हुर्रियत कान्फ्रेंस के एक धड़े के अध्यक्ष सैयद अली गिलानी पिछले तीन चार महीनों से दिल्ली में अपना इलाज करवा रहे थे । उनकी उम्र ८४ साल हो गई है । बुढ़ापे से जो बीमारियाँ पैदा होती हैं , उनका वे भी सामना कर रहे हैं । अब उनको वापिस श्रीनगर आना था । राजनीति , चाहे अलगाव की हो चाहे जुड़ाव की , में लगे सभी लोगों की इच्छा रहती ही है कि जब घर वापिसी हो तो घर में उनका ज़ोरदार स्वागत होना चाहिये । यह इच्छा सैयद अली गिलानी की भी रहती है । राजनीति में स्वागत का तरीक़ा वही पुराना है । स्वागत में एक विशाल रैली की जाये । जितनी बड़ी रैली , उतना भव्य स्वागत और उतनी ही नेता जी की ताक़त । लेकिन पिछले लगभग पाँच साल से गिलानी को कश्मीर घाटी में रैली करने की अनुमति नहीं दी जा रही थी । इसलिये उनकी मुट्ठियाँ बन्द थी । बन्द मुट्ठियाँ में क्या है , इसका भय बना रहता है । ताक़त का भी और प्रभाव का भी । गिलानी के दिमाग़ और उनकी ज़ुबान में क्या है , इसके बारे में किसी को कोई संशय नहीं है । वे अलगाववादी समूह के नेता हैं और कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करवाने के समर्थक हैं । वे आतंकवादियों का अप्पर ग्राउंड मुखौटा हैं । वे जम्मू कश्मीर में लोकतांत्रिक पद्धति से हो रहे चुनावों के ख़िलाफ़ हैं । लेकिन प्रश्न है कि बदलें हालात में उनकी ताक़त कितनी है और कश्मीर घाटी के लोगों पर उनका प्रभाव कितना है ? अन्दर खाते गिलानी भी नहीं चाहते कि इसके परीक्षण का कभी कोई मौक़ा आये । इसलिये गिलानी कश्मीर में रैली की अनुमति माँगते थे और पिरदेश सरकार अनुमति देने से इन्कार कर देती थी । इससे दोनों पक्षों की इज़्ज़त बची रहती थी । सरकार अपनी पीठ थपथपा लेती थी कि उसने अलगाव वादियों को अपनी हरकतें जारी रखने नहीं दी और गिलानी की मुट्ठियाँ में कितनी ताक़त है , इसका भय बवा रहता था और इसी भ्रम में उनकी राजनीति चलती रहती थी ।
लेकिन पिछले दिनों जम्मू कश्मीर विधान सभा के लिये हुये चुनावों ने सैयद अली गिलानी के आतंक और तथाकथित ताक़त के क़िले में पहली सेंध लगाई । हुर्रियत कान्फ्रेंस ने कश्मीर घाटी में चुनाव के बहिष्कार की घोषणा की लेकिन घाटी के लोगों ने इस घोषणा की ओर ध्यान नहीं दिया । जितनी बड़ी संख्या में कश्मीर घाटी के लोगों ने इस बार मतदान किया उससे अन्तर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को भी स्वीकार करना पड़ा कि लोगों ने अलगाववादियों की बहिष्कार की अपील को नकार दिया है । घाटी में सैयद अली शाह जैसों की ताक़त की असलियत सामने आने लगी थी । इससे यक़ीनन गिलानी तमतमाये हुये थे । आतंकवाद छद्म ताक़त के भय पर ही फलता फूलता है । चुनावों में लोगों की बड़ी संख्या में शमूलियत ने इस ताक़त की पहली पर्त उतार दी थी ।
इसलिये सैयद अली शाह गिलानी के लिये जरुरी हो गया था कि किसी भी क़ीमत पर इसकी दूसरी परत को बचाये रखा जाये । यह अवसर दो दिन पहले श्रीनगर में गिलानी की घर वापिसी के मौक़े पर आया । सैयद गिलानी इस अवसर पर एक रैली करना चाहते थे । उनका लगता होगा कि सरकार रैली की अनुमति देने से इन्कार कर देगी और हुर्रियत कान्फ्रेंस की जनता में असली ताक़त को लेकर भ्रम बना रहेगा । लेकिन दुर्भाग्य इस बार सैयद के मुक़ाबले में भी सैयद ही था । यह मुफ़्ती मोहम्मद सैयद और वह सैयद अली शाह गिलानी । सैयद जाने सैयद का भाषा । यदि घाटी में गिलान वाले सैयद की ताक़त बनी रही तो इस मुफ़्ती सैयद को कौन पूछेगा । लोकतंत्र में ज़िन्दा रहना है तो अंतिम फ़ैसला तो लोग ही करेंगे । इसलिये मुफ़्ती मोहम्मद सैयद ने गिलान वाले सैयद को घर वापिसी के अवसर पर रैली करने की इजाज़त दे दी । लो बच्चा ! दिखा लो अपनी ताक़त , ताकि तुम्हारी औक़ात भी घाटी में सभी को पता चल जाये । अभी तक तो गिलान वाले सैयद का रुतबा दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास ने ही बना रखा था ।
