अरविन्द केजरीवाल पर सरकार हल्ला बोले और अन्ना हजारे चुप रहें यह कैसे हो सकता है? सरकार उनके आयकर बकाये की रकम मांग रही है तो रालेगढ़ सिद्धी में अन्ना हजारे ने सरकार को चेतावनी दे डाली कि बेवजह अरविन्द केजरीवाल को सरकार परेशान न करे. चेतावनी को थोड़ा धमकी की हद तक ले जाते हुए अन्ना हजारे ने कहा कि अगर सरकार ऐसे ही परेशान करती है तो हमें “दूसरी” तरह से सोचना पड़ेगा. अन्ना ने अरविन्द को क्लीनचिट देते हुए कहा कि जो सरकार कर रही है वह ठीक नहीं है क्योंकि अरविन्द केजरीवाल ने अपना सारा जीवन समाज कार्य के लिए समर्पित कर दिया है.
अन्ना ने भले ही अरविन्द केजरीवाल को क्लीन चिट दे दिया हो लेकिन हकीकत यह है कि अरविंद केजरीवाल की सांस फूल रही है। सरकार करीब दस लाख से भी ज्यादा रुपए उन पर मांगती है और वे हैं कि भर ही नहीं रहे हैं। अपने इस बकाया की वसूली के लिए सरकार ने उन पर अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। तेरह दिन तक अन्ना हजारे को देश के सामने जमूरा बनाकर खूब मदारीगिरी करने वाले केजरीवाल के बारे में अब यह साफ हो गया है कि वह भी कोई बहुत पाक साफ या दूध के धुले नहीं है। केजरीवाल कानून की पालना करने की दुहाई देते रहे हैं। और इसी बूते पर लोकपाल के मुद्दे पर देश के सामने बहुत चमकदार बनने की कोशिश भी उनने खूब कर ली। मगर अब, जब देश को पता चल रहा है कि केजरीवाल का दामन भी दागदार ही है। तो अन्ना हजारे और केजरीवालों से लोगों का मोहभंग हो जाना बहुत सहज बात है। और यह आफत भी खुद केजरीवाल के कारनामों से ही उन पर आई है।
केजरीवाल पर एक आरोप तो यह है कि वे डिफॉल्टर हैं। उनने सरकार से पचास हजार रुपए का लोन लिया था। जो, बढ़कर डेढ़ लाख रुपए से भी ज्यादा हो गया। लेकिन केजरीवाल ने एक पैसा भी वापस नहीं चुकाया। आयकर विभाग के मुताबिक केजरीवाल ने 50 हजार रूपए का यह लोन एक कंप्यूटर खरीदने के लिए लिया था। कंप्यूटर तो पता नहीं करीदा या नहीं, मगर लोन वापस नहीं चुकाया यह पक्की बात है। इससे भी बड़ा आरोप यह है कि सरकारी नौकरी छोड़ने के मामले में उनने देश के कानून के साथ धोखाधड़ी की। केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा यानी इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज के अधिकारी थे। पर, फरवरी, 2006 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। आयकर विभाग का कहना है कि केजरीवाल ने आगे की पढ़ाई के लिए छुट्टी ली थी और उसके बाद छुट्टी – छुट्टी में ही नौकरी से भी छुटकारा पाने के लिए इस्तीफा दे दिया। पर, नियमों के मुताबिक उन पर सरकार का जो भी बकाया था, उसका भुगतान नहीं किया। इसमें दो साल का वेतन और उस पर लगा ब्याज शामिल है। नौकरी पाने के लिए बहुत सारे नियम कानून होते हैं। तो, उससे निजात पाने के भी अपने नियम हैं। केजरीवाल ने सरकारी सेवा शर्तों की पालना करना बिल्नकुल जरूरी नहीं समझा।
देश के किसी भी आम आदमी को लग यह भी सकता है कि ये दोनों ही आरोप अपने आप में कोई बहुत बड़े आरोप नहीं है। लेकिन दुनिया को दागदार बताकर अपने कपड़ों को बहुत ज्यादा चमकदार साबित करनेवाले किसी भी मनुष्य को अपना दामन भी इतना तो साफ रखना ही चाहिए कि आप पर कभी कोई उंगली ना उठाए। मगर, केजरीवाल ने गलती की। नियमों का पालन नहीं किया। नौकरी छोड़ने के लिए, पढ़ाई का बहाना बनाया और सरकार के साथ धोखा किया। सरकार के साथ धोखा, मतलब देश के साथ कपट किया। इसीलिए, सरकार ने इस मामले में केजरीवाल को एक लंबा सा नोटिस थमा दिया है। आयकर विभाग ने उन्हें सेवा शर्तों के उल्लंघन का दोषी पाया है और नौकरी करने के मामले में बिना कारण बताए छोड़ देने के बॉंड का उल्लंघन करने के लिए नौ लाख रूपए का हिसाब चुकता करने का नोटिस जारी किया है।
हर मामले में सिर्फ सरकार को ही बुरा भला कहनेवाले भाई लोग इस मामले में भी यह कह कर अपना रुदन – क्रंदन व्यक्त कर सकते हैं कि केजरीवाल ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, इसलिए सरकार उनको फंसा रही है। लेकिन अपना यह सवाल यह भी बहुत ही वाजिब है कि केजरीवाल अगर गलत नहीं होते, तो सरकार उनका क्या उखाड़ लेती। इस पूरे मामले में देश को अब साफ साफ समझ में आ रहा है कि जो केजरीवाल देश में लोकपाल लागू करवा कर सरकार पर कानून की नकेल कसने की मुहिम चला रहे हैं, वे खुद कितने गलत है। सही होते, तो सरकार उन पर नकेल क्यों कसती ? कुल मिलाकर केजरीवाल, एक नए झमेले में फंस गए हैं। जो लोग सही होते हैं, वे कभी किसी से भी डरते नहीं हैं। केजरीवाल अगर गलत नहीं है तो, उनको छाती ठोंक कर सरकार के सामने आना चाहिए।