असीम ने मुंबई पुलिस के सामने आत्मसमर्पण क्या किया नई और पुरानी मीडिया के लिए असीम का समर्पण भी गिरफ्तारी बन गया और अभिव्यक्ति की आजादी पर ऐसा ताला नजर आने लगा जिसे तोड़ने के लिए फेसबुक के दरवाजों पर धक्का मुक्की शुरू हो गई. फेसबुक समाज के ये कथित बुद्धिजीवी असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी पर संविधान के प्रतिक चिन्हों का मजाक उड़ाने वाले कार्टून के समर्थन में उतर आए हैं। रविवार की शाम से ही न्यू मीडिया में यह मुद्दा छाया हुआ है, लेकिन क्या कथित बुद्धिजीवी और श्रमजीवी पत्रकारों को पता है कि असीम की आजादी की चाह में मीडिया से ही जुड़ी कौन कौन सी खबरें स्याह पड़ गई और रिपोर्ट तक न हुईं?
सोमवार की सुबह कोयला घोटाले पर पूछ गए एक सवाल ने पर नवीन जिंदल ने मीडिया से बदसलूकी की। इसको लेकर न्यू मीडिया कोई हो-हल्ला नहीं। प्रभावशाली जिंदल के करिदों ने मीडिया को ढंग से मैनेज किया। प्रमुख समाचार एजेंसी पीटीआई ने यह समाचार जारी ही नहीं किया। मंगलवार के अधिकार समाचारपत्रों से यह खबर नदारद है। कोयले से जुड़ी जिंदगी की खबर पर न्यू मीडिया में बहस इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिंदल ने जिस तरह से काले कोयले में अकूत संपत्ति की डकार मारी है, उसका सच सार्वजनिक होना आवश्यक था। क्योंकि अनेक युवा उद्योगपतियों की तरह नवीज जिंदल को युवाओं में आईकॉन की तरह प्रतिष्ठित किया जाता है। इसी जिंदल की जिस कंपनी को कोयला ब्लॉक मिला, उसी जिंदल की कंपनी ने महज दो वर्ष में अपने सारे लोक चुकता कर चार हजार करोड़ से ज्यादा का मुनाफा अपनी झोली में भर लिया। सरकार से सस्ता कोयला खरीद कर उसे ही महंगी बिजली बेच कर अपनी तिजोरी भरने वाले जिंदल की इन तमाम जानकारियों जो बहस की गुंजाइशन बनती थी, वह त्रिवेदी की गिरफ्तारी के शोर में समाप्त हो गई।
सोमवार को न्यू मीडिया में अधिकतर खिलाड़ी एक सुर में अभिव्यक्ति के नाम पर त्रिवेदी की सस्ती लोकप्रियता के हथकंडे पर शोर मचाते दिखे। रविवार और सोमवार को ही यह खबर प्रसारित हुई कि एक साल में प्रधानमंत्री की संपत्ति दोगुनी हो गई। एक ओर जहां देश की जनता महंगाई से त्रस्त है, उसी महंगाई का लाभ मनमोहन सिंह को मिलता है, उनके दो फ्लैट की कीमत एक ही वर्ष में दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं। सुबह-सवेरे प्रिंट मीडिया में यह खबर सुर्खियों में तो रही, लेनिक आनलाइन मीडिया में कुछ गिने चुने मित्र ही मनमोहन सिंह को कोसते नजर आए।
कैग की रिपोर्ट आते ही कोल गेट मुद्दा करीब एक सप्ताह न्यू मीडिया में खुब सुर्खियों में रहा। यह मोटी कमाई के काले कोयले का गड़बड़झाला उस दौरान हुआ जब कोयला मंत्रालय का प्रभार स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था। लिहाजा, शोर मचना स्वभाविक था।
इसी बीच एक और महत्वपूर्ण समाचार धीरे से लुप्त होती दिख रही है। गड़बड़झाले की यह खबर भी प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिन काम करने वाले परमाणु विभाग से संबंधित है। कैग ने देश के परमाणु सुरक्षा पर कई सवाल खड़े किए। जैसे सुस्त विद्यार्थी विज्ञान की गुत्थियों से दूर भागते हैं, वैसे ही न्यू मीडिया के महाराथी पर इस मुद्दे को दूर से सलाम करते नजर आए। मतलब कुछ मित्रों के वॉल पर इस मुद्दे पर बहस छेड़ने की कोशिश तो हुई, पर अधिकतर ने उसे लाइक कर अभयदान दे दिया। सोमवार सुबह-सुबह की यह खबर आई कि नीतीश गुजरात में मोदी के खिलाफ प्रचार करेंगे। शाम होते-होते शरद यादव ने कह दिया कि पीएम का पद पकौड़ी की तरह हो गया है। न्यू मीडिया पर इसे मुद्दे पर मजेदार चुटकी की उम्मीद थी, लेकिन कई वालों की खाक छानने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा।
सोमवार को दो गैर सरकारी संस्थाओं ने गत छह वर्ष में देश के राजनीतिक दलों की कमाई के स्रोत पर अपनी रिपोर्ट जारी की। समाचार दिन में ही आ गई। लेकिन आनलाइन मीडिया से यह नदारद रही। मंगलवार की सुबह यह प्रिंट की सुर्खियों में है। उम्मीद है कि न्यू मीडिया के योद्धा राजनीतिक दलों की कमाई की रफ्तार पर नियंत्रण के पक्ष में कुछ बोलेंगे। चुनाव में ईमानदार प्रत्याशियों को पार्टी के खर्च पर लड़ाने का प्रस्ताव देकर आमसहमति बनाएंगे, लेकिन इसकी संभावना कम दिखती है। क्योंकि जिस तरह त्रिवेदी ने जमानत लेने से मना कर कत्थित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कत्थित हनन के खिलाफ एक नया आंदोलन छेड़ कर सुर्खियां भुनाने की कोशिश की है, उसकी ताप अभी उसकी रिहाई तक बने रहने की उम्मीद है।
बहरहाल यह बता दें कि सोमवार के बाद मंगलवार होते ही त्रिवेदी के कार्टूनों के विरोध में भी अनेक फेसबुकियों ने अपने बॉल तर्क से सजाना शुरू कर दिया था। विरोध और समर्थन का यह क्रम चलता रहेगा, लेकिन इसी बीच कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण बहस वैसे ही छूट जाएगी, जैसे अन्ना आंदोलन की आंधी में कई योग्य खबरे अन्ना टोपी की खबरों से ढंक गई।