इज़राइल के चैनल 13 के एक यहूदी टीवी पत्रकार गिल तामरी ने पिछले दिनों सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का में प्रवेश कर वहाँ का एक वीडियो बनाया और उस वीडियो को सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। उसके बाद सऊदी अरब प्रशासन में खलबली मच गयी। सऊदी पुलिस ने इस मामले में पूरी तत्परता दिखाते हुये सऊदी अरब के ही निवासी एक व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया गया है। आरोप है कि इसी व्यक्ति ने चैनल 13 के इसराइली टीवी पत्रकार गिल तामरी को मक्का में प्रवेश कराने में सहायता की थी। हालांकि अपनी मक्का यात्रा के बाद पत्रकार तामरी ने यह कहते हुये माफ़ी मांगी है कि वे -‘धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के लिए मक्का और इस्लाम की सुंदरता दुनिया को दिखाना चाहते थे ‘ । वीडियो में तामरी को स्वयं ये बोलते भी सुना जा सकता है कि ”सऊदी क़ानून के अनुसार ग़ैर-मुसलमानों का यहाँ आना वर्जित है। मेरे लिए भी यहां पहुंचना असंभव था। परन्तु मुझे यहां एक बहुत अच्छे व्यक्ति (गाईड ) मिले जिन्होंने अपनी जान ख़तरे में डालकर मुझे यहां ले जाने का फ़ैसला किया ”। इस पूरे प्रकरण में मक्का पुलिस का कहना है कि ‘मक्का में प्रवेश करने वाले इसराइली पत्रकार पर आगे क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है। मक्का पुलिस प्रवक्ता ने एक बार फिर पुरज़ोर तरीक़े से यह कहा है कि सऊदी अरब आने वाले लोग यहाँ के नियम-क़ानूनों का पालन करें, ख़ासतौर पर दो पवित्र मस्जिदों और अन्य पवित्र जगहों के मामले में।अन्यथा क़ानूनों का उल्लंघन करने वालों को सऊदी क़ानून के अनुसार सज़ा दी जाएगी। ग़ौर तलब कि मक्का शहर के चारों ओर नगर की एक सीमा निर्धारित की गयी है और इन सीमाओं के प्रवेश द्वार पर बड़े अक्षरों से बोर्ड पर लिखा गया है कि -‘ग़ैर मुस्लिमों का मक्का की सीमाओं में प्रवेश वर्जित,केवल मुस्लिम मक्का में दाख़िल हो सकते हैं।’
इस घटना के बाद एक बार फिर वही बहुचर्चित सवाल विश्व स्तर पर पूछा जाने लगा है कि आख़िर हज की रस्म अदा करने के लिये सऊदी अरब के पवित्र मक्का शहर में ग़ैर मुस्लिमों का प्रवेश क्यों वर्जित है। हज के तौर तरीक़ों और हज अदायगी को क़रीब से देखने की उत्सुकता रखने वाले दुनिया के तमाम लोग सऊदी सरकार के इस फ़ैसले से व्यथित हैं। केवल ग़ैर मुस्लिम ही नहीं बल्कि दुनिया के मुसलमानों का भी एक बड़ा वर्ग जो हमेशा से सऊदी सरकार के इस ‘ग़ैर मुस्लिम का मक्का प्रवेश निषेध ‘ नीति का विरोधी रहा है वह भी पुनः मुखरित हो उठा है। ग़ौर तलब है कि हज स्थल मक्का (काबा शरीफ़ ) चूँकि सऊदी अरब में इत्तेफ़ाक़न इसलिये स्थित है क्योंकि इस्लाम धर्म की शुरुआत अरब से ही हुई और यही इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहब की जन्म व कर्मस्थली भी रही है। परन्तु चूँकि इस्लाम विश्वस्तर पर फैल चुका है और पूरी दुनिया के लोग हज या उमरा करने मक्का आते जाते रहते हैं इसलिये दुनिया का मुसलमान इन पवित्र धार्मिक स्थलों पर अपना भी समान अधिकार समझता है। कई बार मुस्लिम जगत में यह चर्चा भी हो चुकी कि सऊदी अरब में हज उमरा आदि धार्मिक गतिविधियों के नियम क़ायदे यहाँ तक कि अलग अलग देशों का वीज़ा कोटा निर्धारण करने के लिये इस्लामी देशों की विश्वस्तरीय संयुक्त कमेटी बनायी जाये।परन्तु ठीक इसके विपरीत सऊदी सरकार इन स्थानों पर अपना आधिपत्य समझती है। और इस पवित्र क्षेत्र में अपनी ही सोच विचार के अनुसार नियम क़ानून निर्धारित व लागू करती है। ग़ैर मुस्लिमों के मक्का प्रवेश निषेध मामले पर वह यही कहकर पल्ला झाड़ती कि अन्य देशों की तरह किसी भी क्षेत्र या किसी भी व्यक्ति को वीज़ा देना या न देना उसका अपना अधिकार है इसके लिये कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।
