अपने यहां कहावत है कि ‘जाके पैर न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई’! चीन अब तक भारत की शिकायतों पर आंख मूंदे बैठा रहता था. उसे पाकिस्तान की आतंकवादी भूमिका कभी आपत्तिजनक नहीं दिखाई पड़ती थी. वह जान बूझकर मक्खी निगल रहा था लेकिन अब काशगर में हुए भयंकर रक्तपात ने उसे झकझोर दिया है. चीन की सरकार के प्रवक्ता ने अब दो-टूक शब्दों में आरोप लगाया है कि चीन के शिंच्यांग (सिनक्यांग) प्रांत के उइगर मुसलमानों को पाकिस्तान भड़का रहा है. पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में उन्हें आतंकवादी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. काशगर में पकड़े गए उइगर आतंकवादियों ने, जो चीनी नागरिक हैं, यह सत्य उगला है कि उन्होंने बम वगैरह बनाना पाकिस्तान में ही सीखा है.
सबसे पहले तो यह जाना जाए कि शिंच्यांग क्षेत्र कहां है, ये उइगर लोग कौन हैं और चीन व पाकिस्तान से उनका क्या संबंध है. शिंच्यांग चीन का पश्चिमी प्रांत है, जिसकी सीमा भारत, पाकिस्तान, किरगिजिस्तान, उजबेकिस्तान और मंगोलिया आदि देशों को स्पर्श करती है. पाकिस्तान ने चीन को अवैध रूप से ‘आजाद कश्मीर’ की कुछ जमीन दे रखी है. अगर वह नहीं दी गयी होती तो चीन के इस प्रांत की सीमा भारत से भी काफी दूर तक जुड़ती. लगभग 16 लाख वर्ग किमी में फैला यह प्रांत पूरे चीन का एक बटे छह भू-भाग है और इसमें लगभग दो करोड़ लोग रहते हैं. इसमें 47 अलग-अलग जातियों के लोगों की आबादी है, जिनमें उइगर लोगों का प्रतिशत 45 यानी सबसे ज्यादा है. लेकिन पिछले 60 सालों में चीन की साम्यवादी सरकार ने कुछ ऐसी चाल चली कि उइगर लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो गए. वहां गैर-उइगरों की संख्या 55 प्रतिशत हो गई. चीन की मुख्य जाति-हान लोगों को वहां इतनी बड़ी संख्या में बसा दिया गया है कि वे ही अब शिंच्यांग के असली मालिक बन गए हैं.
आज स्थानीय सरकार और प्रशासन में उइगरों का प्रतिनिधित्व नाममात्र का है. सभी प्रमुख स्थानों पर हान लोग जमे हुए हैं. वे चीनी भाषा बोलते है जबकि उइगरों की भाषा तुर्की है. उनका चेहरा-मोहरा, खान-पान, रहन-सहन, सभ्यता-संस्कृति उइगरों से बिल्कुल अलग है. उरूमची, काशगर, खोतान जैसे बड़े-बड़े शहरों में चीनियों का बोलबाला साफ दिखाई पड़ता है. बड़े-बड़े मकान, बड़ी-बड़ी कारें, बड़ी-बड़ी दुकानें सब चीनियों के पास हैं और गंदी बस्तियां, छोटी-मोटी नौकरियां और वंचनापूर्ण जीवन उइगरों के खाते में है. शिंच्यांग को हर दृष्टि से आगे बढ़ाने में बीजिंग की सरकार ने क्या-क्या कदम नहीं उठाए लेकिन संपूर्ण प्रगति का लाभ लोगों में बराबर नहीं बंट सका. मक्खन तो चीनी हान लोग लूट ले गए और उइगरों को छाछ भी नहीं मिली. घनघोर असंतोष का मुख्य कारण यही है.
उइगर असंतोष को भड़काने में आर्थिक विषमता की मुख्य भूमिका तो है ही, वह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है, जिसके कारण शिंच्यांग को ‘स्वतंत्र तुर्किस्तान’ बनाने की मांग समय-समय पर उठती रही है. शिंच्यांग, तिब्बत, मंगोलिया और मंचूरिया-ये कुछ ऐसे देश हैं, जो चीन की उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर अवस्थित हैं. इन राष्ट्रों या प्रदेशों पर चीन ने कई बार कब्जा कर लिया और कई बार ये उसके हाथ से फिसल गए. 1933 और 1944 में शिंच्यांग चीन के हाथ से निकलकर ‘पूर्वी तुर्किस्तान का इस्लामी गणराज्य’ बन गया था. उसे सोवियत संघ का समर्थन भी था. लेकिन माओ की लाल सेना ने डंडे के जोर पर उसे दुबारा अपने साथ मिला लिया गया. अब अनेक उइगर लोग वहां पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामी आंदोलन चला रहे हैं. आजादी के इस आंदोलन को अमेरिका और पाकिस्तान में बसे अनेक प्रबुद्ध और मालदार उइगर डटकर समर्थन दे रहे हैं.
