देश के साथ गद्दारी में कम्युनिस्ट सबसे आगे रहते हैं । इन कम्युनिस्ट गद्दारों के गद्दारों की सूची बहुत लंबी है फिर भी आज इनके काले, घिनौने और गंदें करतूतों से आपको अवश्य रूबरू करवाएंगे । अगर आप कम्युनिस्टों को देशभक्त, शांति का प्रतीक, गैरफासिस्ट, आजादी के आंदोलन का अग्रणी पथ के नायक, भारत छोड़ो आंदोलन में अग्रणी पथ के क्रांतिकारी, महात्मा गांधी का समर्थक समझने की भूल बिल्कुल मत करें । गद्दार कम्युनिस्टों के हृदय में सुभाषचंद्र बोस के लिए बिलकुल सम्मान नहीं था वे इन्हें तोजो का कुत्ता कहते थे । आज इस्लामिक आतंकवाद पर यदि कोई बोलना चाहता है तो सबसे पहले ये कम्युनिस्ट ही आतंकी को बचाने में सहायता करने आते हैं।
प्रथम, कम्युनिस्टों की देश के साथ गद्दारी का इतिहास तो आजादी की लड़ाई से ही आरंभ हो जाती है। आजादी की लड़ाई गांधी के हाथों में थी, गांधी देश की आजादी के आंदोलन के नायक थे, दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने पर उन्होंने यह देखा कि देश की जनता हालत बेहद नाजुक है। देश की जनता को ठीक से खाने को अन्न नहीं और न ही पहनने को कपड़े । ये सब देख गांधी मर्माहत हुए थे, उन्होंने अपने कपड़े उतार कर लगोटी धारण कर ली थी। उस गांधी को कम्युनिस्टों ने कहा था ये महात्मा गांधी अंग्रेजों का दलाल और एजेंट है, लगोटी धारण करना सिर्फ नौटंकी है। गांधी की लंगोटी में कम्युनिस्टों ने समाजवाद के दर्शन नहीं देखे । कम्युनिस्टों को महात्मा गांधी की लगोटी साम्राज्यवादी लगती थी। इतना ही नहीं इन कम्युनिस्टों ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का प्रखर विरोध किया था। गांधी ने 8 अगस्त, 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ कर अंग्रेजी शासन के विरूद्ध एक अहिंसक युद्ध छेड़ा था । ज्ञात हो कि कम्युनिस्टों ने आज तक यह ठीक से उत्तर नहीं दे पाए 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध क्यों किया था। इस विरोध से आप कयास लगा सकते हैं कि कम्युनिस्टों ने देश की आजादी के आंदोलन के साथ गद्दारी की थी।
द्वितीय, कम्युनिस्टों की सबसे बड़ी गद्दारी तो 1962 में पूरे देश को देखने को मिला । आज तक उस गद्दारी पर कम्युनिस्ट बात करनें पर मुंह छिपाए लेते हैं, यदि इन्हें कोई गद्दार कहता है तब ये हिंसक कार्यवाही पर उतर जाते हैं। सनद रहे कि कम्युनिस्ट पार्टियों ने 1962 में चीन के तानाशाह माओत्से तुंग द्वारा भारत पर किए गए हमले का पुरजोर समर्थन किया था। चीन की विस्तारवादी, उपनिवेशवादी, साम्राज्यवादी सेना द्वारा हमारे करीब छह हजार सैनिकों हत्या और हमारी 90 हजार वर्ग मिल भूमि कब्जाने पर कम्युनिस्टों नें खूब खुशियां मनाई और मिठाइयां बाटी थी इतना ही नहीं असम सहित कई जगहों पर चीनी सेना के समर्थन में बैनर लगाए गए थे।
