गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश की महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल द्वारा राष्ट्र के नाम अपना संदेश प्रसारित किए जाने में अभी कुछ ही घंटे का समय बाकी था कि इसी बीच महाराष्ट्र राज्य के नासिक जि़ले के करीब मनमाड नामक स्थान से एक दिल दहला देने वाला सनसनीखेज़ समाचार प्राप्त हुआ। खबर आई कि पेट्रोल में मिट्टी के तेल की मिलावट करने वाले तेल माफियाओं ने एक ईमानदार व होनहार अतिरिक्त जि़लाधिकारी को 25 जनवरी,मंगलवार को दोपहर ढाई बजे के करीब मुख्य मार्ग पर सरेआम जिंदा जला कर मार डाला।
हाल ही में पदोन्नति प्राप्त करने वाले अतिरिक्त जि़लाधिकारी यशवंत सोनावणे ने पानीवाडी ऑयल डिपो में छापा मारा तथा यह पाया कि एक कैरोसीन टैंकर से तेल निकाल कर पैट्रोल में मिलाया जा रहा है। उन्होंने इस पूरे अपराधिक घटनाक्रम की वीडियो भी अपने मोबाईल द्वारा बनाई। जब उन्होंने रंगे हाथों अपराधियों द्वारा की जाने वाली मिलावटखोरी का पर्दाफाश किया तथा आवश्यक कार्रवाई के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों को बुलाया उसी समय मोटर साईकलों पर सवार कई व्यक्ति पानीवाडी ऑयल डिपो पर पहुंचे तथा अतिरक्ति जि़लाधिकारी यशवंत सोनावणे से उलझ बैठे। देखते ही देखते वे अपराधी यशवंत के प्रति आक्रामक हो गए। उनकी आक्रामकता तथा अधिकारी के साथ की जा रही मारपीट से भयभीत होकर यशवंत सोनावणे का ड्राईवर तथा उनके निजी सचिव घटना स्थल से भाग गए तथा पुलिस की सहायता लेने हेतु करीबी पुलिस स्टेशन पर जा पहुंचे। जब तक पुलिस घटना स्थल पर पहुंचती तब तक यशवंत सोनावणे के रूप में एक और ईमानदार अधिकारी अपने कर्तव्यों की बलिबेदी पर अपनी जान न्यौछावर कर चुका था। मिलावटखोर तेल माफिया ने उन्हें मिटटी का तेल छिड़क कर सड़क पर ही जिंदा जला कर मार डाला ।
अभी अधिक समय नहीं बीता है जबकि देश ने इंडियल ऑयल के मार्केटिंग अधिकारी एस मंजूनाथन के रूप में ऐसे ही तेल के मिलावटखोरों के विरूद्धअपनी आवाज़ बुलंद करते हुए उत्तर प्रदेश के लखीमपुरखीरी जि़ले के एक मिलावटखोरी करने वाले पेट्रोल पंप पर अपनी शहादत दी थी। सत्येंद्र दूबे नामक उस ईमानदार व होनहार परियोजना अधिकारी को भी अभी देश नहीं भूल पाया है जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के निर्माण के दौरान बिहार के गया जि़ले में 27 नवंबर 2003 को ऐसे ही भ्रष्टाचारियों द्वारा शहीद कर दिया गया था। दूबे ने परियोजना में बड़े पैमाने पर हो रही धांधली की शिकायत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यालय में की थी । इसी शिकायत के तत्काल बाद दूबे की हत्या कर दी गईथी। ‘वाईब्रेंट गुजरात’ में एक भारतीय जनता पार्टी के सांसद दीनू सोलंकी के भतीजे ने अमित जेठवा नामक एक सामाजिक कार्यकर्ता की 20 जुलाई 2010 को हत्या कर दी थी। इसी हत्या के आरोप में इन दिनों वह जेल की सलाखों के पीछे है। अमित जेठवा का भी यही कुसूर था कि उसने भाजपा सांसद दीनू सोलंकी द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार तथा सरकारी संपत्ति की व्यापक लूट के विरूद्ध अपनी आवाज़ उठाने की कोशिश की थी।
