असम समेत पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अवैध बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ की समस्या गहराती जा रही है । कुछ दिन पहले मेघालय के गारो पर्वतीय ज़िला में गारो जनजाति समाज और अबैध बंगलादेशी मुसलमान घुसपैठियों में हिंसक झड़पें शुरु हो गईं हैं । गारो पर्वतीय ज़िला में कोयले की खदानें हैं । इन खदानों में काम करने के लिये सस्ती मज़दूरी के लालच में ठेकेदार अवैध बंगलादेशी मुसलमानों को वहाँ ला लाकर बसा रहे हैं । ये बंगलादेशी गारो क्षेत्र की ज़मीन पर नाजायज़ क़ब्ज़ा ही नहीं कर रहे बल्कि वहाँ के जनजाति समाज को डरा धमका भी रहे हैं । पूर्वोत्तर में इत्र फुलेल के व्यवसायी अजमल बदरुद्दीन द्वारा बंगलादेशी मुसलमानों की राजनैतिक पार्टी गठित कर लेने के बाद इन अवैध बंगला देशी मुसलमानों का साहस बहुत बढ़ गया है । बदरुद्दीन की पार्टी द्वारा पिछले विधान सभा चुनावों में असम विधान सभा में १८ सीटें जीत लेने के कारण तो बंगलादेशी मानों बेलगाम ही हो गये हैं । पिछले दिनों इन्होंने गारो जनजाति समाज की मानसिक रुप से विकलांग लड़कियों से बलात्कार किया । उस के बाद गारो जनजाति और बंगलादेशी श्रमिकों में ख़ूनी झड़पें शुरु हो गईं । इन में ९ श्रमिक मारे गये । अब ये सभी बंगलादेशी वहाँ से भाग कर असम में आ रहे हैं । जनजाति समाज अपने ही घर में पराया हो जाने की बजाय लड कर बंगलादेशियों को निकालने की स्वभाविक नीति अपना रहा है । लेकिन मीडिया इसको मेघालय बनाम असमिया कह कर पूरे प्रश्न को क्षेत्रीय लड़ाई में तब्दील करने का प्रयास कर रहा है । उसके अनुसार गारो लोग असमिया श्रमिकों पर आक्रमण कर रहे हैं । यह केवल मेघालय की बात नहीं है । पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की भी यही स्थिति है । कुछ वर्ष पहले जब मणिपुर में पुलिस ने अवैध बंगलादेशी मुसलमान पकड़ने शुरु किये थे तो , पुलिस उनको गिरफ़्तार कर बंगलादेश में डिपोर्ट करने की बजाय असम में धकेल रही थी । इन सभी राज्यों ने मान लिया है कि अवैध बंगलादेशी मुसलमान असम के हैं । असम सरकार भी इसका प्रतिवाद नहीं करती , बल्कि वोट बैंक के चक्कर में इन अवैध लोगों को सुरक्षित बसाने के काम में लग जाती है ।
कुछ वर्ष पहले नौगाँव जिला के नेल्ली में जनजाति के लोगों ने सैकडों अवैध बंगलादेशी मुसलमानों की हत्या कर दी थी । इस घटना को लेकर बहुत शोर शराबा भी हुआ था । इस अमानवीय घटना की निन्दा हुई थी और होनी भी चाहिये थी । लेकिन असम सरकार और केन्द्र सरकार को तभी समझ जाना चाहिये था कि जनजाति समाज अवैध बंगलादेशी मुसलमानों के अतिक्रमण से अपनी रक्षा के लिये किस हद तक जा सकता है । इसलिये बंगलादेशियों को बाहर निकालने के काम में रुचि लेनी चाहिये थी । लेकिन इसके विपरीत असम सरकार ने उन्हें असम में बसाने में ज़्यादा रुचि दिखाई । इस के परिणाम अब सामने आ रहे हैं ।
कुछ मास पहले ही असम के बोडो बहुल क्षेत्रों में बंगलादेशियों और बोडो जनजाति समाज के लोगों में खूनी झडपें हुईं थीं । बोडो क्षेत्र में बंगलादेशी मुसलमान इतनी संख्या में बस गये हैं कि बोडो समाज की अपनी पहचान और अस्मिता ही खतरे में पड गई है । इसके बावजूद कुछ ऐजंसियां योजनाबद्ध तरीके से बंगलादेशियों को इस जनजाति क्षेत्र में भर रहीं थीं । यहीं बस नहीं , इस क्षेत्र से बोडो जनजाति के लोगों को बाहर निकालने के लिये बंगलादेशियों ने इक्का दुक्का स्थानों पर उन पर हमले करने भी शुरु कर दिये थे । जिसमें चार बोडो युवक मारे भी गये थे । इस पर बोडो और बंगलादेशियों में भिडन्त हो गई , जो कई दिन चलती रही ।