भारतवर्ष के सबसे बड़े धार्मिक व सामाजिक समागम के रूप में पूरे विश्व में अपनी अनूठी पहचान रखने वाला महाकुंभ का मेला जो इन दिनों मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में सिहंस्थ महाकुंभ के नाम से मनाया जा रहा है, इस बार इस मेले पर पूरी तरह से राजनीति का रंग चढ़़ाने का कोशिश की गई है। महाकुंभ का समागम देश का एक ऐसा अंतर्राष्ट्रीय स्तर का समागम है जिसमें केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों के श्रद्धालु अपनी आस्था की डुबकी लगाने हेतु यहां पहुंचते हैं। यह मेला अपने क्रम के अनुसार कभी उज्जैन,कभी नासिक तो कभी इलाहाबाद व हरिद्वार जैसे तीर्थस्थलों पर आयोजित होता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार देवताओं तथा राक्षसों के मध्य हुए समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन्हीं उपरोक्त चार तीर्थस्थलों पर गिरी थीं। इसीलिए इन तीर्थस्थानों का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। इस स्नान में कुंभ व महाकुंभ के मेले के दौरान शरीक होने हेतु देश-विदेश से केवल हिंदू धर्म के लोग ही नहीं आते बल्कि लगभग सभी धर्मों के अनुयायी इस आयोजन में किसी न किसी रूप में शरीक होते हैं। विदेशी पर्यट्कों तथा श्रद्धालुओं का तो इस मेले में बा$कायदा एक अलग कैंप लगाया जाता है। इस बार के सिंहस्थ महाकुंभ के उज्जैनमें मौलाना मौज तैराक दल संघ नामक एक ऐसे तैराकी क्लब द्वारा अपनी सेवाएं दी जा रही हैं जिसमें लगभग सभी तैराक मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते हैं। मेले के दौरान इस क्लब के मुस्लिम तैराकों द्वारा अब तक सैकड़ों भक्तों को डूबने से बचाया है। क्लब के अध्यक्ष अखलाक खान हैं। इनके मुस्लिम तैराकों द्वारा 22 अप्रैल को पहले शाही स्नान के दिन ही 6 लोगों को डूबने से बचाया गया। यह दल सिंहस्थ महाकुंभ के अंतिम दिनों तक उज्जैन में अपनी सेवाएं देगा।
परंतु राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा इसके संरक्षण में संचालित होने वाली केंद्र तथा मध्यप्रदेश राज्य की सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी इस विशाल समारोह पर राजनीति का लेप चढ़ाने की तैयारी कर चुकी है। भारतवर्ष में हज़ारों वर्षों से होता आ रहा यह विशाल समागम इस वर्ष उज्जैन में कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा है गोया इस पूरे आयोजन को राष्ट्रीय स्वयं संघ अथवा भारतीय जनता पार्टी द्वारा ही आयोजित किया जा रहा हो। सिंहस्थ महाकुंभ क्षेत्र में जहां देश के तमाम अखाड़ों व साधू-संतों के पंडाल पारंपरिक रूप से लगाए गए हैं वहीं इस बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी ने इसी मेला क्षेत्र में अपने वृहद् पंडाल लगाए हैं। संघ द्वारा इस अवसर पर एक तीन दिवसीय वैचारिक महाकुंभ का आयोजन भी किया जा रहा है। जिसमें मानव कल्याण के लिए धर्म, धर्म आधारित जीवन,विज्ञान और अध्यात्म तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर चर्चा किए जाने का प्रस्ताव है। ‘वैचारिक महाकुंभ के नाम से होने वाले इन कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,भाजपा अध्यक्ष अमित शाह,संघ प्रमुख मोहन भागवत तथा मध्यप्रदेश के मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित केंद्र और राज्य सरकार के अनेक मंत्री,सांसद तथा विधायक आदि शिरकत करेंगे। समझा जा रहा है कि 12 से 14 मई तक आयोजित होने वाले इस अंतर्राष्ट्रीय वैचारिक महाकुंभ में जारी होने वाले घोषणा पत्र के अनुसार ही सरकार भविष्य की कुछ योजनाएं भी बना सकती है।
सिहंस्थ महाकुंभ पर राजनीति का लेप चढाए जाने के अपने सिलसिले की एक प्रमुख कड़ी के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने समरसता व शबरी स्नान नाम के स्नान आयोजन की घोषण भी की है। संघ तथा भाजपा ने वैसे तो यह प्रयास इसलिए किया है ताकि संघ व भाजपा के साथ देश के दलित समाज को व्यापक स्तर पर जोड़ा जा सके। इस समरसता स्नान के अवसर पर योजना अनुसार अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति व दलित समाज के लोगों को सिंहस्थ महाकुं ा में सामूहिक स्नान कराकर देश के दलित समाज को समरसता का संदेश देना है। इस ‘राजनैतिक स्नान का आयोजन राष्ट्रीय स्वयं संघ से जुड़ी एक संस्था पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन द्वारा किया गया है। पंरतु देश में अब तक आयोजित होने वाले कुंभ अथवा महाकुंभ के किसी भी मेले में पहली बार आयोजित किए जा रहे जाति आधारित इस प्रकार के स्नान को लेकर का$फी विवाद पैदा हो गया है। जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सहित देश के और अनेक प्रमुख संतों तथा कई अखाड़ा प्रमुखों ने संघ द्वारा आहूत इस जाति आधारित कथित समरसता स्नान के आयोजन के औचित्य पर सवाल खड़े किए हैं। इस कथित समरसता स्नान में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी स्नान करने हेतु शामिल होने वाले हैं। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने भारतीय जनता पार्टी व संघ से यह सवाल किया है कि समरसता स्नान के नाम पर पार्टी नौटंकी क्यों कर रही है? उन्होंने कहा है कि-‘किसी भी नदी ने कभी भी किसी की जाति नहीं पूछी है और न ही किसी ने कभी इसमें दलितों को स्नान करने से रोका है। फिर आ$िखर इतने दिनों से चल रहे सिंहस्थ में दलितों को जब किसी ने नहीं रोका फिर भाजपा अध्यक्ष का कुंभ में दलितों के साथ स्नान करना दिखावा और नौटंकी ही है। इससे भेदभाव ही बढ़ेगा