यशवंत सोनावणे की हत्या के बाद,ख़ासतौर पर गणतंत्र दिवस समारोह से मात्र चंद घंटे पूर्व किए गए इस बेरहमी पूर्व कत्ल के बाद एक बार फिर यह सवाल जीवंत हो उठा है कि क्या हमारा गणतंत्र वास्तव में गणतंत्र एवं जनतंत्र कहे जाने योग्य है? कहीं यह गणतंत्र वास्तव में भ्रष्टतंत्र के रूप में परिवर्तित होने तो नहीं जा रहा? कब तक इस देश को भ्रष्टचारियों व मिलावटखोरों तथा माफियाओं व अपराधियों के चंगुल से मुक्त कराने में मंजू नाथन,सत्येंद्र दूबे,अमित जेठवा और अब यशवंत सोनावणे जैसे होनहार राष्ट्रभक्त देशवासी हमसे इसी प्रकार छीने जाते रहेंगे? एक और अहम सवाल आम लोगों के ज़ेहन में यह उठने लगा है कि कहीं देश का मुट्ठी भर संगठित अपराधी,भ्रष्ट एवं मिलावटखोर माफिया देश के एक अरब से अधिक की आबादी वाले असंगठित लोगों पर हावी तो नहीं होने जा रहा है? इस प्रकार की घटनाएं आम लोगों को बार-बार यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आज़ाद देश की परिभाषा आखिर है क्या? किस बात की आज़ादी और कैसी आज़ादी? क्या ताकतवर माफिया को अपने सभी काले कारनामे, अपराध, मिलावटखोरी, भ्रष्टाचार,लूट-खसोट, कालाबाज़ारी व जमाखोरी यहां तक कि दिनदहाड़े हत्या जैसे कृत्य करने की पूरी आज़ादी है? परंतु एक ईमानदार व होनहार अधिकारी को आज अपना कर्तव्य निभाने की आज़ादी हरगिज़ नहीं? गोया स्वतंत्रता की परिभाषा ही खतरे में पड़ती दिखाई देने लगी है। यशवंत सोनावणे की हत्या के बाद समाचार यह है कि महाराष्ट्र के लगभग 17 लाख कर्मचारी बृहस्पतिवार को अर्थात् 27 जनवरी को हड़ताल पर चले गए हैं। इनमें लगभग एक लाख दस हज़ार राजपत्रित अधिकारी भी शामिल हैं जिन्होंने मुंबई में आयोजित एक विरोध मार्च में भाग लिया है। इस विरोध प्रदर्शन एवं हड़ताल को राज्य के कर्मचारियों की लगभग सभी ट्रेड यूनियन का भी समर्थन प्राप्त है। बेशक अपराधियों व माफियाओं के विरुद्ध कर्मचारियों का इस प्रकार संगठित होना बहुत सकारात्मक लक्षण है। परंतु क्या एक राज्य के एक उच्च अधिकारी की हत्या के बाद ही इनके संगठित होने मात्र से तथा विरोध प्रदर्शन कर लेने भर से इस प्रकार के मिलावटखोर माफियाओं का संपूर्ण नाश या दमन संभव हो पाएगा? क्या इस विरोध प्रदर्शन व हड़ताल में शामिल लोगों में वे कर्मचारी या अधिकारी शामिल नहीं होंगे जो इन्हीं माफियाओं या मिलावटखोरों से पिछले दरवाज़े से अपनी सांठगांठ बनाए रखते हैं? आखिर इन मिलावटखोरों के हौसले इस कद्र कैसे बुलंद हो गए कि एक प्रशासनिक सेवा स्तर के ईमानदार अधिकारी को इन्होंने बेरहमी से दिन के उजाले में जिंदा जला कर मार डाला?
