असम से उठी आग अब देश के दूसरे हिस्सों में भी फैल चुकी है। बोडो-गैर बोडो (जिसमें अधिकाँश अवैध बांग्लादेशी मुसलमान हैं) के बीच जारी जल-जंगल-जमीन के संघर्ष में करीब ९० लोगों की मौत हो चुकी है और करीब ४ हज़ार लोग बेघर हो चुके हैं। इन विस्थापित के लिए २२७ राहत शिविर चलाये जा रहे हैं जिनमें ५१ बोडो समुदाय के लिए तथा १७५ अल्पसंख्यकों के लिए हैं। असम में हिंसा का दौर अभी थमा भी नहीं था कि मुंबई के आज़ाद मैदान में संप्रदाय विशेष के समूह ने पुलिस को निशाना बनाते हुए बवाल कर दिया। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया और यह संदेश देने की अघोषित रूप से कोशिश की गई कि असम में यदि मुसलमानों के प्रति अत्याचार बंद नहीं हुए तो पूरे देश में आतंक का ऐसा मंजर पैदा किया जाएगा जिसे सरकार भी संभाल नहीं पाएगी।
और देखिए, भारत का मुसलमान अपने मकसद में कामयाब होता दिख रहा है। मुंबई के बाद लखनऊ में सुनियोजित षड़यंत्र के तहत बुद्ध पार्क में नुकसान पहुँचाना, मीडियाकर्मियों को सरेआम पीटना; यहाँ तक कि महिलाओं के साथ सामुहिक छेड़छाड़ के मामले सामने आना यह साबित करता है कि देश के मुसलमान के लिए देशहित से अधिक अपनी कौम का हित प्यारा है। और कौम का भी हित क्यों, उन्हें सिर्फ इससे मतलब है कि इस्लाम की दुहाई देकर देश का साम्प्रादायिक सद्भाव बिगाड़ने की साजिश रचने वाला उनके कानों में कितना ज़हर घोल सकता है ताकि वे अपनी अस्मिता की कथित रक्षा हेतु मारकाट कर सकें। भारत का मुसलमान असम के जिन अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनके खिलाफ जारी हिंसा का खूनी विरोध करने पर आमादा है, वह कौन है, क्या है जैसे प्रारम्भिक प्रश्नों के उत्तर जाने बिना हिंसक हो रहा है।
असम में मौजूद अवैध बांग्लादेशी मुसलमान जिन्हें रिन्गिया के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल जमात-ए-इस्लामी संगठन के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। जमात-ए-इस्लामी के बारे में किसी को कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है। इस संगठन की पैदाइश ही भारत को अस्थिर करने के मकसद से की गई है। इन रिन्गिया मुसलामानों को कुछ माह पहले म्यामार से भी खदेड़ा गया था और बांग्लादेश भी इन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं है। चूँकि ये बांग्लादेश की सरकार के घोर विरोधी माने जाते हैं अतः इनका बांग्लादेश में बसना नामुमकिन है। हाँ, असम से लगी बांग्लादेश की सीमा से इनका भारत में अवैध रूप से बसना और वोट बैंक के लालची नेताओं का इन्हें आश्रय देना ही असम हिंसा का कारण है।
ज़रा सोचिए, इन मुसलामानों को कई देश उनकी कट्टरता के कारण अपनाने से इंकार कर चुके हैं और जो अवैध रूप से भारत में डेरा जमा चुके हैं, उनके हितों की लड़ाई के लिए देश का मुसलमान देश से की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से लेकर इसकी एकता और अखंडता को खंड-खंड करने पर उतारू है| वैसे देखा जाए तो इसमें भारत के मुसलमान का दोष कम ही दिखाई देता है| उसे तो भड़काकर राजनीतिक लोग अपने हित-साधन करते हैं| उदाहरण के लिए असम की एक छोटी सी पार्टी एआईयूडीएफ का अध्यक्ष और धुबरी से सांसद बदरुद्दीन अजमल भारतीय मुसलामानों को भड़काने का काम कर रहा है और सरकार वोट बैंक के लालच के तहत इस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही| यहाँ तक की लोकतंत्र के मंदिर संसद में भी इसकी ज़हर उगलती जुबान ने सरकार की भीरुता को प्रदर्शित किया है| अपने वक्तव्य में इसने कहा है कि “गैर बोडो लोगों को असम से खदेड़ने की साजिश रची गई है| मृतकों में अधिकाँश अल्पसंख्यक हैं और शरणार्थियों में भी उनकी संख्या अधिक है| इसमें बोडोलैंड पीपुल्स का हाथ है और मुख्यमंत्री उनकी सहायता कर रहे हैं| यदि असम को हिंसा मुक्त करना है तो तरुण गोगोई को तुरंत मुख्यमंत्री पद से हटाना होगा वरना असम ऐसे ही जलता रहेगा|”
