बलूचिस्तान पर नरेंद्र मोदी के बयान पर पाकिस्तान में हड़कंप मचा हुआ है। जगह-जगह भारत-विरोधी प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन न तो हमारे प्रधानमंत्री और न ही हमारा विदेश मंत्रालय भारत और पाकिस्तान की जनता को यह समझा पा रहा है कि मोदी ने वैसा बयान क्यों दिया है और उसका मकसद क्या है?
इस बात को अच्छी तरह समझाया है, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने! उन्होंने भारतीय पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा है कि वे मोदी के बयान का स्वागत करते हैं, क्योंकि बलूचिस्तान आतंक और शोषण का गढ़ बना हुआ है। बलूच लोगों पर जुल्म हो रहा है। यदि अपने पड़ौसी मुल्कों के लोगों के दुख-दर्द पर कोई दुनिया का ध्यान खींच रहा है तो इसमें बुराई क्या है? यह फर्ज सिर्फ भारत ही नहीं, सभी पड़ौसी देशों को एक-दूसरे के बारे में निभाना चाहिए।
मगर मोदी के बयान का पाकिस्तान में उल्टा मतलब निकाला जा रहा है। जैसे यह कि भारत के लोग खुश हैं कि मोदी ने कश्मीर और बलूचिस्तान को आमने-सामने खड़ा कर दिया है। पाकिस्तान की बोलती बंद कर दी है। पाकिस्तान के लोग नाराज है कि मोदी ने पाकिस्तान को तोड़ डालने की भारत की अंदरुनी ख्वाहिश को अचानक खुले-आम जाहिर कर दिया है। पाकिस्तान की यह सोच सही नहीं है। मोदी ने कोई ऐसी बात नहीं कही है, जिसका ज़रा-सा भी इशारा पाकिस्तान को तोड़ने की तरफ हो। करजई ने मोदी की पीठ थपथपा दी है। इसके अलावा करजई ने अफगानिस्तान को हथियार देने की भी भारत से अपील की है। हमने कुछ हेलिकाप्टर जरुर दिए हैं लेकिन वे काफी नहीं हैं।
अफगान राष्ट्रपतियों ने कई बार हथियार और सैन्य-प्रशिक्षण देने की बात खुलकर की है लेकिन कई कारणों से उसे हम स्वीकार नहीं कर सके। यह सही समय है जबकि हम बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान को हथियार और सैन्य-प्रशिक्षण दें। इसका उद्देश्य अफगानिस्तान को पाकिस्तान के विरुद्ध खड़ा करना नहीं है बल्कि अफगान-फौज को आतंकवादियों से लड़ने लायक बनाना है। पाकिस्तान यदि इसका विरोध करेगा तो इसका मतलब यही निकाला जाएगा कि वह आतंकियों को बढ़ावा दे रहा है। वास्तव में पाकिस्तान को भारतीय सैन्य-मदद का स्वागत करना चाहिए और खुद भी अफगानिस्तान की मदद करनी चाहिए। यदि हमारे ये तीनों देश मिलकर चलें तो दक्षिण एशिया से आतंकवाद का पत्ता ही कट जाएगा।