फिल्म-निर्माताओं को ब्लेकमेल करने और उनसे जबरन वसूली का बहुत घटिया उदाहरण हमारे सामने आया है। करण जौहर की फिल्म, ‘ए दिल है मुश्किल’ अब दीवाली पर दिखाई जाएगी लेकिन इसके लिए जौहर को तीन शर्तें माननी पड़ी हैं। एक तो फौजी कल्याण कोश में उन्हें पांच करोड़ रु. जमा करने होंगे। दूसरा, फिल्म के शुरु में उड़ी के आतंकी हमले में मारे गए हमारे फौजी शहीदों को श्रद्धांजलि देनी होगी और तीसरा, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कल्याण-कोश में भी एक बड़ी राशि जमा करवानी होगी। उसे फिल्म से होने वाली आमदनी में से झटका जाएगा?
जहां तक हमारे फौजी शहीदों को श्रद्धांजलि देने का एलान है, यह तो बहुत अच्छी बात है लेकिन पैसों के लिए अपना ईमान बेच देना कहां तक ठीक है? जिन्हें कल तक आप देशद्रोही और पाकिस्तानी एजेंट कह रहे थे, वे आज अचानक ही आपको अच्छे लगने लगे हैं और वे ही रातों रात देशभक्त हो गए हैं, क्या सिर्फ इसलिए कि उन्होंने आपकी जेब गर्म कर दी है? आपकी देशभक्ति और सैनिक श्रद्धा इतनी सस्ती है? पैसे लेकर आपने अपना ईमान बेच दिया, आपसे बढ़कर बेईमान कौन होगा?
सच्चे देशभक्त तो हमारे वे सैनिक हैं, जिन्होंने इस सौदेबाजी पर थूक दिया है। उन्होंने पांच करोड़ की इस ‘दान-राशि’ को धिक्कारा है। महाराष्ट्र नव-निर्माण सेना (मनसे) इस ब्लेकमेल में सफल जरुर हो गई है लेकिन उसके मुंह पर कालिख पुत गई है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के घर पर यह सौदेबाजी शायद इसलिए संपन्न हो गई कि दीवाली के अवसर पर मुख्यमंत्री मारपीट, आगजनी और लूटपाट को टालना चाहते होंगे।
इस दृष्टि से यह सौदेबाजी अच्छी रही लेकिन फिर सरकार किस चिड़िया का नाम है? पुलिस और फौज आपने किसलिए बना रखी है? गुंडागर्दी के आगे आत्म-समर्पण करने वाली सरकार को क्या सरकार कहलाने का हक है? हमारे फिल्म-निर्माताओं और कलाकारों की मजबूरी समझी जा सकती है। उनका मोटा पैसा और पतली जान खतरे में आ गई थी। यों भी उनसे आशा की जाती है कि जब देश में एक खास किस्म का माहौल बन जाता है तो वे उसका सम्मान करें लेकिन फिल्म-निर्माता गिल्ड इतनी जल्दी ब्लेकमेल के आगे घुटने टेक दें, इससे क्या सिद्ध होता है? क्या यह नहीं कि ये लोग सिर्फ ‘एक्टिंग’ कर सकते हैं, ‘एक्शन’ नहीं कर सकते?