देश की सुप्रीम कोर्ट लगातार कांग्रेस सरकार को फ़टकार पर फ़टकार लगाये जा रही है, लेकिन सुधरना तो दूर, सरकार के कर्ताधर्ता चिकने घड़े की तरह बड़ी बेशर्मी से मुस्करा रहे हैं। ताज़ा मामला हसन अली का है, प्रवर्तन निदेशालय के दस्तावेजों में साफ़ दर्ज है कि हसन अली ने “अज्ञात स्रोतों” से करोड़ों रुपये (डॉलर) स्विटजरलैण्ड की बैंकों में जमा किये हैं, लेकिन मजबूरी में (यानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा पिछवाड़े में डण्डा करने के बाद ही) जब हसन अली (Hasan Ali Khan) पर कार्रवाई करने की नौबत आई तो सरकारी एजेंसी ऐसा कोई सबूत ही पेश नहीं कर पाई, और अदालत ने हसन अली को सशर्त जमानत पर रिहा कर दिया। हसन अली सिर्फ़ एक-दो दिन के लिये हिरासत में रहा।
जिस व्यक्ति को जरा भी ज्ञान न हो, एकदम बेवकूफ़ हो या एकदम बोदे दिमाग वाला हो… वह भी आँख बन्द करके बता सकता है कि 50,000 करोड़ से अधिक की टैक्स चोरी करने वाला “सिर्फ़ घोड़े का व्यापारी” या “स्क्रेप आयात करने” वाला नहीं हो सकता। सभी जानते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक पैसा ड्रग्स डीलिंग और हथियारों के सौदे की कमीशनखोरी में है। जब बोफ़ोर्स जैसा सिर्फ़ 64 करोड़ का सौदा क्वात्रोच्ची को मालामाल कर देता है तो आजकल अरबों के जो सौदे होते हैं उसमें अदनान खशोगी जैसे बड़े हथियार डीलरों (कमीशनबाजों) और भारत में उसके एजेण्ट हसन अली और दाऊद जैसे लोग अपने-आप में एक “अर्थव्यवस्था” हैं, और यह राजपाट बगैर उच्च स्तर के राजनैतिक संरक्षण के सम्भव ही नहीं है।
जानते सभी हैं, मानते सभी हैं, लेकिन “ऊपरी दबाव” इतना ज्यादा है कि हसन अली का बाल भी बाँका नहीं हो रहा। यदि जाँच एजेंसियों और आयकर विभाग के पास कोई सबूत नहीं था, तो फ़िर मुम्बई आयकर विभाग ने हसन अली को विदेशी बैंक में खाता रखने और उसे घोषित करने के आरोप में नोटिस क्यों भेजा? और नोटिस भेजा था तो उस पर आगे अमल क्यों नहीं किया गया, आयकर विभाग अब तक क्यों सोता रहा? राज्यसभा में 4 अगस्त 2009 को ही जब सरकार ने लिखित में मान लिया था कि हसन अली 50,0000 करोड़ का देनदार है, तो पिछले 2 साल में मनमोहन सिंह-प्रणब मुखर्जी-चिदम्बरम-मोंटेक सिंह वगैरह क्या अब तक तेल बेच रहे थे?
