उत्तरप्रदेश के एक मंत्री अपने अक्खड़पन के लिए मशहूर हो चुके हैं। वे किसी भी मुद्दे पर कुछ भी बोल सकते हैं। लोग उनसे यही आशा करते हैं। इसीलिए उनकी कही बातों पर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते लेकिन इस बार वे ज़रा फंस गए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने उनसे पूछा है कि उनके-जैसे जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए किसी व्यक्ति को क्या ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बयान देने चाहिए? ये व्यक्ति हैं- उप्र के मंत्री आजम खान! उन्होंने बयान यह दे दिया था कि बुलंदशहर में 29 जुलाई को जिस मां-बेटी के साथ बलात्कार हुआ था, वह एक राजनीतिक साजिश थी। इस बयान का मतलब क्या हुआ? यही न, कि बलात्कार हुआ ही नहीं और बलात्कार के नाम पर एक झूठा नाटक रचाया जा रहा है। वह भी इसलिए कि उप्र की सरकार को बदनाम किया जा सके। पीड़ित परिवार ने इस मंत्री के खिलाफ पुलिस रपट लिखवाई है और उस परिवार को बदनाम करने का हर्जाना मांगा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सारे मामले की जांच खुद ही करवाने का फैसला किया है और आजम खान के बयान पर अदालत ने पूछा है कि ऐसे बयान क्या अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे में आते हैं? ऐसे बयान से क्या जांच पर गलत असर नहीं पड़ेगा? गलत असर तो पड़ सकता है इसीलिए अदालत ने सीबीआई की जांच रद्द करके जांच को अपने हाथ में ले लिया है लेकिन इसमें शक नहीं कि इस मंत्री ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बिल्कुल दुरुपयोग किया है। हो सकता है कि उसकी जुबान फिसल गई हो। वह कहना यह चाहता हो कि बलात्कार का बेजा फायदा उठाने की साजिश हो रही है। लेकिन अब उसे बड़ी विनम्रतापूर्वक उस परिवार से खुद जाकर माफी मांगनी चाहिए। यदि आजम को सजा भी हो जाए तो उससे क्या फर्क पड़नेवाला है? आजम की बात बलात्कार से भी ज्यादा घिनौनी है। वह माफी मांगेंगे तो वे भी खुद ऊंचे उठेंगे और पीड़ित परिवार के घाव पर मरहम भी लगेगा। आजम की थू-थू होने पर उन्होंने अपने बयान पर कुछ लीपा-पोती तो की है लेकिन उससे माहौल और बदमजा हो गया है। आजम अपनी बेलगाम जुबान के कारण अखिलेश सरकार पर काफी भारी पड़ रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि इस चुनावी मौसम में आजम को अपने मंत्रिपद से ही हाथ धोना पड़ जाए।