क्या ऐसा संभव है कि सरेआम इतना बड़ा अपराध अंजाम देने वालों पर तथा विगत् काफी लंबे समय से इसी प्रकार मिलावटी तेल बेचते रहने वालों पर किसी प्रकार का राजनैतिक,प्रशासनिक अथवा शासकीय संरक्षण न हो? इलाके की पुलिस स्वयं यह स्वीकार कर रही है कि इस घटना को अंजाम देने वाला व्यक्ति इस क्षेत्र का सबसे बदनाम तेल का मिलावटखोर तथा तेल की ब्लैक मार्किटिंग करने वाला व्यक्ति है। इस घटना में शामिल एक अपराधी पोपट शिंदे पहले भी दो बार तेल में मिलावट करने तथा तेल ब्लैक करने जैसे अपराध में गिरफ्तार किया जा चुका है। इसी इलाके से एक और खबर यह भी प्राप्त हुई है कि कुछ ही समय पूर्व वसई नामक स्थान पर एक ट्रैफिक कर्मचारी को भी गुंडों द्वारा इसी प्रकार जिंदा जलाकर मार दिया गया था। यानी यह भी गणतंत्र पर गुंडातंत्र के हावी होने की एक जीती-जागती मिसाल थी।
बहरहाल इस प्रकार की घटनाएं जहां हमारे देश की न्याय व्यवस्था, शासन व प्रशासन को बहुत कुछ सोचने तथा अभूतपूर्व किस्म के फैसले लेने पर मजबूर कर रही हैं वहीं देश की साधारण एवं आम जनता का भी और अधिक देर तक मूक दर्शक व असंगठित बने रहना भी ऐसे माफियाओं व भ्रष्टाचारियों की हौसला अफज़ाई करने से कम हरगिज़ नहीं है। कमोबेश देश के सभी जि़लों,शहरों,कस्बों व नगरों के आम लोगों को अपने-अपने क्षेत्र के ऐसे भ्रष्टाचारियों,मिलावटखोरों तथा माफियाओं के संबंध में सारी हकीकतें भलीभांति मालूम होती हैं। ज़रूरत केवल इस बात की है कि यही उपभोक्ता रूपी आम जनता जोकि स्वयं किसी न किसी रूप में ऐसे भ्रष्टाचारियों का कभी न कभी कहीं न कहीं शिकार ज़रूर होती है वही आम जनता न केवल संगठित हो बल्कि शासन व प्रशासन को ऐसे लोगों के विरुद्ध सहयोग भी दे। संभव है कि ऐसा करते समय मंजुनाथन,दूबे तथा सोनावणे या जेठवा की ही तरह कुछ और वास्तविक राष्ट्रभक्त भी देश की वास्तविक स्वतंत्रता एवं वास्तविक गणतंत्र के निर्माण के लिए अपनी जान कुर्बान कर बैठें। परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इन मुट्ठीभर माफियाओं, मिलावटखोरों व भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध यदि जनता संगठित हो गई तो निश्चित रूप से इनके हौसले पस्त हो कर ही रहेंगे। अन्यथा ऐसे माफियाओं का निंतर कसता शिकंजा न केवल हमारे गणतंत्र को पूरी तरह भ्रष्टतंत्र में परिवर्तित कर देगा बल्कि हमारी आने वाली वह नस्लें जिनपर हम देश के भावी कर्णधार होने का गुमान करते हैं वह भी इनसे भयभीत व प्रभावित होने से स्वयं को नहीं बचा सकेंगी। यशवंत सोनावणे की बेरहमी से की गई हत्या से दु:खी हो का प्रसिद्ध गांधीवादी एवं सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे ने अपना मौन व्रत तोड़ते हुए यह मांग की है कि जिस प्रकार मिलावटखोर तेल माफिया ने एक होनहार व ईमान दार अधिकारी को जिंदा जलाकर दिनदहाड़े मार डाला है उसी प्रकार इन जैसे अपराधियों को भी सरेआम फांसी के फंदे पर लटका दिया जाना चाहिए। हमारे कानून निर्माताओं को इस विषय पर भी गंभीरता से चिंतन करते हुए तत्काल ऐसे कानून बनाए जाने चाहिए तथा ऐसे कुछ अपराधियों को यथाशीघ्र फांसी के फंदे तक पहुंंचा भी देना चाहिए ताकि हमारा देश न्यायपूर्ण एवं वास्तविक गणतंत्र स्वीकार किया जा सके।