पाकिस्तान और चीन की जितनी तगड़ी मिलीभगत है, क्या उतनी किन्हीं अन्य दो देशों की है? पाकिस्तान के आतंकवादियों की मदद से चीन के उइगर मुसलमानों ने उसकी हालत खराब कर रखी है, फिर भी चीन आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान के साथ खड़ा मिलता है। अभी-अभी उसने सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी कमेटी में फिर पाकिस्तान की पीठ थपथपा दी है। इस कमेटी के 15 सदस्यों में से 14 ने भारत के उस प्रस्ताव का समर्थन किया था, जिसमें उसने ‘जैश-ए-मुहम्मद’ के सरगना मसूद अज़हर को आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव रखा था।
इस कमेटी के फैसले सर्वसम्मति से होते हैं। इसमें मत-विभाजन नहीं होता। यदि मत-विभाजन होता तो चीन कहीं का नहीं रहता। अकेला पड़ जाता लेकिन अब चीन ने भारत के प्रस्ताव को ‘वीटो’ कर दिया है। अकेले चीन ने ऐसा क्यों किया? उसके प्रतिनिधि से न्यूयार्क में पत्रकार ने जब यह सवाल पूछा तो वह बगलें झांकने लगा। उसने कोई ठोस कारण नहीं बताया। वह सिर्फ यह बोला कि कुछ तकनीकी शर्तें पूरी नहीं हुईं, इसीलिए अजहर को आतंकी घोषित करना उचित नहीं है। जब उससे पूछा गया कि वे कौनसी शर्तें हैं तो उसका जवाब यह था कि ‘वे तकनीकी शर्तें हैं।’
इस चीनी जवाब का कोई जवाब नहीं है। वह लाजवाब है। 2 जनवरी को पठानकोट में हुए हमले के बाद भारत ने संयुक्त राष्ट्र से अजहर को पकड़वाने की अपील की थी, अब उसे पाकिस्तान ने भी रद्द कर दिया है। पाकिस्तान की जिस खोजी टीम को पठानकोट के सैन्य अड्डे में घुसकर जांच करने दी गई है, उसने पाकिस्तान पहुंचते ही भारत के आरोपों को निराधार घोषित कर दिया है। अर्थात अजहर के मामले में चीन ने पाकिस्तान का आंख मींचकर समर्थन कर दिया है।
चीन का यह रवैया क्या यह सिद्ध नहीं करता कि भारत की विदेश नीति विफल हो रही है? यह विदेश नीति है या दब्बू नीति है? अहमदाबाद में चीनी राष्ट्रपति शी चिन पिंग के साथ झूला झूलने वाले हमारे प्रधानमंत्री को उसने न्यूयार्क में भी झुला झुला दिया दिया है।
ओबामा के परमाणु सम्मेलन में मोदी कितनी ही जुमलेबाजी करें लेकिन उनमें इतनी हिम्मत नहीं है कि वे शी चिन पिंग से पूछते कि आप इन आतंकियों को प्रश्रय देकर ओबामा के इस सम्मेलन पर पानी क्यों फेर रहे हैं? यह सवाल स्वयं ओबामा को भी शी से करना चाहिए था। एक तरफ तो आप परमाणु शस्त्रास्त्रों को आतंकियों के हाथ नहीं लगने देने के लिए विश्व सम्मेलन करते हैं और दूसरी तरफ आप ही सांपों को दूध पिला रहे हैं। आतंकियों की पीठ ठोक कर पाकिस्तान और चीन खुद का नुकसान भी कर रहे हैं। यह उनका अपना मामला है लेकिन यहां बुनियादी सवाल यही है कि भारत की सुरक्षा के सवाल पर यह सरकार हकलाहट की मुद्रा में क्यों है?