यह विशालतम (और कल्पनातीत) डॉलरों के आँकड़े और कारनामे तो हम आज की तारीख की बात कर रहे हैं, लेकिन हसन अली रातोंरात तो इस स्तर पर पहुँचा नहीं होगा। सीढ़ी-दर-सीढ़ी राजनेताओं, अफ़सरों और व्यवस्था को पुचकारते-लतियाते-जुतियाते ही यहाँ तक पहुँचा होगा। सवाल उठता है कि उसके पिछले अपराधों पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? हसन अली खान को उसकी युवावस्था में बचाने वाले नेता और अफ़सर कौन-कौन हैं? आईये देखते हैं हसन अली के पुराने कारनामों को-
हसन अली का बाप आबकारी अधिकारी था, हैदराबाद के मुशीराबाद इलाके के इस परिवार में हसन अली का एक भाई और चार बहनें हैं। हसन अली ने शुरुआत में कबाड़ खरीदने-बेचने से शुरुआत की, फ़िर वह पुरातत्व की वस्तुओं और मूर्तियों के निर्यात के बिजनेस में उतरा (गजब का संयोग है कि सोनिया गाँधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा भी इसी धंधे में हैं, और सोनिया गाँधी के परिवार के भी इटली में शो-रुम हैं जो “एंटीक” वस्तुओं का आयात-निर्यात करते हैं)। खैर… हसन अली हैदराबाद से पुणे चला गया और वहाँ घोड़ों को खरीदने-बेचने-ट्रेनिंग देने और रेस में पैसा लगाने का धंधा शुरु कर लिया, उसकी दूसरी बीबी (वर्तमान) इस धंधे में उसकी पार्टनर बताई जाती है। जबकि पहली बीबी मेहबूबुन्निसा बेगम अपने दो बेटों के साथ आज भी हैदराबाद के “सुपर-पॉश” बंजारा हिल्स इलाके में रहती है।
(हसन अली के समर्थक और कांग्रेस के चमचे कहेंगे कि इसमें कौन सी बड़ी बात है, कोई भी व्यक्ति कोई सा भी धंधा कर सकता है, जब तक वह कोई गैरकानूनी काम नहीं करता)
लेकिन मामला इतना सीधा नहीं है, मार्च 1990 में (यानी आज से 21 साल पहले) हैदराबाद के SBI की चारमीनार ब्रांच के मैनेजर ने पुलिस में FIR दर्ज की थी कि हसन अली ने फ़र्जी ड्राफ़्टों की धोखाधड़ी के जरिये 26 लाख रुपये निकाल लिये हैं और चेक बाउंस होने के बावजूद धड़ाधड़ चेक काटता रहा और माल उठाता रहा है। इसी से मिलती-जुलती शिकायत लिखित में हैदराबाद के ANZ Grindlays Bank के मैनेजर ने भी कर रखी है (कोई नहीं जानता कि 21 साल में इस धोखेबाज पर क्या कार्रवाई हुई)।
सितम्बर 1991 में केन्द्र सरकार ने “अनोखी” योजना जाहिर की थी कि जितने भी टैक्स चोर हैं, काले धन के मालिक हैं… वे अपनी सम्पत्ति में से 30% टैक्स दे दें तो उनकी सारी सम्पत्ति “सफ़ेद धन” मान ली जायेगी। (Voluntary Disclosure Income Scheme) यानी ऐ टैक्स चोरों, हमारी तो औकात है नहीं कि हम तुम्हें पकड़ सकें, इसलिये आओ और “भीख” में अपने 30% टैक्स का टुकड़ा डाल जाओ और ऐश करो… तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा… (बड़े-बड़े हरामखोर मगरमच्छों को “प्यार से सहलाने” वाली इस अनोखी स्कीम के प्रणेता भी उस वक्त हमारे “ईमानदार बाबू” ही थे… तालियाँ…)। इस स्कीम(?) के दौरान हसन अली ने तीन NRI लोगों, सुरेश मेहता से 10 लाख, राजेश गुप्ता से 6 लाख, एक अन्य राजेश गुप्ता से 36 लाख, टी रामनाथ और पी कोटेश्वर राव से 18 लाख रुपये “सरेण्डर” करवाने का आश्वासन देकर फ़र्जी अन्तर्राष्ट्रीय मनीऑर्डरों को ड्राफ़्ट में बदलकर उन्हें और सरकार को कुल 70 लाख का चूना लगा दिया। हैदराबाद पुलिस ने हसन अली को 1991 और 1992 में दो बार गिरफ़्तार किया था, लेकिन “रहस्यमयी” तरीके से उस पर कोई खास कार्रवाई नहीं हुई।
