भारतीय सेना के पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक में आतंकवादियों को मार गिराने पर सवाल उठाने वालों पर जाने-माने फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर ने कहा है असली हीरो तो जवान होते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान को करारा जवाब देने के साथ ही दुनियाभर में अलग-थलग कर देने की रणनीति को लेकर राजनीतिक दलों के कुछ नेता अपने नफा-नुकसान को भाँपते हुए सेना पर सवाल उठा रहे हैं। राजनीतिक दलों के ऐसे नेताओं को तो जनता ने चारों तरफ से घेर लिया है। राजनीतिक दलों के नेताओं की कुंठा तो समझ में आती है पर कला की आड़ में भारतीय सेना की आलोचना समझ से परे हैं। ऐसा ही एक वाक्या हाल ही में इंदौर में हुआ। वामपंथियों के लिए चुनावी मजमा लगाने का काम करती रही नाट्य संस्था इप्टा के समारोह में भी सेना के सर्जिकल स्ट्राइक की आलोचना करने पर जनता ने हंगामा कर दिया। इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एम एस सथ्यू ने अपने भाषण में सर्जिकल स्ट्राइक को शर्मनाक करार दिया। लगता है वामपंथी कचरे के कारण सथ्यू का कलाकार भी अंदर से मर गया है और अब केवल मरती विचाराधारा की डुगडुगी बजाने के चक्कर में सेना पर शर्मनाक बयान दे दिया। सथ्यू जी ऐसा करके आपने देश का अपमान तो किया है साथ ही कलाकार बिरादरी का अपमान भी किया है। आपको शर्म आनी चाहिए सथ्यू साहब।
इसमें कोई शक नहीं है कि वामपंथ की इस पुरातन नाट्य संस्था ने अनेक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकार देश को दिए हैं। कैफी आजमी से लेकर बलराज साहनी तक, ए.के. हंगल से लेकर शबाना आजमी तक, हबीब तनवीर से लेकर अंजान श्रीवास्तव तक ऐसे अनेक महान कलाकारों ने वाम विचाराधारा के बावजूद लोगों के दिल में अपनी खास जगह बनाई है। वैचारिक रूप से वामपंथ का घोर विरोधी होने के बावजूद बतौर कलाकार मैं भी इनका अनन्य प्रशंसक रहा हूं। दुर्भाग्यजनक बात तो यह है कि इंदौर में हुए इप्टा के राष्ट्रीय सम्मेलन में कला, कलाकार और कलाधर्मिता पर कोई खास रचनात्मक, सृजनात्मक और परिणामात्मक चर्चा नहीं हुई। पूरा सम्मेलन राजनीतिक विचारधारा को समर्पित रहा। सम्मेलन में दिए गए समस्त भाषण एक विचारधारा को पोषित, पल्लवित और पुष्पित करने के लिए ही दिए गए। चलिए आपका मंच है, अपनी जय-जय करिये, इस सब पर किसी को ऐतराज भी नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में किसी भी संगठन को चाहे वह सांस्कृतिक संगठन ही क्यों न हो, अपनी विचारधारा को बढ़ावा देने का अधिकार है। समारोह में किसने क्या गाया और क्या बजाया, इस पर भी किसी को आपत्ति नहीं है। आपत्ति है तो सथ्यू के भाषण के इस कथन पर कि सर्जिकल स्ट्राइक शर्मनाक है। देश जनता है कि वामदलों की विचाराधारा में अपने ही देश को कोसा जाता रहा है। जिस महान देश की लोकतांत्रिक परम्परा के कारण नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूर्ण अधिकार मिला है, उसी का फायदा उठाते हुए राष्ट्र को कोसा जाता है। राजनीतिक कारणों से वामपंथी भारतीय जनता पार्टी की आलोचना करते हैं तो करते रहिये पर सेना को निशाना बनाना कहां तक सही है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या सथ्यू जैसे लोगों को देश का नागरिक रहने का अधिकार है। जो अपने देश की सेना द्वारा राष्ट्र की संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा के लिए शत्रु देश के विरूद्ध की गई कार्रवाई को शर्मनाक बताता हो? क्या ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए, जो कि अपने देश की सेना के मनोबल को तोड़ने वाला वक्तव्य देता हो?
