अपनी बिगड़ी है इस जमाने से,
बात बन जाए तेरे आने से।
चाँद-तारेँ तो रूठ बैठे हैँ,
रौशनी होगी घर जलाने से।
हिज़्र की रात ये सबक सीखा,
प्यार बढ़ता है दूर जाने से।
कोई उस शोख़ से जरा पूछे,
मानता क्यूं नही मनाने से।
तुम्हेँ सिज़दा किया सनम मैनेँ,
उठ गया सर मेरा झुकाने से।