अभी तीन-चार दिन पहले मैं बिहार में था, हिंदी साहित्य सम्मेलन के सिलसिले में। तब मुख्यमंत्री नीतीशकुमार के साथ मुलाकात भी हुई। सबसे ज्यादा नशाबंदी के बारे में बात हुई। शराबबंदी पर मैं उस दिन लिख चुका था। फिर अब दुबारा क्यों लिख रहा हूं? इसलिए कि आज खबर पढ़ी कि नीतीश ने पूर्ण शराबबंदी की घोषणा कर दी। उस दिन हमारी बातचीत का असली मुद्दा यही था। मैंने नीतीशजी से पूछा कि भाई, आपने इस महान कार्य को अधूरा क्यों छोड़ दिया? आपने देशी शराब तो बंद कर दी लेकिन शहरों में विदेशी ब्रांड की शराब चलने दी? अब गांव के गरीबों की जेब ज्यादा कटेगी। वे शहरों में आकर मंहगी शराब पिएंगे। इसके अलावा इस विदेशी शराब को बेचने के लिए सरकारी दुकानें खोली जाएंगी। शहरों में सरकार शराब बेचेगी और गांवों में उसके विरुद्ध वह अभियान चलाएगी। यह सब कैसे होगा?
मुझे बताया गया कि शराब पर लगने वाले प्रतिबंध से जो 4-5 हजार करोड़ का टैक्स-घाटा होगा, उसकी पूर्ति ये सरकारी दुकानें करेंगी। इसके अलावा नीतीश-गठबंधन के कुछ मोटे स्तम्भों की खुराक इसी विदेशी शराब के विक्रेताओं से मिलती है। पता नहीं, यह कहां तक ठीक है लेकिन मेरे सारे तर्कों को सुनने के बाद मितभाषी मुख्यमंत्री नीतीश ने कहा, भाईसाहब आप देखते जाइए, मैं बिहार में पूर्ण शराबबंदी करुंगा। और अब इसकी घोषणा हो गई है। अभी भी ताड़ी पर प्रतिबंध नहीं लगा है। वह भी किसी दिन लग सकता है।
असली बात यह है कि यह प्रतिबंध सफल होगा या नहीं? यह प्रतिबंध प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के अलावा कर्पूरी ठाकुर, बंसीलाल और नरेंद्र मोदी ने भी अपने-अपने प्रांतों में लगाया था लेकिन इसका जितना पालन हुआ, उससे ज्यादा उल्लंघन ही हुआ। बिहार में भी झारखंड, पं. बंगाल और मप्र से आपूर्ति शुरु हो गई है। मैंने सुझाया कि इसे जब तक आप जन-आंदोलन नहीं बनाएंगे, इसका सफल होना मुश्किल है। यदि आप मुख्यमंत्री होते हुए शराब के विरुद्ध जन-आंदोलन खड़ा कर सकें तो आप बिहार के ही नहीं, देश के नेता बन जाएंगे। मैंने उनसे हिंदी के लिए कुछ नए नियम बनाने और जन-आंदोलन चलाने की बात भी कही। उन्होंने कहा मैं शराबबंदी और हिंदी, इन दोनों कामों को डटकर करुंगा। मैंने उनसे कहा, यह मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने से कहीं ज्यादा बड़ी बात है।