परन्तु मक्का के अतिरिक्त भी अनेक इस्लामी धर्मस्थल ऐसे हैं जहां पूरे वर्ष और चौबीस घंटे मक्का और मदीना से भी ज़्यादा दर्शनार्थियों व पर्यटकों की भीड़ रहती है। उदाहरण के तौर पर करबला,नजफ़ सीरिया और इराक़ के अनेक रौज़े हर समय दर्शानार्थियों से भरे रहते हैं। भारत और पाकिस्तान की अनेकानेक विश्व स्तरीय मस्जिदें व दरगाहें हर समय आम लोगों के दर्शन व भ्रमण के लिये खुली रहती हैं। ऐसी जगहों पर सरकार या धर्मस्थान का प्रबंधन न किसी से किसी का धर्म पूछता है न जाति न नागरिकता। ऐसे में विश्व के सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी धर्मस्थल मक्का पर सऊदी सरकार द्वारा थोपा गया ‘प्रवेश प्रतिबंध क़ानून ‘ न केवल समानता जैसे इस्लामी सिद्धांतों को चुनौती देता है बल्कि इस्लाम विरोधी भावना रखने वालों को तरह तरह के निराधार तर्क गढ़ने के भी अवसर देता है।
सऊदी सरकार के इस फ़ैसले में शिया व बरेलवी समुदाय को लेकर भी काफ़ी विरोधाभास है। क्योंकि इन दोनों ही समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हज व उमरा करने के लिये जाते रहते हैं। और सऊदी सरकार इनको वीज़ा भी देती है। परन्तु अहमदिया मुसलमान अन्य ग़ैर मुस्लिमों की तरह हज करने नहीं जा सकते। इन्हें सऊदी सरकार ग़ैर मुस्लिम की श्रेणी में रखती है। अरब,भारत,बंगलादेश,अफ़ग़ानिस्तान व पाकिस्तान के अनेक सुन्नी वहाबी मुसलमान समय समय पर शिया व बरेलवी समुदाय के विरुद्ध फ़तवे जारी कर इन्हें भी ग़ैर मुस्लिम और मुशरिक (बहुदेववादी ) बताते रहे हैं। क्योंकि यह लोग ताज़ियादारी करते हैं,पीरों फ़क़ीरों की मज़ारों पर दुआएं मांगते हैं,या अली मदद बोलते हैं,और इन सब के सामने हाथ उठाकर दुआएं मांगते हैं। इसलिये वहाबी मतावलंबी इन समुदाय के लोगों को कभी काफ़िर तो कभी मुशरिक की उपाधियों से नवाज़ते रहते हैं। सवाल यह है कि जब सऊदी अरब में भी वहाबी विचारधारा की हुकूमत है तो वह शिया व बरेलवी मुसलमानों पर भी मक्का में प्रवेश वर्जित करने का साहस क्यों नहीं करती ?और अहमदिया मुसलमानों पर क्यों प्रवेश निषेध किया हुआ है ? क्या यह वहाबियों को तय करना है कि एक अल्लाह का कलमा पढ़ने के बावजूद उनकी नज़रों में कौन सा मुस्लिम समुदाय मुसलमान है और कौन मुशरिक या काफ़िर ?
किसी भी धर्म के किसी भी धर्मस्थान में धर्म या जाति के आधार पर किसी भी श्रद्धालु को जाने से मना करने का अधिकार मेरे विचार से किसी भी व्यक्ति,सरकार अथवा शासक को नहीं होना चाहिये। जिस तरह चर्च,गुरद्वारे,इमाम बरगाहें,दरगाहें और विश्व की सुप्रसिद्ध मस्जिदें सभी के लिये खुली हैं उसी तरह मक्का,हज स्थल आदि भी पूर्णतयः प्रतिबंध मुक्त होने चाहिये। भारत में भी अनेक मंदिरों में महिलाओं,दलितों व मुसलमानों का जाना प्रतिबंधित है। यह प्रतिबंध भी समाप्त होने चाहिये। ऐसे प्रतिबंधों से तो संकीर्णता का ही सन्देश जाता है और यह भी कि गोया -‘ईश्वर के पहरेदार बने बैठे ये ‘स्वयंभू धर्म दूत’ ।