केरल में अब भारतीय कम्युनिज्म का नया कमल खिलने वाला है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नए मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बहुराष्ट्रीय निगमों को दावत दी है कि वे आएं और केरल में अपनी पूंजी लगाएं याने भारतीय और विदेशी पूंजीपतियों का केरल में स्वागत है। इसी को कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंजेल्स और लेनिन ने साम्राज्यवाद कहा था। केरल की तरह प. बंगाल में भी मार्क्सवादियों का राज लंबे समय तक रहा लेकिन वे मार्क्सवाद की पोंगापंथी मुद्रा धारण किए रहे। बाहर की पूंजी से वहां बड़े-बड़े उद्योग तो क्या लगते, जो पहले से चले आ रहे थे, वे भी भाग खड़े हुए। अब विजयन ने मार्क्सवाद की परंपरागत पगडंडी को राजमार्ग में बदलने की घोषणा की है।
जाहिर है कि केरल देश का सबसे प्रगतिशील राज्य है। दुनिया के कई छोटे-मोटे देशों से भी केरल आगे है। केरल में शत-प्रतिशत साक्षरता है। बेकारी न्यूनतम है। प्रति व्यक्ति आय भी काफी है। विदेश से आने वाली राशि भी सबसे ज्यादा है। विदेशों में रह रहे मलयाली लोगों ने केरल को एक संपन्न प्रांत बना रखा है। केरल के पर्यटन-उद्योग और रबर की खेती ने इस प्रदेश को लोक-कल्याणकारी राज्य बना दिया है लेकिन अफसोस कि इस राज्य का औद्योगिक विकास लगभग नहीं के बराबर है।
यहां की सरकारों का उद्योगों से कोई विरोध नहीं रहा है लेकिन यहां की ट्रेड यूनियनें इतनी आक्रामक रही हैं कि उनके आगे चाहे जो भी सरकार रही हो, उसे झुकना ही पड़ा है। अब विजयन ने घोषणा तो कर दी है लेकिन उन्हें और उनकी पार्टी को इन यूनियनों से निपटने की पूरी तैयारी करनी होगी। केरल की भू-राजनीतिक स्थिति इतनी अच्छी है कि विदेशी कंपनियां वहां पैसा लगाने के लिए सहर्ष तैयार होंगी। विदेशों में बसे मलयाली भी आजकल वापस लौटने की फिराक में हैं। वे भी अपने साथ अपनी विदेशी कंपनियों को लाना चाहेंगे।
जरुरी यह है कि केरल में रोजगार बढ़े। विदेशी पूंजी यदि मुट्ठी भर लोगों का ठाठ-बाठ बढ़ाती है और सिर्फ अपना मुनाफा तो यह निश्चित जानिए कि केरल के लोग इस नई व्यवस्था का पसंद नहीं करेंगे। ट्रेड यूनियनों को काबू करना मुश्किल हो जाएगा। मुख्यमंत्री विजयन मार्क्सवाद की संकरी पगडंडी को चौड़ी जरुर करें लेकिन केरल के ‘सर्वहारा’ के हितों को सर्वोपरि रखें। चीन पूंजीवादी बना लेकिन उसने अपने ‘सर्वहारा’ को डंडे से दबा रखा है। यह सुविधा केरल को नहीं मिलेगी, क्योंकि वह लोकतंत्र है।