अब अपने गिलान वाले सैयद सचमुच संकट में फँस गये । बुढ़ापे में फ़ज़ीहत की नौबत आ गई । सबसे बड़े चेले मुसरत आलम को भी मैदान में उतारा । जुटाओ बच्चा घाटी भर से भीड़ । सारी शिष्य मंडली घाटी में जुट गई सैयद अली शाह की घर वापिसी के मौक़े पर भीड़ जुटाने में । लेकिन कुल मिला कर कितने लोग जुटे ? जो अलगाववादियों का समर्थन ही करता है , ऐसा मीडिया भी हज़ारों की भीड़ कहने का साहस नहीं जुटा पाया । मामला सैकड़ों तक निपट गया । कम से कम पाँच सौ और ज़्यादा से ज़्यादा एक हज़ार । ऐसी घर वापिसी का नोटिस मीडिया भी क्यों लेता ? तब ख़बर बनाने की चिन्ता हुई । ख़बर तो पाकिस्तान ज़िन्दाबाद कहने और पाकिस्तान का झंडा फहराने से ही बनती है । इसलिये यह प्रयोग भी किया गया । ध्यान रहे , यह उसी गिलानी की घर वापिसी थी , जिसकी एक हुंकार को सुनने के लिये कभी श्रीनगर में पलक झपकते ही हज़ारों हज़ारों की भीड़ एकत्रित हो जाती थी । गिलानी घाटी में पचासहजारी से एकहजारी बन गये । मुफ़्ती मोहम्मद वाले सैयद ने गिलान वाले सैयद की मुट्ठी खुलवा दी । मुट्ठी खुली तो पता चला कि खोदा पहाड़ और निकला
लेकिन संख्या चाहे जितनी भी कम हो , आतंक का पैग़ाम भेजने वाले मुट्ठी भर लोगों से भी डर तो फैलता ही है । आतंक इसी डर के बलबूते जीता है । उसके समर्थक आतंक के बलबूते ही बहुसंख्यक समाज को बंधक बनाते हैं । इसलिये जम्मू कष्मीर में भी और उसके बाहर भी सैयद अली शाह और मुसरत आलम की इन हरकतों से ग़ुस्सा और भय फाँसना लाज़िमी था । कश्मीर घाटी का शिया समाज भय की मुद्रा में आ गया और और घाटी के बाहर के लोग ग़ुस्से से लाल पीले होने लगे । शिया समाज का डरना स्वाभाविक ही था । आजकल मुसलमानों की दुनिया भर में सबसे ज़्यादा मार शिया समाज को ही सहनी पड़ती है । मुट्ठियाँ तान कर जिस पाकिस्तान का झंडा गिलानी और मुसरत आलम के शिष्य फहरा रहे थे उस पाकिस्तान में मुसलमान शिया समाज को ही अपना निशाना बना रहे हैं और उनके पूजा स्थलों में बम विस्फोट कर रहे हैं । शेष भारत में ग़ुस्सा फूटना स्वाभाविक ही है । हिमाक़त की भी हद होती है । कोई हिन्दोस्तान की धरती पर खड़े होकर हाफ़िज़ सैयद की शान में क़सीदे पढ़े , यह कोईभी कैसे स्वीकार कर सकता है ?
इस पूरे प्रकरण में एक और विरोधाभास दिखाई देता है । गिलान वाले सैयद अहमद शाह और उसकी नस्ल के दूसरे लोगों को सरकार सुरक्षा भी मुहैया करवाती है । उनपर हज़ारों करोड़ रुपया प्रदेश सरकार का प्रतिवर्ष ख़र्च होता है । यह तथ्य सरकार ने स्वयं ही स्वीकार किया है । देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व है , इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता । लेकिन गिलानी और उसकी नस्ल के दूसरे कुनबे की सुरक्षा के लिये वही पद्धति इस्तेमाल की जानी चाहिये जो प्रदेश के सामान्य लोगों के लिये इस्तेमाल की जा रही है । इन लोगों के इर्द गिर्द सुरक्षा कर्मियों का तामझाम खड़ा करके सरकार स्वयं ही अवाम की नज़र में इनका क़द बढ़ाती है । मेंढक को फुला फुला कर उसे बैल बनाने की कोशिश करती है । गिलान को ही तेहरान दिखाने की कोशिश करती है । सरकार की इन हरकतों से भी गिलानी के कुनबे का अवाम में रुआब और रुतबा बढ़ता है । गिलानी और मुसरत आलम जैसों के रुआब से प्रदेश के लोग तभी मुक्त होंगे यदि पहले सरकार उससे मुक्त होंगे । यदि अपने मुफ़्ती मोहम्मद नाम वाले सैयद , गिलान वाले सैयद को स्वयं तो उसके घर जाकर गले लगाते रहेंगे और अवाम से कहते फिरें कि गिलान वाले को घास न डालो , तो यह कैसे संभव होगा ? लेकिन प्रदेश के अवाम को फिर भी सलाम । उसने तो गिलान वाले सैयद और उनके कुनबे को न तो विधान सभा के चुनावों में घास डाला और न ही उसकी घर वापिसी की रैली में । अब तो दूसरे सैयद , प्रदेश के मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद को ही बताना है कि उनके अपने इरादे क्या हैं ?
सरकार ने गिलानी और आलम के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में केस दर्ज कर लिये हैं । मुसरत आलम को गिरफ़्तार भी कर लिया । क़ानून तो काम करेगा ही । मुफ़्ती मोहम्मद नाम के सैयद ने गिलान वाले सैयद की ताक़त को शरेआम बेपर्दा भी कर दिया । यहाँ तक तो ठीक है , लेकिन सरकार को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिये गिलानी सरकारी सुरक्षा का लाभ उठाते हुये , प्रदेश भर में अलगाववादियों का कुनबा फिर से एकत्रित न करने लगें ।