परेश टोकेकर, आपने ये सवाल सही उठाया कि 2020 तक भारत को विकसित बनाने का जो सपना दिखाया जा रहा है, उसके इर्द-गिर्द हर क्षेत्र में जो नीतियां अपनायी जा रही हैं, वह किसान-मजदूर को मौत के अलावा कुछ दे भी नहीं सकती। यवतमाल जैसे पिछडे जिले में कागजों को विकास के नाम पर कैसे भरा जा रहा है, इसका नज़ारा शिक्षा के मद्देनजर भी समझा जा सकता है।
दरअसल, इस साल दसवीं की परीक्षा देने वाले सभी बच्चों को पास कर दिया गया। अब ग्यारहवी में नाम कॉलेज में लिखाना है, तो इतने कॉलेज जिले में हैं नहीं, जिसमें सभी बच्चे पढ़ सकें। कॉलेज खोलने का लाइसेंस करोड़ों में बिकने लगा और बच्चो को एडमिशन के लिये हजारों देने पड़ रहे हैं। यवतमाल के सबसे घटिया कालेज संताजी कालेज में ग्यारहवी में एडमिशन के लिये बीस हजार रुपये तक प्रबंधन ले रहा है। खास बात ये कि कॉलेज में सिर्फ दो कमरे है। पढ़ाने के लिये पांच शिक्षक हैं। चूंकि यवतमाल में 90 फीसदी दसवीं पास किसान और खेत मजदूर के वैसे बच्चे जिन्हे कहीं एडमिशन नही मिल रहा है, इन्हें अब बच्चों को पढ़ाने के लिये कर्ज लेना पड रहा है। कॉलेज खोलने का जो लाइसेंस दिया भी जा रहा या जिनके पास पहले से कॉलेज है, संयोग से सभी नेताओ के हैं। कांग्रेस-बीजेपी-एनसीपी पार्टी के नेताओं के ही कॉलेज है। संयोग ये भी है कि बैंकों से हटकर कर्ज देने वाले भी नेता ही हैं। और किसानो की खुदकुशी पर आंसू बहाने वाले भी नेता ही हैं।
सवाल है इस चक्रव्यूह को तोडने के लिये अभिमन्यू कहां से आयेगा? लेकिन चक्रव्यूह की अंतर्राष्ट्रीय समझ कितनी हरफनमौला है, यह भी यवतमाल में समझ में आया। दरअसल, इसी दौर में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य भी आये और अमेरिकी सीनेट का प्रतिनिधिमंडल भी पहुंचा। खास बात विश्व बैक के प्रतिनिधिमंडल की रही, जो लगातार आईसीयू में पड़े किसानों की हालत को समझने के लिये यह सोच कर उनकी नब्ज पकडता रहा कि एड्स की तुलना में किसानो का खुदकुशी कितना बड़ा मामला है। क्या एड्स की तर्ज पर किसानो के लिये कोइ राशि अंतर्राष्ट्रीय तौर पर दी जा सकती है? स्थानीय लोगों के मुताबिक जो भी गोरे आते थे, वह दो सवाल हर से पूछते। परिवार में किसान की मौत के बाद खेती कौन करता है और खेती करने के लिये कौन कौन सी तकनीक उपयोग में लायी जाती है। तकनीक कुछ भी नहीं और ज्यादातर महिलाओ को किसानी करते सुन कर गोरो का यह कमेंट भी यवतमाल के अलग अलग गांव में सुना जा सकता है। विमेंस आर वैरी ब्रेव। यहां महिलाएं बहुत बहादुर है। त्रासदी देखिये यह जबाव विधवा हो गयी किसान महिलाओं के लिये है। राहुल की कलावती भी उनमें से एक है।