भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने क्रांतिकारी बीड़ा उठाया है। उसने कई प्रांतों की लगभग 50 हजार मुस्लिम महिलाओं के दस्तखत ले लिये हैं। ये दस्तखत हैं, उन महिलाओं के जिन्होंने ‘तिहरे तलाक’ का विरोध किया है। अच्छा हो कि सिर्फ 50 हजार मुस्लिम महिलाएं ही नहीं, 5 करोड़ महिलाएं इस विरोध-पत्र पर दस्तखत करें। सरकार और गैर-सरकारी सभी संस्थाओं को तलाक की इस सड़ी-गली परंपरा का विरोध करना चाहिए। जिन्होंने दस्तखत किए हैं, वे तो पढ़ी-लिखी या साक्षर महिलाएं हैं लेकिन जो करोड़ों निरक्षर महिलाएं हैं, वे इस कुप्रथा से ज्यादा त्रस्त हैं। वे गरीब हैं, ग्रामीण हैं, बेरोजगार हैं, बेजुबान हैं, असहाय हैं, निरुपाय हैं। उन्हें इस आंदोलन से जोड़ने की ज्यादा जरुरत हैं।
इनमें से कई तो ऐसी हैं, जो इस तिहरे तलाक को ठीक भी समझती हैं। उनके जन्म से ही उनके दिमाग में यह भर दिया जाता है कि उनका पति यदि उन्हें सिर्फ तीन बार ‘तलाक, तलाक, तलाक’ बोल दे तो उनका निकाह रद्द हो जाएगा। उन्हें यह समझाने की जरुरत है कि कुरान-शरीफ में यह कहीं नहीं लिखा है। यह अरब लोगों की परंपरा है। उसे आंख मींचकर हम लोग क्यों मानें?
कुरान शरीफ में तो महिलाओं की सुरक्षा और आदर की कई हिदायतें हैं। इसके अलावा हमें एक बुनियादी बात सबसे पहले समझनी चाहिए। वह यह कि हर धर्म, हर मजहब और हर नैतिकता अपने देश और काल से प्रभावित होती है। समय निरंतर बदलता रहता है और जब देश भी बदल जाए तो पुरानी घिसी-पिटी बातों से चिपके रहना तो अपने धर्म और मजहब का उल्लंघन ही है। उसके मृत या अर्धमृत अंगों को अपने कंधों पर ढोते रहना है।
यह सिद्धांत सभी धर्मों पर लागू होता है। यदि नहीं तो क्या रामायण और क्या महाभारत की हर बात को हम अभी भी माने चले जा सकते हैं? क्या राजा दशरथ की तरह कई पत्नियां और रानी द्रौपदी की तरह कई पति आज भी हिंदू लोग रख सकते हैं या उन्हें रखना चाहिए? सभी धर्मों में शाश्वत बातें बहुत कम होती हैं। उन्हें जरुर डटकर पकड़े रहना चाहिए लेकिन देश-काल से बाधित बातों को छोड़ने की तैयारी बनी रहनी चाहिए।
यह ‘तिहरा तलाक’ इसी श्रेणी में आता है। ‘निकाह हलाला’ इससे भी बदतर है। इसके मुताबिक यदि कोई तलाकशुदा औरत अपने पति से दुबारा मिलना चाहे तो किसी अन्य पुरुष के साथ उसे पहले शादी और हमबिस्तरी करनी पड़ेगी। कितनी वाहियात बात है, यह! अनेक गैर-अरब राष्ट्रों ने इस्लाम कुबूल किया है लेकिन उन्होंने अरबों के रीति-रिवाज कुबूल नहीं किए। पठान लोग आज भी शरिया की बजाय अपनी ‘पश्तूनवाली’ का पालन करते हैं। इसी तरह ईरान, अल्जीरिया, मिस्र आदि ने भी कई पोंगापंथी कानूनों को रद्द कर दिया है। भारतीय मुसलमानों को तो इस मामले में सबसे आगे होना चाहिए, क्योंकि उनके पास भारतीय परंपराओं और परिवर्तन की अमूल्य धरोहर है, जो किसी भी अन्य मुस्लिम देश के पास नहीं है।