शाहरुख: नाम ने फंसाया
प्रसिद्ध फिल्मी सितारे शाहरुख खान को अमेरिकी हवाई अड्डे पर रोक लिया गया। उनके साथ यह तीसरी बार हुआ है। शिवसेना की पत्रिका ‘सामना’ ने लिखा है कि शाहरुख को लौट आना चाहिए था। ‘सामना’ ने व्यंग्य का जो तीर छोड़ा है, उसे वह छोड़ना ही था। शाहरुख को क्यों रोका गया? पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को भी क्यों रोका गया था? सिर्फ उनके नाम के कारण! अमेरिकी सरकार ने अपने कंप्यूटर में ऐसी तरकीब कर रखी है कि कोई अरबी या फारसी का नाम दिखे कि वह पकड़ा जाए। जाहिर है कि जिन देशों की ये भाषाएं हैं, वे मुसलमानों के देश हैं। लेकिन उन देशों के लोग भी पकड़े जाते हैं, जिन देशों की भाषा अरबी-फारसी नहीं है। क्यों पकड़े जाते हैं?
क्योंकि वहां के मुसलमान अपने नाम अरब-फारसी में रख लेते हैं लेकिन इंडोनेशिया के किसी औसत मुसलमान को क्या अमेरिकी कंप्यूटर पकड़ सकता है? बहुत मुश्किल है। क्यों? क्योंकि उनके नाम अपनी भाषा में होते हैं। इंडोनेशिया के जगत्प्रसिद्ध राष्ट्रपति का नाम सुकर्ण था। हमारे महाभारत में सिर्फ कर्ण है। लेकिन वे सुकर्ण थे। उनके ससुर का नाम अलीशास्त्रविद जोजो था याने शास्त्रों का पंडित! सुकर्ण की बेटी का नाम मेघावती है। एक और राष्ट्रपति हुए है, जिनका नाम सुहृत था, जिन्हें अंग्रेजी में भ्रष्ट करके ‘सुहारटो’ बोला जाता है। हमारे फिल्मी सितारें दिलीपकुमार, मधुबाला और मीनाकुमारी ने यदि अपने नाम हिंदी में रख लिये तो क्या वे मुसलमान नहीं रहे?
मेरा निवेदन यह है कि यदि ईसाई और मुसलमान-धर्म विदेशों में पैदा हुए हैं तो हुए हैं लेकिन कोई जरुरी नहीं है कि उनके मानने वाले लोग अपने नाम विदेशी भाषाओं में ही रखें। स्वदेशी भाषाओं में यदि वे अपने नाम रखें तो क्या उनकी ईसाइयत या मुसलमानियत घट जाएगी? नहीं, बिल्कुल नहीं। ईरान, मध्य एशिया के पांचों इस्लामी गणतंत्र, इंडोनेशिया, चीन, जापान और मलेशिया के करोड़ों मुसलमानों ने अपने नाम अपनी देसी भाषाओं में रखे हुए हैं। क्या वे घटिया मुसलमान हैं? अच्छा और आदर्श मुसलमान वही है, जो इस्लाम की बुनियादी बातों को अपने जीवन में ईमानदारी से लागू करने की कोशिश करता है लेकिन मुसलमान होने का मतलब अरबों की अंधी नकल करना नहीं है।
अरबी नाम रखने में भी कोई बुराई नहीं है। लेकिन प्रत्येक देश का मुसलमान अपने देश की सभ्यता और संस्कृति की सब मुफीद बातें मानता रहे और इस्लाम का दृढ़ता से पालन करता रहे तो वह एक बेहतर मुसलमान सिद्ध होगा। मैं तो अरब देशों के शेखों और आलिम-फाजिल विद्वानों से भी अर्ज करता रहता हूं कि आप हमारे मुसलमानों को ऊपर बताए गए रास्ते पर चलने दें तो वे दुनिया के बेहतरीन मुसलमान सिद्ध होंगे, क्योंकि तब हजारों बरस पुरानी भारतीय संस्कृति व सभ्यता के हीरों-जवाहरात से वे वंचित नहीं होंगे।