यह बताइए कि हम अपनी राजनीति को अपने मतदान से साफ-सुथरा बना सकते हैं। आप चाहें तो उन लोगों को नकार सकते हैं जिन्होंने जनप्रतिनिधि के रूप में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है या गैर-जिम्मेदार रहे हैं। आप उन लोगों को चुन सकते हैं जिनकी छवि साफ-सुथरी अपराधमुक्त हो और जो सदन में आप की आवाज बन सकें।
मतदान को अनिवार्य किया जाना या उसके प्रतिशत बढ़ाने की अपेक्षा है, इसके लिये समूचे भारत में सभी मतदाताओं के स्वैच्छिक, गैरराजनैतिक, पंथ और सम्प्रदाय निरपेक्ष संगठन बनायेे जाने चाहिए। प्रत्येक नागरिक जागरूक हो, योग्य हो, अपने अधिकार एवं कर्तव्यों के प्रति सजग हो। तभी प्रजातंत्र सर्वगुणकारी श्रेष्ठ राज्य व्यवस्था सफल होती है। नागरिक सजगता ही प्रजातंत्र की रक्षा सुनिश्चित करती है। नागरिक सजगता बढ़ेगी तो लोकतंत्र की गुणवत्ता बढ़ेगी, लोकतंत्र में जनता को फायदा बढ़ेगा। जन-जन की आशा पूरी होगी। हमारे नेता, हमारे अधिकारी, हमारी व्यवस्था सिर्फ नागरिक सजगता के द्वारा ही सही और सुदृढ़ रह सकती है। आप प्रजातंत्र की गुणवत्ता बढ़ायेंगे तभी प्रजातंत्र आपके लिए हितकारी होगा, अन्यथा नहीं।
जिस देश के शासक यह कहते हैं कि जनता को सोचने की जरूरत नहीं है, सरकार उसके लिए देखेगी। जनता को बोलने की अपेक्षा नहीं है, सरकार उसके लिए बोलेगी और जनता को कुछ करने की जरूरत नहीं है, सरकार उसके लिए करेगी। क्या शासक इन घोषणाओं के द्वारा जनता को पंगु, अशक्त और निष्क्रिय बनाकर लोकतंत्र की हत्या नहीं कर रहे हैं? राष्ट्र के रूप में हमें जागरूक होना पड़ेगा। जो राष्ट्र या व्यक्ति केवल अच्छा समय आने का इंतजार करता रहेगा, वह कुछ हासिल नहीं कर पाएगा, क्योंकि सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र या व्यक्ति वही बनता है जो वक्त का इंतजार नहीं करता और स्वयं पहल करता है। इसलिए मतदाता को मतदान करते समय दल के बजाय अपने प्रतिनिधि के चाल-चलन, चरित्र पर खास ध्यान देना होगा। जब तक लोकतंत्र के लुटेरों को आप अपना प्रतिनिधि चुनते रहेंगे तब तक आपका कोई भला नहीं कर सकता है। आंखें बंद रखने से काम नहीं चलेगा। जनता को आंखें खोलनी ही होंगी। उसे अपने प्रत्याशियों के चाल-चलन और चरित्र को देख कर ही फैसला करना होगा।
एक दिन के राजा के रूप में पांच राज्यों के चुनाव में मतदाता को जागरूक होना ही होगा, इन राज्यों के उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला मतदाता के हाथों में हैं, किसके सिर पर जीत का सेहरा बांधना है, यह मतदाताओं के दिमाग में हैं। मतपेटियां क्या राज खोलेंगी, यह भविष्य के गर्भ में हैं। पर एक संदेश इन चुनावों सेे मिलेगा कि अब मतदाता जाग गया है और वही भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक अपराधियों पर नकेल डालेगा।