आजाद भारत का जो सपना लोगों ने गुना-बुना था, वह पूरा न हो सका। कई आकांक्षाएं अधूरी रह गईं और कितनी पैदा होने से पहले ही खत्म हो गईं। इस बात पर बहस हो सकती है। जिसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से राजनैतिक पार्टियां जिम्मेदार ठहराई जाएंगी। लेकिन भारतीय समाज तमाम राजनैतिक बुराईयों के बावजूद नियमित गति से आगे बढ़ रहा है। इसकी वजह केवल एक है, वह है यहां के समाज में होने वाला सार्थक प्रयास। इसके बल पर ही आज समाज की रौनकें बची हुई हैं।
यह बात अलग है कि कुछ छोटे स्तर पर हो रहे हैं तो कुछ बडे स्तर पर। लेकिन, इसकी महत्ता भारतीय समाज की दृष्टि से एक ही है। ‘सुलभ अंतर्राष्ट्रीय सामाजिक कार्य संगठन’ के संस्थापक डा. बिंदेश्वर पाठक एक ऐसा ही सार्थक प्रयास चला रहे हैं। आज दुनिया भर की जनता इनके कार्यों की महत्ता समझ रही है। करोड़ों लोग इसका फायदा उठा रहे हैं। बिहार के वैशाली जिले के निवासी डा. पाठक ने सार्वजनिक शौचालय व्यवस्था के विचार को ऐसा जमीनी रूप प्रदान किया जिसकी जरूरत आज दुनिया महसूस कर रही है। वह पिछले तीस वर्षों से भी अधिक समय से इस कार्य से जुड़े हुए हैं। गौरतलब है कि उस वक्त जमाना इस कार्य को बड़े हेय दृष्टि से देखता था। इस काम को करने वाले अछूत माने जाते थे। पर डा. पाठक ने इस कार्य को रचनात्मक रूप प्रदान किया जो आगे देश और दुनिया भर में फैल गया। हाल में ही यूएनडीपी द्वारा जारी ‘मानव विकास रिपोर्ट’ में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डा. पाठक के उल्लेखनीय योगदान की प्रशंसा की गई है।
यह बात स्पष्ट रूप से कही गई कि ‘सुलभ’ स्वच्छता सुविधाएं उपलब्धा कराने वाले दुनिया के सर्वाधिक बड़े गैर सरकारी संगठनों में से एक है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम ने भी अपनी पुस्तक ‘मिशन इंडिया’ में स्वच्छता के क्षेत्र में तथा मेहतरों की मुक्ति के लिए डा. पाठक के योगदान की चर्चा की है। आज यह संस्था पूरे विश्व में स्थानीय जलवायु और जरूरत के हिसाब से स्वच्छता और सफाई को ध्यान में रखते हुए शौचालय की स्वदेशी प्रणाली विकसित करने में लगी है। यह कम लागत के शौचालयों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज सुलभ देशभर में स्वच्छता अभियान को धयान में रखते हुए यह कार्यक्रम चला रहा है।
वर्तमान समय में प्रत्येक दिन 1.05 करोड़ लोग सुलभ शौचालयों का इस्तेमाल कर रहे हैं। आज डा. पाठक दुनिया भर में निम्न लागत वाली शौचालय प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए जाने जाते हैं। उनके इस योगदान से आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देश लाभान्वित हो रहे हैं।
देश की सरकार या राजनैतिक पार्टियां तो ऐसे रचनात्मक कार्य नहीं कर सकीं, लेकिन वे डा. पाठक को पुरस्कृत कर सुकून महसूस कर रही हैं। उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके बाद भारत सरकार ने उन्हें इस कार्य के लिए इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया है।
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