सथ्यू के भाषण से लोगों को गहन वेदना और पीड़ा पहुंची है। पीड़ा और वेदना होने पर मुझे बिल्कुल आश्चर्य नहीं हुआ। सथ्यू जिस राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसके डीएनए में ही राष्ट्रद्रोह है। याद कीजिए भारत पर चीन के आक्रमण को। जब चीन ने पंचशील के सिद्धांत को अंगूठा दिखाकर भारत के खिलाफ विश्वासघात करते हुए आक्रमण किया, तो सथ्यू की कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन के हमले को सही बताते हुए समर्थन किया। यह दुनिया में पहला मौका था, जब किसी देश का एक राजनीतिक दल अपने देश पर हो रहे हमले का न केवल समर्थन करे, बल्कि हमलावार शत्रु देश का सहयोग भी करे। 1962 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने जिस देशद्रोह की परंपरा के बीज बोये थे, उसी विषैली फ़सल को सथ्यू जैसे कुछ बचे-खुचे लोग आज भी सींचने की कोशिश कर रहे हैं।
कहने को तो यह लतीफ़ा है कि जब रूस में बर्फ गिरती है तो भारत में वामपंथी भी गर्मी में भी कोट पहन लेते हैं। सथ्यू जैसे लोग इस लतीफे को सही साबित करने में जुटे हुए हैं। पता नहीं इन लोगों ने रूस की सर्जिकल ऑपरेशन को समर्थन करने का ऐलान नहीं सुना। रूस ने समर्थन देते हुए यह भी कहा कि भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार है, तब ऐसे में सथ्यूनुमा लोग सर्जिकल ऑपरेशन को शर्मनाक बताकर अब पाकिस्तान का नमक चुकाने की कोशिश कर रहे हैं क्या हैं? पाकिस्तान की ख़ुफिया एजेंसी आईएसआई ने नशीले पदार्थों की खेप बेचकर अर्जित की गई काली कमाई से भारत में विभीषणों की एक लंबी श्रृंखला तैयार कर ली है? सथ्यू जैसे लोग विभीषणों के सरगना हैं। राजनीतिक मतभिन्नता और मदभेद होते हैं। इसके बाबजूद सब एक दूसरे का सम्मान करते हैं। वायु पुराण में कहा गया है कि
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पयः ।
जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे ।।
यानी जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं; एक ही गाँव के अंदर अलग-अलग कुऐं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है, एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है। जितने मुंह उतनी बातें लोकतंत्र का आधारभूत सिद्धांत हैं, किन्तु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि, आप शत्रु के डेरे में खड़े होकर उसका समर्थन करने लग जाएं। जब सथ्यू भारतीय सेना के सर्जिकल ऑपरेशन को शर्मनाक करार देते हैं तब वे निश्चित रूप से पाकिस्तान का समर्थन कर होते हैं।
पूरी दुनिया से वामपंथ समाप्त होता जा रहा है। भारत में तो लगभग समाप्त हो चुका है। पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा जैसे राज्यों में भी मजबूत आधार वाले वाम दलों की जमीन खिसकती जा रही है। वामपंथ की नर्सरी माने जाने वाले पश्चिम बंगाल में तीस साल तक लाल झंडा फहराने वाले वाम दलों को तृणमूल कांग्रेस ने उठाकर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया है। लगातार दो चुनाव हारने के बाद भी वामपंथी कोई सबक सीखने को तैयार नहीं हैं। वे भारतीयता को स्वीकार ही नहीं कर पाते। उनके हीरो देशी नहीं हैं, विदेशी मार्क्स और लेनिन हैं। वो किसी भारतीय से प्रेरणा नहीं लेते, वे चेकेग्वारा से प्रेरणा लेते हैं। आम भारतीय धर्मप्राण हैं, परंतु वामपंथियों को धर्म अफीम प्रतीत होती है। साधारण भारतीय की नसों