चीन के तानाशाह आक्रमणकारी माओत्से तुंग को कम्युनिस्टों ने जवाहर लाल नेहरू की जगह भारत का प्रधानमंत्री कहा था। इससे आप समझ सकते हैं कि कम्युनिस्ट जब गद्दारी पर उतर आते हैं तो किस हद तक जा सकते हैं। कम्युनिस्टों की यही गंदी मानसिकता थी कि भारत पर कब्जा करने के बाद माओत्से तुंग भारत पर कम्युनिस्ट-तानाशाही राज कायम कर सत्ता की चाभी उन्हें सौंप देंगे। बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी, कम्युनिस्टों ने सामरिक कारखाने में हड़ताल करा दिए थे, इसलिए कि भारतीय सैनिकों को हथियार और बारूद की आपूर्ति बुरी तरह रूक जाए और भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों के हाथों मार डाले जाएं ।
अब आपको यह जानकारी हो गई होगी कि दुनिया के इतिहास में यह पहली घटना थी जब युद्ध के समय अपने ही सैनिकों को हथियार और बारूद की आपूर्ति हड़ताल करवाकर रोकी गई हो। और तो और सीपीएम आज तक यह नहीं कहती कि चीन आक्रमणकारी था और उसने 1962 में भारत पर आक्रमण किया था और माओत्से तुंग को तो ये 1962 से भगवान मानने लगे । कम्युनिस्टों के आराध्य माओत्से तुंग ने हमारे करीब छह हजार से अधिक सैनिकों की हत्या की थी उस माओत्से तुंग को कोई देशभक्त कैसे और क्यों अपना आराघ्य मानेगा।
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को कम्युनिस्टों ने जापान और हिटलर का दलाल, तोजो का कुत्ता कह कर आजाद हिंद फौज के विरूद्ध जबरजस्त आंदोलन चलाया था।
इन कम्युनिस्टों का आदर्श और प्रेरणास्रोत हिटलर रहा है । कम्युनिस्टों का पूजनीय महापुरूष रहे हैं तानाशाह स्तालिन। यह स्तालिन सोवियत संघ के तानाशाह थे और स्तालिन के प्रेरणास्रोत रहे हैं हिटलर। हिटलर के साथ ही स्तालिन ने अनाक्रमणसंधि की थी। स्तालिन ने हिटलर के साथ अनाक्रमण संधि क्यों की थी? इसका कोई कम्युनिस्ट कोई भी सकारात्मक उत्तर नहीं दे पाते हैं।
अनाक्रमण संधि का अर्थ था हिटलर की हिंसक विस्तार नीति को स्वीकार करना। हिटलर ने अगर अनाक्रमण संधि को तोड़ कर सोवियत संघ पर हमला नहीं करता तो कम्युनिस्ट कभी भी हिटलर के आलोचक नहीं होते। हिटलर की सेना सोवियत रूस की माइनस 150 डिग्री के ठंड में ठिठुर कर बुरी तरह मरी थी। फिर भी कम्युनिस्ट अपने आपको फासिस्ट विरोधी कहते हैं। मालूम हो कि इंदिरा गांधी के अधिनायकवाद का सीपीआई ने खुलकर पूरी तरह समर्थन किया था। कम्युनिस्टों ने इन्दिरा गांधी की मुखवीर बनकर इमरजेंसी विरोधी लोगों को जेल भेजवाये थे और उन पर हिंसा और जुल्म करवाए थे।
इन कम्युनिस्टों को इस्लामिक आतंकवादी अफजल गुरू वर्तमान में प्रेरणास्रोत और गॉड फादर है। अफजल गुरू कौन था ? सुप्रीम कोर्ट तक उसे आतंकवादी माना और फांसी की सजा दी थी। अफजल गुरू ने अपने जीवंत साक्षात्कार में स्वयं को आतंकवादी कहा था, स्वयं को आतंकवाद की भयावह व आत्मा को कंपा देनें वाली घटनाओं का मास्टर मांइड होने का दावा किया था, अफजल गुरू का यह टीवी लाइव साक्षात्कार नवीन कुमार नामक टीवी पत्रकार ने लिया था। यह टीवी लाइव साक्षात्कार आज भी देखा जा सकता है। देश में अब तक दर्जनों लोगों को फांसी पर चढ़ाया गया पर सिर्फ अफजल गुरू पर ही कम्युनिस्टों ने बरसी क्यों मनाई, इसलिए कि अफजल गुरू आतंकवादी था और वह भारत विखंडन के लिए कार्य किया था साथ में भारत को पूरी तरब बर्बाद करनें का स्वप्न देखता था । ज्ञात रहे कि जेएनयू के रजिस्टार ने साफ कर दिया है कि अफजल गुरू की बरसी मनाने की स्वीकृति नहीं मिलने पर कन्हैया बहुत ही नाराज था। कम्युनिस्टों के इन गंदे कार्यों को आप देखेंगे तो इन्हें सत्ता देनें लायक नहीं समझेंगे। आप समझ जाएंगे कि ऐसे गद्दार मानसिकता के लोग यदि सत्ता में आ गए तो देश को कहां ले जाएंगे ये किसी से अब छिपा नहीं है।