(VDIS नामक बेशर्म और नपुंसक योजना में 30,000 करोड़ की सम्पत्ति उजागर हुई और सरकार को 7800 करोड़ का राजस्व मिला… लेकिन फ़िर भी कोई सत्ताधीश या वित्तमंत्री शर्म से डूब कर नहीं मरा…)
एक बार हसन अली अपनी माँ की बीमारी का बहाना बनाकर कनाडा भाग गया था, फ़िर हैदराबाद पुलिस इंटरपोल रेडकॉर्नर नोटिस के जरिये उसे गिरफ़्तार करवाकर मुम्बई लाई और हैदराबाद ले गई। धोखाधड़ी के उस केस में हसन अली की चार कारें और एक मर्सीडीज़ (उस जमाने में भी मर्सीडीज़ थी उसके पास) जब्त कर लीं। जब केस कोर्ट में आगे बढ़ा तो जिन चारों NRI ने उसके खिलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की थी, वे बयान देने भारत ही नहीं आये। फ़िलहाल इस केस की क्या स्थिति है, यह किसी को नहीं पता… लेकिन हैदराबाद पुलिस के अन्दरूनी सूत्रों का कहना है कि मां की बीमारी का सिर्फ़ बहाना था, असल में हसन अली, उन चारों व्यक्तियों को “धमकाने” के लिये ही कनाडा गया था।
हसन अली पर सबसे पुराना केस दर्ज हुआ है 1984 में, जब उसने अपने पड़ोसी डॉक्टर पी निरंजन राव पर एसिड फ़ेंक दिया था। डॉ राव के चेहरे पर 30 टांके आये थे, और पुलिस ने हसन अली को गिरफ़्तार भी किया था… आगे क्या हुआ, पुलिस के रिकॉर्ड से ही गायब है। (यानी कुल मिलाकर हसन अली खानदानी अपराधी लगता है…)
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट हसन अली (यानी सरकार के) पीछे पड़ गया है तो ऐसे ही हल्का-पतला मामला बनाकर कोर्ट में पेश किया और सबूत न होने का बहाना बनाकर छुड़वा भी लिया। प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग “सबूत नहीं है”, ऐसा कैसे कह सकते हैं… यही आश्चर्य और जाँच का विषय है, क्योंकि जनवरी 2007 में हसन अली के कोरेगाँव (पुणे) स्थित आवास पर छापा मारकर जो दस्तावेज जब्त किये थे, जिनसे साबित होता था कि हसन अली ने 8 बिलियन डालर यूबीएस बैंक (ज्यूरिख) में जमा किये हैं… वे कागज़ कहाँ गये? छापा इसलिये भी मारा गया था कि हसन अली ने 1999 से अब तक आयकर रिटर्न नहीं भरा है… क्या यह सबूत नहीं माना जाता? ऐसे कैसे पिलपिले सबूत लाये और कौन सी मरियल धाराएं लगाईं कि जज ने हसन अली को जमानत दे दी? जबकि साध्वी प्रज्ञा को तो बगैर किसी सबूत के हिरासत में प्रताड़ित कर-करके लगभग मौत के दरवाजे तक पहुँचा दिया है…
किसी आम आदमी को तो कोई भी सरकारी विभाग रगड़कर रख देता है…तो फ़िर हसन अली से उसके घर जाकर पूछताछ क्यों की गई? क्यों नहीं उसे घसीटकर थाने लाये, पिछवाड़ा गरम किया और उसके बाद पूछताछ की? साफ़ है कि आज की तारीख में हसन अली को कोई “अदृश्य शक्ति” बचा रही है? यदि अभी बचा भी रही है, तो इससे पहले के जो मामले आंध्रप्रदेश (हैदराबाद) में उस पर दर्ज हुए, उस वक्त किस शक्ति ने उसे बचाया? क्योंकि आंध्रप्रदेश में भी तो अधिकतर समय कांग्रेस की ही सरकार रही है, क्या YSR ने? या चंद्रबाबू ने? या फ़िर केन्द्र सरकार के “आर्थिक विशेषज्ञों” ने? या केन्द्र सरकार से भी ऊपर की किसी विशिष्ट अज्ञात शक्ति ने?
जब बाबा रामदेव चार-पाँच सवाल पूछते हैं तो दिग्गी राजा और कांग्रेस के “पालतू भड़ैती मीडियाई” तुरन्त बाबा रामदेव से हिसाब-किताब माँगने लगते हैं, उनके खिलाफ़ किस्से-कहानियाँ छापने लगते हैं, उल्टा-सीधा बकने लगते है, ये और बात है कि हसन अली से हिसाब माँगने और उसके “ऊँचे सम्बन्धों” की तहकीकात करने की औकात किसी भी मीडिया हाउस की नहीं है, क्योंकि दरवाजे पर खड़ा कुत्ता हड्डी की आस में सिर्फ़ पूँछ हिला सकता है, मालिक पर भौंक नहीं सकता.