हिन्दी की एक बहुत प्रसिद्ध कहावत है कि ”क्षमा बडन को चाहिए छोटन को उत्पात” जिसका तात्पर्य है कि कई बार छोटो से कई छोटी-बडी गलतियाँ हो जाती है लेकिन बडो़ को बडा मन रखते हुए उन्हे माफ कर देना चाहिए, परन्तु यदि हम वर्तमान भारतीय परिदृष्य पर एक नजर डाले तो हमें ऐेसे कई उदाहरण देखने को मिलेगे जिसमें इस कहावत को पूर्णतः उलटकर ही रख दिया गया है मेरी यह सोच भारत में बडे-बडे लोगों द्वारा किये जा रहे बडे -बडे घोटालों के संदर्भ मे बनी है जैसे कि यदि हम मात्र 1 लाख 86 हजार करोड रू. के कोयला घोटाले की ही बात करे तो इसका उद्भव स्थल भारतीय सविधान के सबसे षक्तिषाली व बडे सत्ता केन्द्र ‘प्रधानमंत्री कार्यालय नजर आता है व आरोपो की कुछ बूँदे तो प्रधानमंत्री के पद पर भी गिरी है, या अपरोक्ष किसी ना किसी रूप मे तो प्रधानमंत्री की इसमें भागीदारी या सहमति नजर आती है, क्यूकि अपराध करना यदि जूर्म है तो अपराध सहना या ज्ञान/भान होने के बावजुद भी जुर्म होने देना भी किसी अपराध से कम नही है, ओर यह अपराध ओर भी बड़ा है यदि वह देखने वाना व्यक्ति भारतीय संविधान का सबसे शक्ति सम्पन्न व्यक्ति प्रधानमंत्री हो, उससे भी बड़ी चुक या गलती तो यह है कि ”भारतीय घोटाला इतिहास के इतने बडे घोटाले की फाइल्स का प्रधानमंत्री कार्यालय से गायब हो जाना” , ओर उसके बाद उनको खोजने ढूँढने का ड्रामा । भारत मे जहाँ एक ओर तो एक सामान्य प्रमाणपत्र के न होने पर या गुम हो जाने पर किसी गरीब व्यक्ति का कार्य आगे नहीं बढ़ता है ऐसे में इतेने बडे घोटाले की फाइलों का प्रधानमंत्री कार्यालय जैसे ‘अतिसुरक्षित स्थान’ से गायब होना ”करेला उपर से नीम चढा” कहावत को चरितार्थ करता है, साथ ही घोटाले के बाद फाइलों का गायब होना, घोटाले का पर्दाफाष करने वालो की गंभीरता को बँया करता है। इस लापरवाही पूर्ण कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए उतनी कम है। स्कूल में बच्चे के कार्य की कापी के गुम हो जाने पर षिक्षक उसे दण्डित करता है परन्तु दूसरी ओर हजारों करोड रूपये के घोटाले की फाइलो के गायब होने पर किसी की जवाबदेही सुनिष्चित नही है, ओर इस सबके बावजूद ये बडे बडे लोग इसे भूलाने में लगे है ताकि छोटे लोग अपनी आदत के अनुरूप इनको क्षमा कर आगे बढ़ जाए।
भारतीय व्यवस्था मे होने वाले घोटालो को देखे तो ऐसा लगता है कि हम चवन्नीयों की चौकीदारी मे लगे है व दूसरी तरफ करोड़ो के खजाने भ्रष्टतन्त्र की भेंट चढ़ रहे है यह मात्र कोयला घोटाले की बात नही है 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला 70000 हजार करोड का राष्ट्रमंण्डल खेल घोटाला, सत्यम घोटाला , आदर्ष हाउसिग सोसायटी घोटाला ऐसे कई घोटाले है जिन्हे देखकर यह समझ में आता हे कि सभी एक से बडकर एक ‘बडे’ तो घोटाले में लगे है ओर हमारा सत्ता तन्त्र जेबकतरों व चवन्निया चुराने वालो को पकड़कर पदक जितने में लगा है । क्योकि यदि सत्य को उजागर करने के बाद घोटाले के दोषियों को सजा न मिले तो रहस्योदघाटन के ज्यादा मायने नही बचते इसलिए यह सुनिष्चित करना आवष्यक है कि जितनी ताकत घोटालो को उजागर करने मे लगी है उसी ताकत से दोषियों को दण्डित भी किया जाए।
इन अरबों रू. के घोटालो के बावजुद सभी बडे बडे लोग आकांक्षा रखते है कि छोटे कुछ दिन इन घोटालो के बारे मे बात करते -करते इन्हे भूल जाएगे व उन्हे क्षमा कर देगे इसीलिए वे छोटो से क्षमा व स्वयं से उत्पात की अपेक्षा रखते हे कि वे इसी प्रकार एक के बाद बडे बडे घोटाले करते जाए व छोटे -आम आदमी उन्हे भूलते हुए उन्हे माफ करते जाए इसीलिए उन्हे चाहिए ”छोटन से क्षमा” व वे खुद करेगे उत्पात।