प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व सूफी सम्मेलन में जो भाषण दिया, वह अद्भुत है। जाहिर है कि खुद मोदी न तो इस्लाम को समझते हैं, न सूफीवाद को और न ही उसके इतिहास को! शायद प्रधानमंत्रियों में से पीवी नरसिंहराव के अलावा किसी को भी सूफीवाद की ऐसी समझ नहीं थी, जैसे कि मोदी के भाषण में वह प्रतिपादित हुई है। इसीलिए जिस विद्वान ने मोदी का भाषण तैयार करवाया है, पहले तो उसको बधाई और मोदी को उससे भी ज्यादा बधाई, क्योंकि संघ का स्वयंसेवक रहते हुए मोदी ने इस्लाम की इतनी गजब की तारीफ कर दी।
मोदी ने कहा कि इस्लाम का मतलब ही है- सलामती का धर्म। शांति का धर्म! अल्लाह के जो 99 नाम हैं, उनमें हिंसा कहीं भी नहीं झलकती। अल्लाह के जो दो सबसे लोकप्रिय नाम हैं, वे नाम हैं- रहमान-ओ-रहीम! ऐसे मजहब के नाम पर आतंकवाद फैलाना, उस मजहब को बदनाम करना है। ऐसे आतंकवाद का मुकाबला सिर्फ तलवार और बंदूक से नहीं हो सकता, सूफियाना नजरिए से हो सकता है।
नरेंद्र मोदी की यह अदा ही असली हिंदुत्व की अदा है। यही वह तरीका है, जिससे आतंकवादियों को सही राह पर लाया जा सकता है। मोदी ने यह भी काफी पते की बात कही कि आतंकवाद को इस्लाम से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। आतंकवाद-विरोधी लड़ाई को किसी मजहब के विरुद्ध युद्ध नहीं माना जाना चाहिए। आतंकियों ने जिन लोगों को सबसे ज्यादा मारा है, वे उन्हीं के मजहब के लोग हैं। विश्व सूफी सम्मेलन में आए दर्जनों देशों के जाने-माने सूफियों को मोदी ने उदारता, विविधता और सहिष्णुता की इतनी प्यारी-प्यारी बातें कही हैं कि वे दंग रह गए होंगे कि क्या यह वही मोदी है, जो गुजरात का मुख्यमंत्री था?
मोदी का सचमुच विकास हो रहा है। यह मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री होने की प्रक्रिया है। प्रधानमंत्री होने के नाते मोदी ने विश्व-आतंकवाद को भी अनावृत्त किया है। मोदी ने उन राष्ट्रों और गिरोहों को भी आड़े हाथों लिया है, जिन्होंने इस्लाम के नाम पर आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना रखा है। मोदी को चाहिए था कि अपने भाषण के बाद वे इन सूफियों को उन देशों में भी ऐसे सम्मेलनों का सुझाव देते।