कोकराझार , चिरांग, धुबडी और बाकसा सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र थे । इसमें दोनों पक्षों का बहुत नुकसान हुआ । बोडो समाज के दबाव में सरकार ने मुक़द्दमे दर्ज किये और जनमत के दबाव में ही सरकार को पूरे घटनाक्रम की सी बी आई से जाँच करवानी पड़ी । लेकिन बोडो समाज के गुस्से का मुख्य कारण था कि सरकार ने कुछ अरसे के बाद ही , सरकारी सहायता से इसी जनजाति क्षेत्र में , बंगलादेशियों को सरकारी सहायता से फिर बसाना शुरु कर दिया । अभी पिछले दिनों सी.बी.आई ने अपनी जाँच के आधार पर अपराधियों के खिलाफ न्यायालय में अारोप पत्र दाख़िल किया है । जाँच में यह कहा गया है कि बोडो युवकों की हत्या करने के लिये बाकायदा योजना बनाई गई ।इस षड्यन्त्र के मुख्य षड्यन्त्रकारी , बोडो क्षेत्रीय परिषद क्षेत्र में काम करने वाले तथाकथित संगठन अल्पसंख्यक छात्र संघ के अध्यक्ष मोईनुल हक़ और उसका भाई , निलम्बित सिपाही मोहीबुल इस्लाम थे । तथाकथित इसलिये कहा गया है कि छात्रों के नाम से चलाये जा रहे इस संगठन का छात्रों से कुछ लेना देना नहीं है । धोखा देने के लिये केवल इस छद्म नाम का ही प्रयोग किया जा रहा है । बाद में इस योजना में बड़े स्तर पर अनेक लोगों को शामिल किया गया । पुलिस ने इस हत्याकांड में ३७ लोगों को नामांकित किया । १२ लोग अभी भी फ़रार हैं , इनमें मुख्य षड्यंत्रकारी मोहीबुल इस्लाम भी शामिल है । ज़ाहिर है कि बोडो युवकों की हत्या करके बंगलादेशी मुसलमान इस जनजाति समाज में भय उत्पन्न करना चाहते थे , ताकि बोडो समाज इस क्षेत्र में निरन्तर में आकर बस रहे बंगलादेशी मुसलमानों का विरोध करना बन्द कर दे । षड्यन्त्रकारियों को लग रहा होगा कि जिस प्रकार असम के शेष हिस्सों में वे बिना किसी विरोध और भय के बस रहे हैं वैसा ही बोडो क्षेत्रों में हो सकेगा । लेकिन बोडो समाज में इन चार युवकों की निर्मम हत्या की भयंकर प्रतिक्रिया हुई । परन्तु इसे दुर्भाग्य ही कहना होगा कि इस पूरे घटनाक्रम में राज्य और केन्द्र की सरकार बोडो समाज के साथ खड़ा होने के स्थान पर विदेशी अवैध घुसपैठिये बंगलादेशियों के साथ खड़ी नज़र आई । सी. बी. आई ने बोंगाईगांव न्यायालय में आरोपपत्र दाख़िल करते समय न्यायालय में अपनी सम्पूर्ण जाँच का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुये कहा कि इन हिंसक घटनाओं के घटनाक्रम की जाँच से पता चला है कि आक्रमण की शुरुआत बोडो लोगों ने नगीं की बल्कि आक्रमणकारी लोग प्रवासी मुसलमान थे । दरअसल यह बंगलादेशियों द्वारा पूरी योजना से किया गया आक्रमण था ताकि इस क्षेत्र में इस्लामी बर्चस्व स्थापित किया जा सके । जाँच एजेंसी की यह रपट किसी भी सरकार को चौकन्ना करने के लिये काफ़ी होती , लेकिन असम में सोनिया कांग्रेस की सरकार अभी भी दलीय हितों को ध्यान में रखते हुये बंगलादेशी मुसलमानों के पक्ष में खड़ी दिखाई देती है । लेकिन यदि सरकार की यही नीति रही तो आने वाले दिनों में पूरे असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में बंगला देशी मुसलमानों और जनजाति समाजों में हिंसक झड़पों की घटनाएँ बढ़ सकती हैं और इससे अनेक निर्दोष जानें जा सकती हैं । गारो जनजाति समाज और बंगलादेशी मुसलमानों का यह झगड़ा तो उसका आगाज है ।