में राष्ट्रवाद लहू बनकर दौड़ता है मगर वामपंथियों की निष्ठा भारत के प्रति न होकर उसके शत्रुओं के प्रति है। अगर ऐसा न होता तो सथ्यू जैसा खाटी कम्युनिस्ट इंडियन आर्मी के सर्जिकल ऑपरेशन को शर्मनाक क्यों कहता? क्या इसकी वजह भारत के वामपंथी दलों को चीन, रूस और क्यूबा से विदेशी सहायता मिलना है। ऐसे आस्तीन के सांप विदेशी फंडिंग पर पल रहे हैं। क्या इन्हें भारत विरोधी ताकतों से इस बात के लिए पैसा मिल रहा है कि ये भारत के विकास में अड़ंगा डालें? आंध्रप्रदेश की परमाणु परियोजना का विरोध करने वालों की विचारधारा क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है।
पूरे देश में रेड कॉरिडोर बनता जा रहा है। देशभर के 130 जिलों में नक्सलवाद अपने चरम पर है। आतंकवाद से ज्यादा हत्याएं नक्सलवाद के खाते में हैं। आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक नक्सलवाद है। भारत को जितना खतरा आतंकवाद से नहीं है, उससे कई गुना अधिक खतरा नक्सलवाद से है। नक्सलियों को हथियार और पैसा भारत विरोधी शक्तियों से मिल रहा है। भारत की जांबाज और बहादुर सेना शत्रु देश पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से निपटने में पूरी तरह सक्षम है, मगर नक्सलवाद की समस्या यह है कि इसमें सुरक्षाबलों को, अपने ही देश में, अपनी ही सीमा के अंदर अपने ही लोगों से लड़ना पड़ता है। शत्रुओं के प्रति निर्दयता, निर्ममता, नीतिगत, नैतिक और शास्त्र सम्मत है, किन्तु अपने ही नागरिकों के विरूद्ध निर्दयता को अनुमति नहीं दी जा सकती है। यही वजह है कि आज नक्सलवाद का दायरा बढ़ता जा रहा है और ये आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है।
यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि नक्सलवाद की विचारधारा क्या है? वामपंथ की विचारधारा में दीक्षित और संस्कारित नक्सली भारत में आतंक का घिनौना इतिहास लिख रहे हैं। यही कारण है कि सथ्यू जैसे वामपंथियों के पास नक्सलवाद के ख़िलाफ़ बोलने के लिए एक शब्द नहीं है, किन्तु भारतीय सेना के सर्जिकल ऑपरेशन को शर्मनाक बताने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता है।
कन्हैया भी वामपंथी है, जो जे.एन.यू. में राष्ट्र विरोधी नारे लगा रहा था। वो भी चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था कि कश्मीर को आजाद कराकर रहेंगे। आतंकवादी अफ़जल की जयंती मना रहा था। याकूब मेमन की फांसी का विरोध कर रहा था। हैदाराबाद के रोहित वेमुला का प्रेरणा स्त्रोत देशद्रोही गद्दार अफ़जल गुरू था। रोहित ने भी हॉस्टल में अपने कमरे को अफ़जल के पोस्टर से सजा रखा था। कन्हैया और रोहित जैसे अनेक वामपंथियों को यह लगता है कि अफ़जल गुरू, याकूब मेमन और कसाब की न्यायिक हत्या की गई है। ये सब राष्ट्रद्रोह के नासूर हैं। एम.एस. सथ्यू उसमें नया नाम जुड़ गया है। वामपंथ की खाल पहने ऐसे लोग पाकिस्तानी कसाब से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं। चाणक्य ने कहा था कि सीमा पार के दुश्मनों से कहीं ज्यादा खतरनाक होते हैं घर के दुश्मन। जो सेना की राष्ट्रवादी गतिविधियों को शर्मनाक बताए उसे देश का दुश्मन नहीं तो क्या मानें? मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि अगर वामपंथी अपनी राष्ट्रवाद की अवधारणा में परिवर्तन नहीं लाए तो वे भविष्य में यह कहने के लिए भी नहीं बचेंगे ’’कि कामरेड मिस्टेक हो गया।‘‘