इस देश के दुश्मन की जहर उगलती जुबान को काबू में रखने की पहल तो दूर सरकार उसके दिखाए मार्ग पर चल रही है और असम में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा मुहैया करवाई जा रही है| वैसे बता दूं कि यह अजमल असम के जिस क्षेत्र से सांसद है वहां की अधिसंख्य आबादी अवैध बांग्लादेशी मुसलमानों की है जिनकी दम पर यह संसद पहुंचा है| ज़ाहिर है उनका पक्ष लेकर यह अपना वोट बैंक ही बढ़ाएगा किन्तु असम को इतने जख्म दे देगा कि उसकी पहचान का ही संकट खड़ा होगा| पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी किताब में एक बार कहा था कि असम के बिना पूर्वी पाकिस्तान की कल्पना अधूरी है और लगता है जैसे अजमल भुट्टो के कहे को सच में तब्दील करना चाहता है| पूर्वी पाकिस्तान का अस्तित्व तो बांग्लादेश के रूप में सामने आया है लेकिन असम को बांग्लादेश में मिलाने की इस्लामी साजिश को अजमल जैसा नापाक शख्स अंजाम देगा इसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होगी|
२००१ की जनगणना के अनुसार देश में ४ करोड़ बांग्लादेशी मौजूद थे| आई बी की ख़ुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक़ अभी भी भारत में करीब डेढ़ करोड़ से अधिक बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं जिसमे से ८० लाख पश्चिम बंगाल में और ५० लाख के लगभग असम में मौजूद हैं| वहीँ बिहार के किसनगंज, साहेबगंज, कटियार और पूर्णिया जिलों में भी लगभग ४.५ लाख बांग्लादेशी रह रहे हैं| राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में १३ लाख बांग्लादेशी शरण लिए हुए हैं वहीँ ३.७५ लाख बांग्लादेशी त्रिपुरा में डेरा डाले हैं| नागालैंड और मिजोरम भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के किए शरणस्थली बने हुए हैं| १९९१ में नागालैंड में अवैध घुसपैठियों की संख्या जहाँ २० हज़ार थी वहीँ अब यह बढ़कर ८० हज़ार से अधिक हो गई है| असम के २७ जिलों में से ८ में बांग्लादेशी मुसलमान बहुसंख्यक बन चुके हैं| १९०१ से २००१ के बीच असम में मुसलामानों का अनुपात १५.०३ प्रतिशत से बढ़कर ३०.९२ प्रतिशत हो गया है|
जाहिर है इन अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों की वजह से असम सहित अन्य राज्यों का राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक ढांचा प्रभावित हो रहा है| हालात यहाँ तक बेकाबू हो चुके हैं कि ये अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठिये भारत का राशन कार्ड इस्तेमाल कर रहे हैं, चुनावों में वोट देने के अधिकार का उपयोग कर रहे हैं व सरकारी सुविधाओं का जी भर कर उपभोग कर रहे हैं और देश की राजनीतिक व्यवस्था में आई नैतिक गिरावट का जमकर फायदा उठा रहे हैं| दुनिया में भारत ही एकलौता देश है जहां अवैध नागरिकों को आसानी से वे समस्त अधिकार स्वतः प्राप्त हो जाते हैं जिनके लिए देशवासियों को कार्यालयों के चक्कर लगाना पड़ते हैं| यह स्वार्थी राजनीति का नमूना नहीं तो और क्या है? यह तथ्य दीगर है कि इन घुसपैठियों की वजह से पूर्व में भी कई बार असम ही नहीं बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों में साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ा है|
असम में निवास करने वाले सभी मुस्लिम अवैध बांग्लादेशी घुसपैठी नहीं हैं किन्तु यह भी सच है कि असम का एक बड़ा जनसंख्या वर्ग यह स्वीकार करता है कि उनके राज्य में अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादात अनुमान से कहीं अधिक है जिसे लेकर सरकार ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई है| इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि राज्य के अत्यधिक हिंसा प्रभावित जिलों में बड़ी संख्या में अवैध मुस्लिम बांग्लादेशी घुसपैठी परिवार रहते हैं जिन्होंने स्थिति को इतना बिगाड़ दिया है कि राज्य शासन हिंसात्मक गतिविधियों को रोकने में असहस नज़र आ रहा है।
असम में अवैध बांग्लादेशियों के खिलाफ देशभक्त बोडो समूह का आना एक शुभ लक्षण था लेकिन राजनीति के चक्कर में इनकी विदाई बेला पुनः टल गई है| पर इस संघर्ष से अब पूर्वोत्तर राज्यों के निवासियों को धमकी भरे संदेश दिए जा रहे हैं जिससे ये विभिन्न शहरों को छोड़कर अपने क्षेत्र में वापस जाना चाहते हैं वह भी ऐसे माहौल में जबकि उन्हें ज्ञात है कि वहां भी हालात चुनौतीपूर्ण होंगे| धमकी भर संदेशों को पाकिस्तान का समर्थन व संसाधन मिलने से यह प्रमाणित होता है कि भारत को अस्थिर करने की इस्लामिक चाल में कई बड़े समूह काम कर रहे हैं| अब यह भारत के मुसलमान को तय करना है कि वह देशहित के लिए खुद को आगे लाता है या कौम की लड़ाई में देश के टुकड़े करना चाहता है| यदि देशहित से ऊपर कौम को रखा जाता है तो यह सरासर देश के साथ गद्दारी है और ऐसे में यह कहने-समझने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि मुसलमानों की देशहित मात्र दिखावा है, जिसे भड़काकर कोई भी स्वहित में बदल सकता है।