नई दिल्ली। केन्द्र आयुष चिकित्सकों के प्रति पक्षपात क्यों कर रहा है ? ऐसा आयुष मंत्रालय के अधीन काम करनें वाले डॉक्टरों का कहना है। नाम न छापने की शर्त पर एक डॉक्टर नें अपने मन की व्यथा को व्यक्त करते हुए कहा कि 26 मई, 2016 को माननीय प्रधानमंत्री जी नें अपने निर्णय को घोषित करते हुए देश की स्वास्थ्य सेवाओं के मद्देनजर डॉक्टरों की कमीं को देखते हुए केन्द्र के सभी डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाकर 65 वर्ष कर दिया। उपरोक्त घोषणा में स्पष्ट रूप से केन्द्र सरकार के सभी डॉक्टरों को सम्मिलित किया गया था।
वहीं, प्रधानमंत्री के इस निर्णय को जहाँ हाथों-हाथ लेते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय नें महज चार दिनों के अंदर एक नोटिफिकेशन के द्वारा एलोपैथिक डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र 65 वर्ष कर दी। वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार द्वारा आयुष के चिकित्सकों के प्रति पक्षपातपूर्ण एवं उदासीन रवैया अपनाया जा रहा है। अस्वाभाविक विलंब के साथ प्रधानमंत्री की घोषणा के बावजूद आयुष मंत्रालय इस संबंध में चुप्पी साधे हुए है।
आश्चर्य की बात है कि जहाँ एक ओर केन्द्र सरकार द्वारा आयुष चिकित्सा पद्धति को मुख्यधारा में शामिल करनें के लिए प्रतिबद्ध है वहीं प्रधानमंत्री की स्पष्ट घोषणा के बावजूद आयुष चिकित्सकों के प्रति सरकार की बेरूखी बिल्कुल निराशाजनक है। एक ओर सरकार पूरी दुनिया में योग और आर्युवेद का ढिंढोरा पीट रही है और दूसरी तरफ अपने ही आयुष चिकित्सकों के प्रति संवेदनहीन हो चली है। एक ही डिस्पेंसरी में काम करने वाले डॉक्टरों में से जहाँ एलोपैथिक डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर सम्मानित किया गया वहीं आयुष के चिकित्सकों के प्रति भेद-भाव का परिचय देकर रिटायरमेंट कर दिया जा रहा है।