इतना ही ही नहीं कम्युनिस्ट ज्योति बसु ने आडवाणी जी को घोर आपत्तिजनक बात कहा है। वे भाजपा को असभ्य और बर्बर कहा है। आडवाणी चाहकर भी ज्योति बसु की भाषा पर उतर कर जवाब नहीं दे सकते। अगर ज्योति बसु साल, छह महीने भी किसी संस्कार प्रधान संगठन में गए होते तो उनकी जुबान इतनी गन्दी न होती। ये किसी संस्कारी संगठन में रहे नहीं और न ही इनका चरित्र ऐसा था कि कोई संगठन इन्हें ले । कलकत्ता के एक दैनिक ने लिखा भी इनके चरित्र के बारे में बताया है कि वह उन अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े हैं जहां बचपन से ही “बास्टर्ड’, “रास्कल’ और “स्काउन्ड्रल’ जैसे शब्द जुबान पर चढ़ जाते हैं। और फिर रही-सही कसर जवानी में मार्क्सवादी संस्कारों ने पूरी कर दी। ज्योति बसु स्टालिन और माओ से प्रेरणा लेने वाले मार्क्सवादी माफिया से संस्कारित, शिक्षित होते हुए आगे बढ़े हुए थे । उनके भगवान स्टालिन और माओ रहे।
ज्ञात रहे कि ये स्टालिन ने सोवियत संघ में 5 करोड़ लोगों की हत्याएं करार्इं। गुलाग और साइबेरिया में लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों और हर उस व्यक्ति को जीवन भर सड़ने के लिए भेज दिया जो उसके विचारों से सहमत नहीं थे। माओत्से तुंग के सर पर तो 1 करोड़ से अधिक लोगों की मौत का “सेहरा’ बंधा है। माओत्से तुंग नें कितने लोगों को बैलट के नीचे कुचलवा दिया ।
इन कम्युनिस्टों ने तो उतने ही बड़े हत्यारे हिटलर को भी अपना भरपूर समर्थन दिया था। हत्याओं और गद्दारी से इनका इतिहास भरा पड़ा है। यदि इनके एक-एक गद्दारी को बताया जाए तो तो भी इनका इतिहास एक साथ नहीं बताया जा सकता। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में इन नीच कम्युनिस्टों नें गद्दारी की, इतना ही नहीं 1962 में चीन के आक्रमण के समय चीन की निन्दा करने से इनकार किया और युद्ध को भारत सरकार का “प्रचार’ कहकर प्रचारित किया । 1947 में द्विराष्ट्रवाद का इन दुष्टों नें समर्थन किया और भारत को अनेक राष्ट्रों का समूह बताकर उसके बिखराव की जमीन तैयार करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
नीच वामपंथी कम्युनिस्टों नें नंदीग्राम में कितनी महिलाओं से बलात्कार किया गया यह भी मालूम नहीं पड़ेगा, कितने बम चले इनकी गिनती ही नहीं। कितने लोग मारे गए यह भी मालूम नहीं पड़ेगा। कितने शव नदी में फेंक दिये, कोई नहीं जानता। राहत शिविरों में असंख्य ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें पता नहीं कि उनके मर्द कहां हैं ? और यही पार्टियां हैं जो गुजरात को लेकर इतना शोर मचाती रही हैं। गोधरा के बाद गुजरात में जो दंगे हुए वे निंदनीय हैं। हिंसा का कहीं भी कोई औचित्य नहीं है, पर नरेन्द्र मोदी ने कभी खुलेआम हिंसा को जायज नहीं ठहराया पर बुध्ददेव भट्टाचार्य तो खुलेआम कह रहे थे कि जो हुआ वह सही था।