गौरतलब है कि संघ के अधीन कार्यरत संस्था पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन ने इस प्रस्तावित विवादित समरसता स्नान के लिए अनुसूचित जाति,जनजाति वर्ग के जनप्रतिनिधियों अर्थात् पंच व सरपंच से लेकर सांसदों तक तथा सेवा निवृत अधिकारी व समाज के साधू-संतों को उनकी जाति के आधार पर सूचीबद्धकरने का प्रयास किया है। यहां यह भी $काबिल-ए-जि़क्र है कि दीनदयाल विचार प्रकाशन न तो कोई धार्मिक संस्था है न ही कोई सरकारी प्रतिष्ठान। इसके बावजूद यह संस्था सरकारी $खर्च पर यह प्रस्तावित विवादित समरसता स्नान का आयोजन कर रही है। इस संस्था की सबसे बड़ी विशेषता व योग्यता केवल यह है कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्यों द्वारा संघ के अधीन चलाई जाने वाली एक संस्था है। इस विवादित स्नान आयोजन के संदर्भ में इस बात का जि़क्र करना भी बहुत ज़रूरी है कि हमारे देश में साधू-संतों का एक ऐसा समाज है जिसमें साधू वेश धारण करते समय किसी भी व्यक्ति की जाति अथवा उसका धर्म नहीं पूछा जाता। आज तक किसी भी कुंभ,अर्धकुंभ अथवा महाकुंभ के स्नान में ऐसा नहीं सुना गया कि जाति अथवा धर्म के आधार पर किसी साधारण व्यक्ति अथवा किसी साधू-संत को डुबकी लगाने से रोका गया हो। ऐसे में समरसता के नाम पर इस प्रकार के आयोजन का अर्थ ऊंच-नीच का भेदभाव $खत्म करना तो कम उल्टे फासला पैदा करना अधिक मालूम होता है।
इसी प्रकार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेंद्र गिरी जी महाराज ने भी सामाजिक समरसता के नाम पर दलित संतों के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह व मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदि नेताओं के स्नान पर अपना विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि यह कहावत मशहूर है कि ‘जाति न पूछिए साधू की, पूछ लीजिए ज्ञान। साधुओं में कोई दलित अथवा स्वर्ण नहीं होता। सभी संतों व महंतों द्वारा सिंहस्थ में एकसाथ सामूहिक रूप से स्नान किया जाता है। समरसता का संदेश इन मौ$कापरस्त राजनीतिज्ञों द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से बेहतर क्या पेश किया जाएगा जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाकर पूरे विश्व को जातिगत छुआछूत व भेदभाव से दूर रहने तथा परस्पर समरसता बनाए रखने का संदेश दिया? परंतु बड़े दु:ख की बात है कि भगवान श्रीराम के स्वयंभू राजनैतिक भक्तों द्वारा सत्ता की राजनीति करने के लिए अयोध्या मंदिर विवाद को तो अपना अस्त्र समय-समय पर ज़रूर बनाया जाता है परंतु समाज में फैले जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए सामाजिक स्तर पर कोई रचनात्मक कार्य नहीं किया जाता। और कुंभ व महाकुंभ जैसे धार्मिक समागमों के अवसर पर जहां जातिगत भेदभाव की परवाह किए बिना हज़ारों वर्षों से भक्तजन डु़बकी लगाते आ रहे हैं, जिस साधु समाज में सैकड़ों दलित माता-पिता से पैदा हुए लोग साधू बनकर उच्च पदों पर आसीन हैं, कथावाचक व गद्दीनशीन बने हुए हैं यहां तक कि मुस्लिम परिवार में पैदा हुए कई लोग हिंदू धर्माेपदेशक,संत व प्रवचनकर्ता के रूप में अपना विशिष्ट स्थान बनाए हुए हैं। ऐसे आयोजन में तथा संत समाज में जहां साधू की कोई जाति नहीं पूछी जाती वहां जाति के नाम पर ही समरसता का ढिंढोरा पीटना अपने-आप में एक राजनैतिक षड्यंत्र के सिवा और कुछ नहीं।
यदि वास्तव में बुनियादी तौर पर समाज से जातिगत् भेदभाव समाप्त करना है तो संघ को उन क्षेत्रों में $खासकर राजस्थान व मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में जाकर समरसता का पाठ पढ़ाना चाहिए जहां दलित दूल्हे को घोड़ी पर सवार नहीं होने दिया जाता, छत्तीसगढ़ व झारखंड जैसे राज्यों में जहां स्कूल में बच्चों को दलितों के हाथ का बना खाने से परहेज़ होता है, जिन मंदिरों में दलितों के प्रवेश को स्वयंभू उच्चजाति के लोगों ने वर्जित कर रख है जहां आज भी दलितों को अपने बराबर कुर्सी अथवा चारपाई पर बैठने की इजाज़त नहीं है जहां आज भी स्वयंभू उच्चजाति के लोगों द्वारा दलितों को अलग बर्तनों में खाना व पानी दिया जाता हो वहां जाकर समरसता कीडुगडुगी बजाने की कोशश करनी चाहिए न की ऐसी जगहों पर जहां पहले से ही सामाजिक समरसता का बोलबाला हो।