पहले च्यांग काई शेक और फिर साम्यवादी सरकारों ने शिंच्यांग में इतना भयंकर दमन-चक्र चलाया हुआ था कि उइगर उग्रवादी ज्यादा सिर नहीं उठा पाते थे लेकिन जब से पाकिस्तान इस्लामी आतंकवाद का गढ़ बना है, उइगर आतंकवाद भी बलवान हो उठा है. उइगर आतंकवादियों को पाकिस्तान के साथ सांठ-गांठ बढ़ाने में तीन कारणों से विशेष लाभ होता है. एक तो पाकिस्तान के ‘आजाद कश्मीर’ से शिंच्यांग एकदम साथ लगा हुआ इलाका है. दोनों के बीच अच्छी खासी सड़क है, जिस पर मोटर और ट्रक दौड़ते हैं. अच्छे मौसम में लोग पैदल या घोड़ों-गधों पर भी आर-पार आते-जाते रहते हैं.
इस्लामाबाद और उरूमची (शिंच्यांग की राजधानी) के बीच सीधी हवाई जहाज सेवा भी बहुत ही रियायती दरों पर प्रतिदिन उपलब्ध है. शिंच्यांग के शहरों में बने मेडिकल कॉलेजों में आप सैकड़ों पाकिस्तानी छात्रों को देख सकते हैं. दूसरा कारण यह है कि उइगर लोग मुसलमान हैं. पाकिस्तान के लोग उनके प्रति विशेष भाईचारा महसूस करते हैं. तीसरा कारण, उइगर लोग देखने में चीनियों से एकदम अलग लगते हैं. वे पाकिस्तान के उत्तरी हिस्सों के वाशिंदों की तरह लगते हैं. लगभग तीन हजार उइगर शिंच्यांग से भागकर पाकिस्तान में बस गए हैं. चीनी सरकार इन उइगरों पर कड़ी नजर रखने के लिए पाकिस्तान सरकार पर हमेशा दबाव बनाए रखती है. पाकिस्तान से पकड़कर कई उइगरों को अमेरिका ने ग्वांटेनामोबे में भी बंद कर दिया था.
आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान की सरकार चीनियों को वही तर्क देती है, जो भारत सरकार को देती है यानी आतंकवादी ‘गैर-राज्यीय तत्व’ हैं. उन्हें राज्य की कोई मदद नहीं है. इस तर्क को भारत की सरकार तो मान लेती है, उस पर अमेरिकी दबाव भी बना रहता है लेकिन चीनी रवैया काफी आक्रामक है. इस मामले में पिछले दिनों आसिफ अली जरदारी को फोन करके चीनी नेताओं को अपनी सफाई देनी पड़ी थी और आजकल आईएसआई के मुखिया शुजा पाशा बीजिंग में हैं. उइगर आतंकवादियों और आम जनता ने दो साल पहले शिंच्यांग में इतना दंगा मचाया था कि दो सौ लोग मारे गए थे. उसके बाद छोटे-मोटे कई दंगे हुए. चीन के अन्य हिस्सों में बसे उइगरों ने भी अपनी आवाज बुलंद की थी.
अगर इन लोगों ने चीन के बड़े शहरों में बम रखने शुरू कर दिए और इनके साथ तिब्बती और मंगोल जातियां भी मिल गईं तो चीन को पता चलेगा कि भारत के दर्द का अर्थ क्या है. चीन को अब शंघाई सहयोग परिषद में आतंकवाद के विरुद्ध अपनी आवाज पहले से भी अधिक बुलंद करनी होगी.
पाकिस्तानी सरकार को पटरी पर लाने में भारत आज तक सफल नहीं हो पाया है लेकिन चीन ने अगर कड़ा रवैया अपना लिया तो पाक सरकार मजबूर हो जाएगी, क्योंकि पाकिस्तान चीन का व्सबसे घनिष्ठ मित्र है और अब वह चीन पर ही पूरी तरह निर्भर होनेवाला है. ओसामा-कांड ने अमेरिकियों की आंखें खोल दी हैं. पता नहीं, उइगर आतंकवाद चीन की आंखें कब खोलेगा?