एक पत्रकार ने नंदीग्राम से रिपोर्ट भेजी है, ‘अधिकतर जगह माकपा के कार्यकर्ता अंधाधुंध गोलियां चलाते हुए गांवों में दाखिल हो गए। उसके बाद लूटपाट और आगजनी शुरू हो गई। मध्यकालीन समय के युध्द की याद दिलाने वाले हथकंडों को अपनाते हुए सीपीएम ने एक बड़ी रैली का आयोजन किया जिसके आगे पकड़े गए 500 भूमि उच्छेद कमेटी के कार्यकर्ताओं को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल कया गया। सभी के हाथ बंधो थें इसके दो मकसद थे। एक, विरोधी अब उनकी रैली पर गोली नहीं चला सकेंगे और दूसरा अगर रास्ते में बारूदी सुरंग बिछाई गई है तो उसका असर इस मानवीय ढाल पर पहले होगा।’
मुस्लिम जेहादी वाली विष बेल को ये कम्युनिस्ट पूरी तरह खाद-पानी देते हैं। याद रहे कि जब केरल में नम्बूदिरीपाद के नेतृत्व में पहली कम्युनिस्ट सरकार बनी तो इन्होंने मुस्लिम बहुल मल्लप्पुरम् जिला बनाया, ऐसा क्यों ? वो इसलिए जिससे मुस्लिम अलगाववाद को और मजबूतकर उन्हें औरों से अलग किया जा सके। ये कम्युनिस्ट मुस्लिम लीग के साथ समझौते करके चुनाव लड़े। कलकत्ता प्रेसिडेंसी कालेज में 9 जुलाई 98 को एक पुराना हिन्दू मंदिर तोड़ा,तब इस विजय पर खूब हर्षोल्लास मनाया । संघ व विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ताओं की बहुत ही निर्मम और जघन्यता से हत्याएं की गर्इं और केरल में आज भी भारत भक्त रा.स्व. संघ के स्वयंसेवकों की छुप-छुपकर घात लगाकर हत्याएं कर रहे हैं, ताकि भाजपा वहां अपनी जड़ें न जमा सके । आजादी के बाद से अब तक इनके हाथों से पता नहीं कितने निर्दोष लोगों की हत्याएं किये फिर भी बेखौफ होकर जहरीले नाग की तरह यहां-वहां घूम रहे हैं।
आन्ध्र के तेलंगाना आन्दोलन और पश्चिम बंगाल में नक्सलवादी आन्दोलन से लेकर बिहार में चल रही माओवादी बर्बरता में यदि कोई बुरी तरह शामिल है तो सिर्फ और सिर्फ कम्युनिस्ट ही है। ये कम्युनिस्ट सर्वहारा गरीब जैसे शब्दों का मकड़जाल बुनकर वास्तव में साधारण निर्दोष वनवासियों, गिरिवासियों, किसानों की हत्या करके फूले नही समाते हैं।
इन कुत्सित, मानवता को लजा देने वाली सिंगूर गाँव की तापसी मलिक के साथ क्या किया किसी से छिपा नहीं था। तापसी मलिक नें अपनी ज़मीन टाटा को देने से मना कर दिया। इस युवती के साथ एक रात इसकी ज़मीन पर ही सीपीएम के लोगों ने बलात्कार किया और ज़िंदा जला दिया।
पश्चिम बंगाल के एक कोर्ट ने तापसी मलिक हत्याकांड में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) के दो नेताओं को हत्या का दोषी पाया है। याद रहे कि तापसी मलिक सिंगुर में ज़मीन अधिग्रहण का विरोध कर रही थी।
इन कम्युनिस्टों का अक्षम्य अपराध यह है कि इन्होंने प. बंगाल में विदेशी बंगलादेशियों की घुसपैठ करवाई और साथ में उनके राशनकार्ड, वोटर कार्ड व आधारकार्ड बनवाकर भारत की नागरिकता दिलवाई। एक प्रकार से देखा जाए तो ये भारत राष्ट्र की एकता, अखण्डता और सम्प्रभुता पर पर बहुत ही प्राणघातक हमला किया है जिसे देश की जनता कभी क्षमा नहीं करेगी। आज यही घुसपैठी बांग्लादेशी देश के विभिन्न भागों में जाकर चोरी, डकैती और बलात्कार कर रहे हैं, अभी दिल्ली में डॉ0 नारंग की हत्या को पूरे देश नें देखा कि कैसे बांग्लादेशी मुसलमान डॉक्टर नारंग की निर्ममता से हत्या कर देते हैं ।